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भोपाल: स्कूल संचालकों की मनमानी से अभिभावक परेशान, किताब माफिया से सांठगांठ बनी आफत

स्कूल का पहला सत्र शुरू होने के बाद बुक्स, कॉपी, पेन, ड्रेस खरीदने के लिए अभिभावक लाइनों में लगे हुए हैं. स्कूल संचालक, किताब माफिया के साथ सांठगांठ कर इस कारोबार से महीने भर में ही करोड़ों रुपए का कारोबार कर लेते हैं.

भोपाल: स्कूल संचालकों की मनमानी से अभिभावक परेशान
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Published : Mar 20, 2019, 12:38 PM IST

भोपाल। जिले के सभी स्कूलों का पहला सत्र अप्रैल माह से शुरू हो जाएगा. ऐसे में एक ही दुकान से किताबें खरीदने को सभी अभिभावक मजबूर हैं. किताबों और ड्रेस के नाम पर स्कूल करोड़ों का कारोबार कर रहा है. शिक्षा विभाग हो या जिला कलेक्टर हर बार ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई की बात करते हैं, लेकिन हर साल अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं.

स्कूल संचालकों की मनमानी से अभिभावक परेशान


स्कूल का पहला सत्र शुरू होने के बाद बुक्स, कॉपी, पेन, ड्रेस खरीदने के लिए अभिभावक लाइनों में लगे हुए हैं. स्कूल संचालक, किताब माफिया के साथ सांठगांठ कर इस कारोबार से महीने भर में ही करोड़ों रुपए का कारोबार कर लेते हैं.


गौरतलब है कि बीते सालों में इस बात को लेकर बड़ी संख्या में शिकायतें पहुंची थी. स्कूल प्रबंधन और प्राचार्य एनसीईआरटी से संबंधित पुस्तकों के साथ अन्य प्रकाशकों की अधिक मूल्य की पुस्तकें और अन्य सामग्री खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव बना रहे हैं. सत्र शुरू होने से पहले अभिभावकों की चिंता सबसे ज्यादा महंगाई पर टिकी है. स्कूल की ड्रेस किताबें एडमिशन फीस और हर साल फीस में बढ़ोतरी सबसे बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है.

भोपाल। जिले के सभी स्कूलों का पहला सत्र अप्रैल माह से शुरू हो जाएगा. ऐसे में एक ही दुकान से किताबें खरीदने को सभी अभिभावक मजबूर हैं. किताबों और ड्रेस के नाम पर स्कूल करोड़ों का कारोबार कर रहा है. शिक्षा विभाग हो या जिला कलेक्टर हर बार ऐसे स्कूलों पर कार्रवाई की बात करते हैं, लेकिन हर साल अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं.

स्कूल संचालकों की मनमानी से अभिभावक परेशान


स्कूल का पहला सत्र शुरू होने के बाद बुक्स, कॉपी, पेन, ड्रेस खरीदने के लिए अभिभावक लाइनों में लगे हुए हैं. स्कूल संचालक, किताब माफिया के साथ सांठगांठ कर इस कारोबार से महीने भर में ही करोड़ों रुपए का कारोबार कर लेते हैं.


गौरतलब है कि बीते सालों में इस बात को लेकर बड़ी संख्या में शिकायतें पहुंची थी. स्कूल प्रबंधन और प्राचार्य एनसीईआरटी से संबंधित पुस्तकों के साथ अन्य प्रकाशकों की अधिक मूल्य की पुस्तकें और अन्य सामग्री खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव बना रहे हैं. सत्र शुरू होने से पहले अभिभावकों की चिंता सबसे ज्यादा महंगाई पर टिकी है. स्कूल की ड्रेस किताबें एडमिशन फीस और हर साल फीस में बढ़ोतरी सबसे बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है.

Intro:स्कूल संचालकों की मनमानी अभिभावक हो रहे हैं परेशान एक ही दुकान से किताब खरीदने को मजबूर है अभिभावक अप्रैल से शुरू होगा स्कूलों का पहला सत्र सत्र शुरू होने से पहले मार्केट में मची लूट करोड़ों का कारोबार हो रहा स्कूल के नाम पर


Body:आज के इस महंगाई के दौर में बच्चों को अच्छी शिक्षा देना मां बाप के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है स्कूल संचालक एक नोटिस लगा कर परिवार के महीने भर का बजट बिगाड़ देते हैं नोटिस में समय सीमा भी इतनी कम रहती है कि अभिभावक सोचते हैं कि कैसे भी करे से पहले पूरा करें बाद में सोचेंगे लेकिन बाद में सोचने के लिए कुछ बता ही नहीं है कुछ ऐसे ही स्थिति स्कूल शुरू होने से पहले देखने को मिल रही है स्कूलों का पहला सत्र अप्रैल माह से शुरू हो जाएगा कुछ स्कूल तो 18 मार्च से शुरू भी हो चुके हैं बुक्स कॉपी पेन ड्रेस खरीदने के लिए अभिभावक लाइनों में लगे हुए हैं स्कूल संचालकों ने किताब माफियाओं से सांठगांठ कर रखी है इस कारोबार में मात्र महीने भर या 15 दिनों में ही करोड़ों रुपए का कारोबार होता है निर्धारित दुकानों पर लंबी लंबी कतारें लगी रहती है मां-बाप को ऊंचे दाम चुकाने के बाद भी तो कर ले कर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है यही हाल स्कूल यूनिफॉर्म का भी है जिसकी पालक अभिभावक संघ ने कलेक्टर से शिकायत भी की अब इस बारे में स्कूल संचालक किया पर बुक स्टॉल के मालिक तो कुछ बोलेंगे नहीं क्योंकि उनकी सांठगांठ से ही पूरा कारोबार चल रहा है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जिला प्रशासन भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा शिक्षा विभाग हो या जिला कलेक्टर हर बार इन पर कार्यवाही की सिर्फ बातें होती हैं लेकिन हर साल अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं गौरतलब है कि बीते सालों में इस बात को लेकर बड़ी संख्या में शिकायतें पहुंची थी किसी भी ऐसी से संबंधित स्कूल प्रबंधन और प्राचार्य एनसीईआरटी से संबंधित पुस्तकों के साथ अन्य प्रकाशकों की अधिक मूल्य की पुस्तकें और अन्य सामग्री खरीदने के लिए अभिभावकों पर दबाव बना रहे हैं 9:00 सौ से हजार रुपए मूल्य तक की पुस्तक के बाजार से ₹4000 कीमत में अभिभावकों को खरीदने पर मजबूर होना पड़ रहा है लेकिन इस पर तमाम आदेश के बावजूद कोई असर नजर नहीं आ रहा है वही जिला शिक्षा अधिकारी धर्मेंद्र शर्मा ने कहा इस तरह की शिकायतें अभिभावकों की ओर से आ रही है और इस पर जल्द से जल्द कार्यवाही की जाएगी सभी स्कूलों को निर्देश दे दिए गए हैं कि अभिभावकों पर किताब और यूनिफॉर्म खरीदने का किसी एक दुकान पर जाने का दबाव ना बनाएं अभिभावक अपनी मर्जी से यूनिफॉर्म खरीद सकते हैं वहीं अभिभावकों का कहना है हमें स्कूलों से निर्देश दिए जाते हैं कि आपको इसी एक दुकान से बुक्स खरीदनी है और ड्रेस खरीदनी है इस वजह से हम दूसरे दुकानों से नहीं खरीद पाते जहां पर हमें सस्ते दाम में यह ड्रेस मिल जाती हैं वहीं लोगों के नाम पर ब्रांडिंग कर रहे हैं स्कूल प्रशासन यूनिफॉर्म पर स्कूल का मोनो मतलब हर साल 2 करोड़ तक कमिशन का खेल राजधानी में ऐसे कई स्कूल है जिनकी यूनिफॉर्म के लोगों बदल जाते हैं ड्रेस तो वही रहती है लेकिन हर साल मोनो का कलर चेंज हो जाता है या फिर मोनोमें चेंज कर दिए जाते हैं इस कारण अभिभावकों को औसतन 15 ₹100 तक अधिक दाम चुकाने पड़ते हैं इस हिसाब से देखा जाए तो राजधानी के निजी स्कूलों में पढ़ने वाले करीब डेढ़ लाख बच्चों के अभिभावकों पर हर साल करीब ₹20000000 का आर्थिक बोझ यह यूनिफॉर्म खरीदने से बढ़ जाता है यह सब सिर्फ कमिशन के लिए होता है यूनिफॉर्म के कमीशन का हिस्सा सीधे स्कूल प्रबंधन को जाता है लिहाजा प्रबंधन हर साल यूनिफार्म का कलर बदल देता है इसके अलावा बैग जूते कॉपी किताब पर अलग से कमीशन होता है या हालात तब है जब जिला प्रशासन ने स्कूल प्रबंधन को सत्य निर्देश दिए हैं कि कोई भी स्कूल यूनिफॉर्म कॉपी किताब या बेड पर लगा कर अपनी ब्रांडिंग ना करें आपको बता दें राजधानी में 5 से 6 दुकानें ऐसी हैं जिन्हें स्कूल प्रशासन ने अभिभावकों के लिए निर्धारित कर रखा है स्कूल संचालकों द्वारा निर्धारित 5 से 6 दुकानों के नाम ड्रेस खरीदने के लिए बताए जाते हैं इसमें इंद्रप्रस्थ की गुरुकुल टिपटॉप आदि शामिल है इन दुकानों पर यूनिफॉर्म खरीदने पर कमीशन का हिस्सा सीधा स्कूल संचालक के पास जाता है इसके अलावा यूनिफार्म विक्रेता का भी हिस्सा होता है इस तरह से 3 गुना महंगी दाम पर अभिभावकों को खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है राजधानी के हर स्कूल में तीन चरण में बदलाव होते है पहली बार नर्सरी से kg2 दूसरी बार पहली से पांचवी तक और तीसरी बार छठवीं से बारहवीं तक अलग-अलग कलर और डिजाइन के यूनिफॉर्म चलाए जाते हैं वहीं कई निजी स्कूल ऐसे भी हैं जो हर दो-तीन साल में स्कूल की ड्रेस ही बदल देते हैं ऐसे में जिनके घर में 2 बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते हैं वह बच्चा अपने छोटे भाई या बहन का यूनिफार्म यूज नहीं कर सकता इस तरह निजी स्कूलों में जमकर लूट मची हुई है सत्र शुरू होने से पहले अभिभावकों की चिंता सबसे ज्यादा महंगाई पर टिकी है स्कूल की ड्रेस किताबें ऐडमिशन फीस और हर साल फीस में बढ़ोतरी सबसे बड़ी चिंता का कारण बना हुआ है


Conclusion:स्कूल संचालकों की मनमानी अभिभावक हो रहे हैं परेशान एक ही दुकान से किताब खरीदने की मजबूरी लाइन लगाकर खरीदना पड़ता है महंगा सामान हर साल होती है चर्चा पर नतीजा कुछ नहीं मात्र 1 महीने में करोड़ों का कारोबार
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