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जल की जद्दोजहद: प्यास बुझाने के लिए जान दाव पर लगाने को मजबूर ग्रामीण, मगरमच्छों से भरी चम्बल नदी से भरना पड़ता है पानी

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Published : May 5, 2022, 9:19 PM IST

पेयजल व्यवस्था के लिए चम्बल नदी के किनारे बसे गांव के ग्रामीण नदी पर निर्भर हैं और मगरमच्छों के खतरे के बीच अपनी जान हथेली पर रख कर नदी से पानी भरते हैं. कई मवेशी और ग्रामीण हादसों का भी शिकार हुए हैं. बावजूद इसके 6 दशक से ज्यादा समय गुजरने के बाद भी इस गांव में सरकारी पेयजल योजनाओं का लाभ नहीं मिला.

bhind chambal river water
चंबल नदी का पानी पीने को मजबूर ग्रामीण

भिंड। जिले का दिन्नपुरा एक ऐसा गांव है, जहां आज भी लोग पानी के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. पेयजल व्यवस्था के लिए चम्बल नदी के किनारे बसे गांव के ग्रामीण नदी पर निर्भर हैं और मगरमच्छों के खतरे के बीच अपनी जान हथेली पर रख कर नदी से पानी भरते हैं. कई मवेशी और ग्रामीण हादसों का भी शिकार हुए हैं. बावजूद इसके 6 दशक से ज्यादा समय गुजरने के बाद भी इस गांव में सरकारी पेयजल योजनाओं का लाभ नहीं मिला. वह भी तब जब प्रदेश के ग्रामीण अंचलों के विकास की जिम्मेदारी सम्भाल रहे सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया इस क्षेत्र से ही विधायक हैं. (drinking water crisis in bhind)

भिंड में पेयजल संकट

भिंड में पेयजल संकटः इस तपन भरी गर्मी में भिंड जिले के अटेर क्षेत्र के ग्रामीण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं. कहने को या क्षेत्र चम्बल नदी के किनारे बसा है, लेकिन यहां की ग्राम पंचायत मघेरा खारे पानी की समस्या झेल रहा है. दुर्भाग्य इतना है कि पंचायत का ग्राम दिन्नपुरा चम्बल नदी से महज 1 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन गांव में पीने लायक पानी नहीं है. ग्रामीणों के मुताबिक गांव में न तो हैंडपम्प है और न ही सरकारी बोर. लिहाजा नदी से पानी भरने की मजबूरी है. (bhind chambal river)

bhind chambal river
भिंड चंबल नदी

कई मवेशी और बच्चों का शिकार कर चुके मगरमच्छः चम्बल नदी जलीय जीवों से सम्पन्न है. यहां डॉल्फिन जैसे दुर्लभ मछलियां भी पायी जाती हैं. इसके अलावा घड़ियाल और मगरमच्छ जैसे खूंखार जलीय जीव भी हैं. इसी वजह से ग्रामीणों को यहां पानी भरने के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है. ग्रामीणों के मुताबिक कई बार बच्चे और मवेशी इन मगरमच्छों का शिकार बन चुके हैं, लेकिन सरकारी मशीनरी ने आज तक यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम या पेयजल की व्यवस्था नहीं की है. (crocodile fear in chambal river)

water crisis in bhind
चंबल नदी से पानी भरतीं महिलाएं

पेयजल के लिए चम्बल नदी एक मात्र विकल्पः दिन्नपुरा गांव के कई लोगों ने पूरी जिंदगी पानी की जद्दोजहद में गुजार दी. सुबह का कामकाज निपटा कर गांव के लोग एक साथ चम्बल किनारे पहुंचते हैं और सिर पर मटका, साठों में बाल्टी डब्बे जो भी बर्तन पानी लाने में काम आ सके ढोकर ले जाते हैं. कुछ लोग नदी पर नजर रखते हैं. कुछ लोग पानी भरते हैं. पानी लाने और ले जाने का काम ज्यादातर महिलाओं के जिम्मे हैं. गांव में रहने वाली बिराग देवी कहती हैं कि गांव में लगे एक हैंडपंप के जरिए पानी तो आता है, लेकिन उसे पीने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. पेयजल के लिए हम लोगों को प्रतिदिन नदी पर जाना पड़ता है. लोग सुबह और शाम पानी लाने जाते हैं, जहां मगरमच्छ का भी डर रहता है. लाइनर इस समस्या को लेकर जनप्रतिनिधि और अफसरों से भी कहा लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती. घड़ियालों की वजह से पानी भरने के दौरान कई बार हादसे हो चुके हैं.

bhind news
नदी से पानी लाते छोटे बच्चे

रेत में जलते हैं पैर, नदी में मगर का ख़तराः दिन्नपुरा में ही रहने वाली एक और बुजुर्ग महिला हरप्यारी ने बताया कि इस भीषण गर्मी में नदी किनारे रेत पड़ा हुआ है, जो बेहद गर्म हो जाता है. ऐसे में जब पानी लाने के लिए जाना भी अपने आप में जद्दोजहद है. गर्म रेत पर चलने से पैर जल जाते हैं. 60 साल से यह समस्या जस के तस बनी हुई है. कपड़े धोने के लिए भी नदी के किनारे जाना पड़ता है. ऐसे में मगर का डर भी रहता है. आधे लोग इन कपड़े धोते हैं, तो दूसरे लोग मगर से बचाव के लिए नजर रखते हैं. जब मगरमच्छ आता है तो पत्थर मार कर उसे दूर रखते हैं. थोड़ी सी भी चूक जानलेवा साबित हो जाती है. पिछले साल भी एक बच्चे को मगर ने अपना शिकार बना लिया था. उसे समय रहते बचा तो लिया लेकिन इलाज के लिए भिंड जाना पड़ा था. एक लड़के की तो आज तक लाश नहीं मिली. हमारी समस्या को लेकर कोई सुनवाई नहीं होती.

सरपंच बोले- कलेक्टर का रटा रटाया जवाबः मघारा पंचायत के सरपंच ने बताया कि सालों से यहां पेयजल समस्या बरकरार है. दिन्नपुरा में सभी हैंडपंपों से खारा पानी आता है. पंचायत के पास अब हैंडपंप स्वीकृत करने का अधिकार नहीं है. हाल ही में यहां मंत्री अरविंद भदौरिया आए थे, जिन्होंने टंकी बनाने का आश्वासन दिया था. सरपंच का कहना है की लोग पेयजल के लिए चम्बल नदी पर निर्भर हैं. जब तक यह स्थाई निराकरण नहीं होता लोगों के पास पेयजल लाने के लिए नदी पर जाने के सिवाय दूसरा चारा नहीं होगा. भिंड कलेक्टर से भी जब हमने इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने भी हमेशा की तरह रटा रटाया जवाब देते हुए जल्द व्यवस्था कराए जाने की बात कही है.

Dindori Water Crisis: ग्रामीण अंचलों का जल संकट जानने के लिए सुनिए ये तुगलकी फरमान, राज्य शासन ने बुलाई बैठक

सरकार के विकास की पोल खोलती तस्वीरः एक ओर सरकार विकास की बात करती है, वहीं दिन्नपुरा गांव के हालात उन तमाम दावों की पोल खोल रहे हैं, जहां शहरी क्षेत्रों में लोग पीने के लिए पैकेज्ड वाटर ले रहे हैं. वहीं दिन्नपूरा जैसे ग्रामीण जान को खतरे में डालकर प्यास बुझा रहे हैं. सरकार की उन तमाम योजनाओं का क्या फायदा जब उनका लाभ ऐसे गम्भीर मामलों में भी काम न आ सके.

भिंड। जिले का दिन्नपुरा एक ऐसा गांव है, जहां आज भी लोग पानी के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. पेयजल व्यवस्था के लिए चम्बल नदी के किनारे बसे गांव के ग्रामीण नदी पर निर्भर हैं और मगरमच्छों के खतरे के बीच अपनी जान हथेली पर रख कर नदी से पानी भरते हैं. कई मवेशी और ग्रामीण हादसों का भी शिकार हुए हैं. बावजूद इसके 6 दशक से ज्यादा समय गुजरने के बाद भी इस गांव में सरकारी पेयजल योजनाओं का लाभ नहीं मिला. वह भी तब जब प्रदेश के ग्रामीण अंचलों के विकास की जिम्मेदारी सम्भाल रहे सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया इस क्षेत्र से ही विधायक हैं. (drinking water crisis in bhind)

भिंड में पेयजल संकट

भिंड में पेयजल संकटः इस तपन भरी गर्मी में भिंड जिले के अटेर क्षेत्र के ग्रामीण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं. कहने को या क्षेत्र चम्बल नदी के किनारे बसा है, लेकिन यहां की ग्राम पंचायत मघेरा खारे पानी की समस्या झेल रहा है. दुर्भाग्य इतना है कि पंचायत का ग्राम दिन्नपुरा चम्बल नदी से महज 1 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है, लेकिन गांव में पीने लायक पानी नहीं है. ग्रामीणों के मुताबिक गांव में न तो हैंडपम्प है और न ही सरकारी बोर. लिहाजा नदी से पानी भरने की मजबूरी है. (bhind chambal river)

bhind chambal river
भिंड चंबल नदी

कई मवेशी और बच्चों का शिकार कर चुके मगरमच्छः चम्बल नदी जलीय जीवों से सम्पन्न है. यहां डॉल्फिन जैसे दुर्लभ मछलियां भी पायी जाती हैं. इसके अलावा घड़ियाल और मगरमच्छ जैसे खूंखार जलीय जीव भी हैं. इसी वजह से ग्रामीणों को यहां पानी भरने के लिए अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ती है. ग्रामीणों के मुताबिक कई बार बच्चे और मवेशी इन मगरमच्छों का शिकार बन चुके हैं, लेकिन सरकारी मशीनरी ने आज तक यहां सुरक्षा के कोई इंतजाम या पेयजल की व्यवस्था नहीं की है. (crocodile fear in chambal river)

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चंबल नदी से पानी भरतीं महिलाएं

पेयजल के लिए चम्बल नदी एक मात्र विकल्पः दिन्नपुरा गांव के कई लोगों ने पूरी जिंदगी पानी की जद्दोजहद में गुजार दी. सुबह का कामकाज निपटा कर गांव के लोग एक साथ चम्बल किनारे पहुंचते हैं और सिर पर मटका, साठों में बाल्टी डब्बे जो भी बर्तन पानी लाने में काम आ सके ढोकर ले जाते हैं. कुछ लोग नदी पर नजर रखते हैं. कुछ लोग पानी भरते हैं. पानी लाने और ले जाने का काम ज्यादातर महिलाओं के जिम्मे हैं. गांव में रहने वाली बिराग देवी कहती हैं कि गांव में लगे एक हैंडपंप के जरिए पानी तो आता है, लेकिन उसे पीने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. पेयजल के लिए हम लोगों को प्रतिदिन नदी पर जाना पड़ता है. लोग सुबह और शाम पानी लाने जाते हैं, जहां मगरमच्छ का भी डर रहता है. लाइनर इस समस्या को लेकर जनप्रतिनिधि और अफसरों से भी कहा लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती. घड़ियालों की वजह से पानी भरने के दौरान कई बार हादसे हो चुके हैं.

bhind news
नदी से पानी लाते छोटे बच्चे

रेत में जलते हैं पैर, नदी में मगर का ख़तराः दिन्नपुरा में ही रहने वाली एक और बुजुर्ग महिला हरप्यारी ने बताया कि इस भीषण गर्मी में नदी किनारे रेत पड़ा हुआ है, जो बेहद गर्म हो जाता है. ऐसे में जब पानी लाने के लिए जाना भी अपने आप में जद्दोजहद है. गर्म रेत पर चलने से पैर जल जाते हैं. 60 साल से यह समस्या जस के तस बनी हुई है. कपड़े धोने के लिए भी नदी के किनारे जाना पड़ता है. ऐसे में मगर का डर भी रहता है. आधे लोग इन कपड़े धोते हैं, तो दूसरे लोग मगर से बचाव के लिए नजर रखते हैं. जब मगरमच्छ आता है तो पत्थर मार कर उसे दूर रखते हैं. थोड़ी सी भी चूक जानलेवा साबित हो जाती है. पिछले साल भी एक बच्चे को मगर ने अपना शिकार बना लिया था. उसे समय रहते बचा तो लिया लेकिन इलाज के लिए भिंड जाना पड़ा था. एक लड़के की तो आज तक लाश नहीं मिली. हमारी समस्या को लेकर कोई सुनवाई नहीं होती.

सरपंच बोले- कलेक्टर का रटा रटाया जवाबः मघारा पंचायत के सरपंच ने बताया कि सालों से यहां पेयजल समस्या बरकरार है. दिन्नपुरा में सभी हैंडपंपों से खारा पानी आता है. पंचायत के पास अब हैंडपंप स्वीकृत करने का अधिकार नहीं है. हाल ही में यहां मंत्री अरविंद भदौरिया आए थे, जिन्होंने टंकी बनाने का आश्वासन दिया था. सरपंच का कहना है की लोग पेयजल के लिए चम्बल नदी पर निर्भर हैं. जब तक यह स्थाई निराकरण नहीं होता लोगों के पास पेयजल लाने के लिए नदी पर जाने के सिवाय दूसरा चारा नहीं होगा. भिंड कलेक्टर से भी जब हमने इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने भी हमेशा की तरह रटा रटाया जवाब देते हुए जल्द व्यवस्था कराए जाने की बात कही है.

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सरकार के विकास की पोल खोलती तस्वीरः एक ओर सरकार विकास की बात करती है, वहीं दिन्नपुरा गांव के हालात उन तमाम दावों की पोल खोल रहे हैं, जहां शहरी क्षेत्रों में लोग पीने के लिए पैकेज्ड वाटर ले रहे हैं. वहीं दिन्नपूरा जैसे ग्रामीण जान को खतरे में डालकर प्यास बुझा रहे हैं. सरकार की उन तमाम योजनाओं का क्या फायदा जब उनका लाभ ऐसे गम्भीर मामलों में भी काम न आ सके.

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