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सरकारी आंकड़े बाजी में उलझे विकास कार्य, मजदूरों को काम नहीं मिलने से धीमी हुई रफ्तार

लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुए मजदूरों को सरकार ने राहत देने के लिए प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने के निर्देश दिए थे. लेकिन भिंड जिले में इस योजना का लाभ सिर्फ पंचायत स्तर पर सरपंच और सचिव तक ही सीमित रह गया है.

Workers are not getting work in MNREGA
मनरेगा में नहीं मिल रहा मजदूरों को काम
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Published : Jul 24, 2020, 3:17 PM IST

भिंड। लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुए मजदूरों को सरकार ने राहत देने के लिए प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने के निर्देश दिए थे. लेकिन भिंड जिले में इस योजना का लाभ सिर्फ पंचायत स्तर पर सरपंच और सचिव तक ही सीमित रह गया है. 88 गांव के ब्लॉक गोहद में प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत कई मजदूरी के काम शुरू किए गए, लेकिन ज्यादातर पंचायत में मशीनों के जरिए काम कराया जा रहा है.

मनरेगा में नहीं मिल रहा मजदूरों को काम

मजदूरों की जगह मशीनों से हो रहा काम

मजदूरों का कहना है कि उनसे न तो सरपंच ने और ना सचिव ने संपर्क किया और ना ही उन्हें काम दिया गया है, पिछले चार महीने से रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं लेकिन सरपंच काम नहीं दे रहे हैं. रोजगार न होने की वजह से वो लोग बेहद परेशान हैं. यहां तक की सरकार के निर्देशों को पूरा करने के लिए जॉब कार्ड तो बनवा दिए गए हैं, लेकिन मजदूरी के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई. सारा काम मशीनों से ही कराया जा रहा है.

मनरेगा में नहीं मिला काम

वहीं रोजगार की तलाश में ग्राम पंचायत चंदोखर में गुजरात से आए एक मजदूर का कहना है कि वह गुजरात में पेंटर का काम करता था लेकिन कोरोना वायरस के चलते वापस घर नहीं लौट सका, जिसके चलते यहीं चार महीने से बिना काम के परेशानियों का सामना कर रहा है लेकिन मनरेगा के तहत पंचायत की ओर से एक भी काम नहीं मिला.

मजदूरों को ठहराया जिम्मेदार

जब मजदूरों की परेशानी को लेकर सरपंच पति से सवाल किया गया तो उन्होंने अपनी नाकामी को छिपाते हुए उल्टा मजदूरों को ही कसूरवार ठहराया दिया, सरपंच पति का कहना है कि मजदूर काम ही नहीं करना चाहते.

सरकारी आंकड़ों में मिल रहा काम

प्रवासी मजदूरों की समस्या को लेकर अधिकारियों से बात की गई तो जिला पंचायत सीईओ आईएस ठाकुर का कहना है कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार सभी प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत कई कार्य खोले गए हैं 40,000 से ज्यादा मजदूर बाहर से आए हैं और करीब 18000 मजदूरों का पंजीयन कराया गया है, इन सभी को कार्य दिए गए हैं, जो मजदूर काम लेने आता है उसको काम दिया जा रहा है.

अधिकारियों के बयान भले ही सरकारी आंकड़ेबाजी पर आधारित हों लेकिन हकीकत में वह गरीब और लॉकडाउन का मारा मजदूर जो सैकड़ों किलोमीटर दूर अपना रोजगार छोड़कर अपने गांव लौट कर आ गया है, वह अब भूखे मरने की कगार पर है.

भिंड। लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हुए मजदूरों को सरकार ने राहत देने के लिए प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने के निर्देश दिए थे. लेकिन भिंड जिले में इस योजना का लाभ सिर्फ पंचायत स्तर पर सरपंच और सचिव तक ही सीमित रह गया है. 88 गांव के ब्लॉक गोहद में प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत कई मजदूरी के काम शुरू किए गए, लेकिन ज्यादातर पंचायत में मशीनों के जरिए काम कराया जा रहा है.

मनरेगा में नहीं मिल रहा मजदूरों को काम

मजदूरों की जगह मशीनों से हो रहा काम

मजदूरों का कहना है कि उनसे न तो सरपंच ने और ना सचिव ने संपर्क किया और ना ही उन्हें काम दिया गया है, पिछले चार महीने से रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं लेकिन सरपंच काम नहीं दे रहे हैं. रोजगार न होने की वजह से वो लोग बेहद परेशान हैं. यहां तक की सरकार के निर्देशों को पूरा करने के लिए जॉब कार्ड तो बनवा दिए गए हैं, लेकिन मजदूरी के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई. सारा काम मशीनों से ही कराया जा रहा है.

मनरेगा में नहीं मिला काम

वहीं रोजगार की तलाश में ग्राम पंचायत चंदोखर में गुजरात से आए एक मजदूर का कहना है कि वह गुजरात में पेंटर का काम करता था लेकिन कोरोना वायरस के चलते वापस घर नहीं लौट सका, जिसके चलते यहीं चार महीने से बिना काम के परेशानियों का सामना कर रहा है लेकिन मनरेगा के तहत पंचायत की ओर से एक भी काम नहीं मिला.

मजदूरों को ठहराया जिम्मेदार

जब मजदूरों की परेशानी को लेकर सरपंच पति से सवाल किया गया तो उन्होंने अपनी नाकामी को छिपाते हुए उल्टा मजदूरों को ही कसूरवार ठहराया दिया, सरपंच पति का कहना है कि मजदूर काम ही नहीं करना चाहते.

सरकारी आंकड़ों में मिल रहा काम

प्रवासी मजदूरों की समस्या को लेकर अधिकारियों से बात की गई तो जिला पंचायत सीईओ आईएस ठाकुर का कहना है कि राज्य सरकार के निर्देशानुसार सभी प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत कई कार्य खोले गए हैं 40,000 से ज्यादा मजदूर बाहर से आए हैं और करीब 18000 मजदूरों का पंजीयन कराया गया है, इन सभी को कार्य दिए गए हैं, जो मजदूर काम लेने आता है उसको काम दिया जा रहा है.

अधिकारियों के बयान भले ही सरकारी आंकड़ेबाजी पर आधारित हों लेकिन हकीकत में वह गरीब और लॉकडाउन का मारा मजदूर जो सैकड़ों किलोमीटर दूर अपना रोजगार छोड़कर अपने गांव लौट कर आ गया है, वह अब भूखे मरने की कगार पर है.

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