भोपाल। राजधानी भोपाल समेत पूरे प्रदेश में हादसों का ग्राफ लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पुलिस की लाख कोशिशों के बावजूद भी सड़क हादसों और उनमें होने वाली मौतों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. पिछले 8 महीनों में ही राजधानी में 1361 सड़क हादसे हुए हैं. जिनमें 153 वाहन चालक काल के गाल में समा गए हैं. लॉकडाउन में जरूर इन हादसों में कमी आई थी, लेकिन अनलॉक के बाद सड़क दुर्घटनाओं में फिर तेजी आई है.
आइए एक नजर डालते हैं जनवरी से लेकर अगस्त महीने तक होने वाले हादसों पर
- जनवरी में 227 सड़क हादस हुए. जिसमें 24 मौतें हुईं.
- फरवरी में 263 सड़क हादसों में 23 वाहन चालकों ने गंवाई जान.
- मार्च में 186 सड़क हादसे हुए जिसमें 21 वाहन चालकों की मौत हुई.
- अप्रैल में 36 सड़क हादसों हुए, जिनमें 4 लोगों की जान गई.
- मई में 48 दुर्घटनाओं में 9 वाहन चालकों की हुई मौत हुई.
- जून में 226 सड़क हादसे हुए जिनमें 25 लोगों ने जान गवाई.
- जुलाई में 177 सड़क हादसों हुए, जिनमें 28 लोगों ने दम तोड़ दिया.
- अगस्त में 198 हादसे हुए और 19 वाहन चालकों की हुई मौत हुई.
यातायात पुलिस की उड़ी नींद
ये आंकड़े परेशान करने वाले हैं. जिला प्रशासन और यातायात पुलिस की नींद उड़ी हुई है.अचानक सड़क हादसों में हुई बढ़ोत्तरी के बाद यातायात पुलिस और अन्य विभागों के बीच संयुक्त बैठक हुई और शहर भर के 16 ऐसे ब्लैक स्पॉट चिंहित किए गए हैं, जहां सबसे ज्यादा हादसे होते हैं. अब पुलिस और पीडब्ल्यूडी विभाग के साथ एक्सपर्ट इन चौक-चौराहों पर हादसों की वजह तलाशने की कोशिश कर रहे हैं.
भोपाल में 16 ब्लैक स्पॉट
गोविंदपुरा टर्निंग, अन्ना नगर चौराहा, रत्नागिरी तिराहा, आईटीआई तिराहा, भदभदा चौराहा, बोर्ड ऑफिस चौराहा, पालमपुर घाटी, स्टील यार्ड सुखी सेवनिया, समरधा पुल, सुरेंद्र पैलेस मैन रोड, पुलिस कंट्रोल रूम तिराहा, केएन प्रधान तिराहा, लालघाटी चौराहा, चंचल चौराहा, करोंद चौराहा और गेलखेड़ी चौराहा.
मध्यप्रदेश में साल दर साल बढ़ीं मौतें
साल 2016 में सड़क हादसों में 9 हजार 646 मौतें हुईं.
साल 2017 में सड़क दुर्घटनाओं में 10 हजार 177 लोगों ने जान गंवाई.
साल 2018 में रोड एक्सीडेंट में 10 हजार 706 लोगों की मौत हुई.
साल 2019 में सड़क हादसों में 8 हजार 235 लोगों की जान गई.
केवल ब्लैक स्पॉट चिंहित करना काफी नहीं
मौलाना आजाद इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी के प्रोफेसर और यातायात पुलिस की एक्सपर्ट के तौर पर मदद करने वाले सिद्धार्थ रोकड़े की मानें तो केवल ब्लैक स्पॉट चिन्हित करने से हादसों में कमी नहीं आएगी. सभी विभागों में सबसे पहले सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है.इसके अलावा ये भी जरूरी है जिन ब्लैक स्पॉट को चिन्हित किया गया है, वहां रोड सेफ्टी ऑडिटिंग की जाए. लेकिन ये भी बड़ी समस्या है कि आखिर ऑडिटिंग कौन करेगा. क्योंकि रोड सेफ्टी ऑडिटिंग का काम जाता है पुलिस का नहीं है यातायात पुलिस सिर्फ बल मुहैया करवा सकती है. रोड सेफ्टी और इंजीनियरिंग केवल ऐसे इंजीनियर के द्वारा करवाई जाए जिसे इसका अनुभव हो या फिर ट्रेनिंग ली हो. उन्होंने कहा कि इसको लेकर बड़े स्तर पर काम करने के साथ ही शहर का ट्रैफिक मैनेजमेंट भी समझना होगा.
लापरवाही और नियमों का उल्लंघन
सड़क हादसों का सबसे बड़े कारण है लापरवाही और नियमों का उल्लंघन. दरअसल लॉकडाउन में सड़कें पूरी तरह से खाली थीं क्योंकि लोगों की आवाजाही पर पाबंदी थी. केवल जरूरी सेवाओं से जुड़ी गाड़ियां ही सड़क पर दिखती थीं. लेकिन अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होते ही लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर आने लगे जिससे दुर्घटनाएं भी बढ़ने लगी.जून से अनलॉक शुरू हुआ तो सड़कें खाली देखकर लापरवाही से वाहन चलाने वालों की संख्या बढ़ गई और गाड़ियों की रफ्तार तेज हो गई. सिग्नल जंप करना और तेज गति से वाहन चलाने के चलते सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. लिहाजा प्रशासन के साथ लोगों को भी इस ओर ध्यान देने की जरूरत है.