भिंड। भिंड जिले में कुछ ऐसे ही हालात ग्रामीण क्षेत्रों में नजर आते हैं. जहां एक या दो नहीं बल्कि कई ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों ने अपने क्लीनिक्स खोल रखे हैं. इनके पास ना तो डिप्लोमा है ना ही डिग्री. अधकचरी जानकारी के साथ वे कई गांवों के ‘डॉक्टर साहब’ बन बैठे हैं. ग्रामीण इलाकों में अपनी कमाई का जरिया बनाए हुए झोलाछाप डॉक्टर लोगों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. लेकिन गलती सिर्फ झोलाछाप डॉक्टरों की नहीं है. इनके पास इलाज कराने पहुंचने वाले लोग जरुरी नहीं की अनपढ़ हैं. कई लोग पढ़े लिखे भी होते हैं. आखिर क्या कारण है कि लोग मुफ्त का इलाज छोड़कर भी पैसे देने के लिए इन झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं. जमीनी हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत ने एक झोलाछाप डॉक्टर से इलाज करा कर लौट रहे मरीज से बात की. सुनिए उसने क्या कुछ कहा...
लोगों को नहीं है सरकारी डॉक्टरों पर भरोसा !
गोहद के एक झोलाछाप डॉक्टर से डायरिया की दवा लेकर लौट रहे बुजुर्ग मरीज से जब हमने पूछा कि वह क्यों उनके पास अपना इलाज कराने आया है. तो उसने बताया कि सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की स्थिति और बर्ताव ठीक नहीं होता. बुजुर्ग का आरोप है कि डॉक्टर न तो जांच करते हैं ना बात, बस दूर से देख कर दवा पर्चा लिख कर चलता कर दिया जाता है. इसलिए वे फीस देकर प्राइवेट डॉक्टरों पर दिखाना उचित समझते हैं.
कौन होते हैं झोलाछाप डॉक्टर ?
हम अक्सर सुनते आए हैं कि झोलाछाप डॉक्टरों पर कार्रवाई हुई, झोलाछाप डॉक्टरों का क्लीनिक सील किया गया या किसी झोलाछाप डॉक्टर के इलाज से किसी मरीज की मौत हो गई. लेकिन झोलाछाप डॉक्टरों की परिभाषा हर किसी को नहीं पता होती, तो हम आपको बता दें कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडिया ने एलोपैथी, आयुर्वेद और यूनानी पद्धति से की जाने वाली चिकित्सा पद्धति को ही मान्य किया है. इन पद्धतियों में डिग्री लिए बिना जो लोग मरीजों का इलाज कर रहे हैं उन्हें फर्जी या झोलाछाप डॉक्टर कहा जाता है. इसके साथ ही झोलाछाप डॉक्टर उन लोगों को भी कहा जाता है जिनके पास...
- कोई डिग्री या डिप्लोमा ना हो
- जो जिले के स्वास्थ्य अधिकारी के पास आवेदन कर क्लिनिक खोलने की अनुमति न लें.
- बिना रजिस्ट्रेशन क्लिनिक का संचालन करने वाले.
- रजिस्टर्ड पद्दति के अलावा किसी अन्य पद्दति से इलाज करने वाले भी 'झोलाछाप' डॉक्टर की श्रेणी में आते हैं.
लोगों की जान से खिलवाड़ करते हैं झोलाछाप डॉक्टर
झोलाछाप डॉक्टरों के इलाज से कई बार मरीजों की जान पर बन आती है. जिसका एक बड़ा कारण है कि बीमारी की समझ से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है. किसी भी बीमारी के लिए अमूमन एक डॉक्टर पहले जांच कराता है और उसकी रिपोर्ट के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है, लेकिन झोलाछाप डॉक्टर अक्सर गिनी चुनी एंटीबायोटिक दवा या रेगुलर उपयोग में होने ड्रग मरीजों को देते हैं. जिनकी वजह से कई बार केस खराब हो जाता है.
...जब गलत इलाज से लोगों ने गवाई जान
नवंबर 2019 में भिंड शहर की अटेर रोड इलाके में स्थित एक फर्जी डॉक्टर के क्लीनिक पर इलाज कराने गई महिला को गलत इंजेक्शन लगाए जाने से उसकी मौत हो गई. मामले पर परिजनों ने आरोप लगाया था कि झोलाछाप डॉक्टर द्वारा इलाज के लिए लगाए गए इंजेक्शन के बाद उसकी हालत बिगड़ गई थी. जब जिला अस्पताल में महिला को लाया गया तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था. यह पहली बार नहीं था जब ऐसा कुछ हुआ हो. इससे पहले भी भिंड के दबोह इलाके में निक्सी दोहरे नाम की महिला पेट दर्द की शिकायत लेकर एक झोलाछाप डॉक्टर के पास इलाज कराने पहुंची थी. लेकिन इलाज में लापरवाही के चलते उसकी मौत हो गई थी. जिसके बाद मामले को लेकर परिजन ने पुलिस में एफआईआर भी दर्ज कराई थी. ऐसे न जाने कितने ही मामले हर साल सामने आते हैं. बावजूद इसके लोग झोलाछाप डॉक्टरों पर अपने अंधविश्वास को खत्म नहीं कर पा रहे हैं.
झोलाछाप डॉक्टरों पर स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई
भिंड जिले में कई जगहों पर झोलाछाप डॉक्टरों ने अपने क्लीनिक खोल रखे हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग इन पर अंकुश लगाने के लिए क्या कुछ कार्रवाई कर रहा है. इस बात को जानने के लिए जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ अजीत मिश्रा से बात की तो उन्होंने बताया कि कई बार इस तरह की शिकायतें मिलती हैं जिन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है. डॉ मिश्रा ने बताया कि डॉक्टर को क्लीनिक खोलने के लिए एक आवेदन देकर अपने चिकित्सा पद्धति बताते हुए सीएमओ कार्यालय से रजिस्ट्रेशन कराना होता है. ऐसा नहीं करने पर उनका क्लीनिक फर्जी या अवैध माना जाता है. समय-समय पर उस पर कार्रवाई की जाती हैं. हाल ही में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जिले के ऊमरी और एक अकोड़ा गांव में संचालित फर्जी क्लीनिक को सील करने की कार्रवाई की है.
साल 2020 में हुई कार्रवाई
साल 2020 में जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा फर्जी डॉक्टर और क्लीनिक पर कुल 15 कार्रवाई की गई हैं. जिनमें से सात क्लीनिक सील किए गए हैं. अन्य आठ को अपने संस्थान बंद करने के लिए नोटिस जारी किया है. इनमें भी चार प्रकरणों में न्यायालय में चालान प्रस्तुत किए गए हैं.
सीएमएचओ की जनता से अपील
भिंड जिला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी सीएमएचओ डॉ अजीत मिश्रा ने भिंड जिले वासियों से भी अपील की है कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से संचालित शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और अस्पतालों में ही क्वालिफाइड डॉक्टर से इलाज ले. वह किसी भी फर्जी डॉक्टरों के बहकावे में ना आए. क्योंकि अक्सर लोग फर्जी डॉक्टरों से इलाज कराने के चलते अपनी बीमारी को बढ़ा लेते हैं. जिसका इलाज सिर्फ सरकारी अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टरों और विशेषज्ञों के काबू से बाहर हो जाता है. मरीज और परिजन को भी इसका खामियाजा चुकाना पड़ता है.
स्वास्थ्य केंद्रों की भरमार
भिंड जिले में शासकीय अस्पतालों की भी कमी नहीं है. जिले में स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक जिला अस्पताल एक सिविल अस्पताल, छह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, 21 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 190 उप स्वास्थ्य केंद्र संचालित हो रहे हैं. जहां शासन के नियमों अनुसार निम्न स्तर पर शुल्क और विभिन्न योजनाओं के तहत मुफ्त इलाज की सुविधा भी उपलब्ध है.