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भिंडी ऋषि की तपोभूमि पर विराजे वनखंडेश्वर महादेव, पृथ्वीराज चौहान ने कराया था निर्माण

भिंडी ऋषि की तपोभूमि पर विराजे वनखंडेश्वर महादेव का इतिहास बेहद रोचक है. वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है.

Vankhandeshwar Temple in Bhind District
भिंड जिले में वनखंडेश्वर मंदिर
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Published : Dec 7, 2020, 7:42 PM IST

भिंड। भोलेनाथ को समर्पित एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है. जिसका निर्माण खुद पराक्रमी राजा पृथ्वीराज चौहान ने कराया था. इस मंदिर में भगवान शिव वनखंडेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं. 11वीं सदी का यह मंदिर भिंड में स्थित है. वन खंडेश्वर मंदिर में बनी शिवलिंग और पृथ्वीराज चौहान को लेकर एक किस्सा भी मशहूर है. कहा जाता है कि शिवलिंग से आशीर्वाद लेकर उन्होंने महोबा में युद्ध पर जीत हासिल की थी और इस जीत के बाद पूजा के लिए जलाई अखंड ज्योत सैकड़ों सालों से ऐसे ही प्रज्वलित है.

भगवान शिव का ऐतिसहासिक मंदिर

वनखंडेश्वर मंदिर का इतिहास

भिंडी ऋषि की तपोभूमि पर विराजे वनखंडेश्वर महादेव का इतिहास बेहद रोचक है. वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है. मंदिर के महंत पंडित वीरेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि 11वीं सदी में जब राजा पृथ्वीराज चौहान 1175ई. में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उस दौरान भिंड में उन्होंने ड़ेरा डाला था. ठहराव के दौरान उन्हें रात में सपना आया कि जमीन में शिवलिंग है. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने खुदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. पृथ्वीराज ने इस शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया और देवताओं, शिल्पकारों द्वारा मंदिर का ऐतिहासिक मठ तैयार किया गया. चूंकि तब भिंड क्षेत्र पूरा वनक्षेत्र था इसलिए शिवलिंग का नाम वनखंडेश्वर पड़ा.

वनखंडेश्वर मंदि
वनखंडेश्वर मंदि

करीब 840 सालों से जल रही अखंड ज्योत

वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के मठ में भोलेनाथ के पास सैकड़ों सालों से दो अखंड ज्योत जल रही हैं. इसके पीछे की कहानी बताते हुए महंत वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि जब पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल राजा से युद्ध में जीत हांसिल की. उसके बाद वे भिंड लौटे और पूजन कर वनखंडेश्वर महादेव के मंदिर में दो अखंड ज्योत जलाईं जो करीब पिछले 840 सालों से आज तक निरंतर जल रही हैं. इनकी देखरेख के लिए अंग्रेजों के दौर में सिंधिया घराने ने दो पुजारियों की नियुक्तियां की थी, जो मंदिर की देखरेख और अखंड ज्योत का ध्यान रखते थे. आज भी 2 पुजारी मंदिर में जल रही ज्योति की देखरेख करते हैं.

Vankhandeshwar Temple
वनखंडेश्वर महादेव

श्रावण में पूजा का है खास महत्व

वैसे तो साल में महाशिवरात्रि के दिन प्रदेश और देशभर के श्रध्दालु वनखंडेश्वर के दर्शन को पहुंचते हैं. लेकिन सावन के महीने में भोलेनाथ की अलग ही कृपा होती है. शिव पुराण में बताया गया है की श्रावण के महीने में जो भक्त श्रावण सोमवार के दिन शिवजी का अभिषेक करेगा वह समस्त कष्टों को छुटकारा पाता है और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि शिव जी आपकी श्रद्धा से खुश होते हैं जरूरी नहीं कि फल फूल जैसी चीजों से उनकी सेवा करें. सावन के महीने में कांवड़िए दूर-दूर से कांवड़ भरकर लाते हैं और शिवजी का अभिषेक करते हैं इन दिनों में यह नजारा देखने लायक होता है

लालबत्ती लगी पालकी में निकलती है शिव बारात

महाशिवरात्रि पर देवासी राज वन खंडेश्वर महाराज शिव बारात में लाल बत्ती लगी पालकी में सवार होकर बड़ी शान से निकलते हैं. वन खंडेश्वर महादेव की बारात में पूरा शहर और दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु शामिल होते हैं. इस मौके पर शिव जी का खास श्रंगार भी किया जाता है. पालकी पर चांदी का छत्र सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं. वहीं दशहरे की शाम भी वन खंडेश्वर महादेव को हीरे जवाहरात जड़े मुकुट और आभूषणों से सजाया जाता है.

भिंड। भोलेनाथ को समर्पित एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है. जिसका निर्माण खुद पराक्रमी राजा पृथ्वीराज चौहान ने कराया था. इस मंदिर में भगवान शिव वनखंडेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं. 11वीं सदी का यह मंदिर भिंड में स्थित है. वन खंडेश्वर मंदिर में बनी शिवलिंग और पृथ्वीराज चौहान को लेकर एक किस्सा भी मशहूर है. कहा जाता है कि शिवलिंग से आशीर्वाद लेकर उन्होंने महोबा में युद्ध पर जीत हासिल की थी और इस जीत के बाद पूजा के लिए जलाई अखंड ज्योत सैकड़ों सालों से ऐसे ही प्रज्वलित है.

भगवान शिव का ऐतिसहासिक मंदिर

वनखंडेश्वर मंदिर का इतिहास

भिंडी ऋषि की तपोभूमि पर विराजे वनखंडेश्वर महादेव का इतिहास बेहद रोचक है. वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है. मंदिर के महंत पंडित वीरेंद्र कुमार शर्मा बताते हैं कि 11वीं सदी में जब राजा पृथ्वीराज चौहान 1175ई. में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने जा रहे थे. उस दौरान भिंड में उन्होंने ड़ेरा डाला था. ठहराव के दौरान उन्हें रात में सपना आया कि जमीन में शिवलिंग है. जिसके बाद पृथ्वीराज चौहान ने खुदाई करवाई तो शिवलिंग निकला. पृथ्वीराज ने इस शिवलिंग की स्थापना करने का निर्णय लिया और देवताओं, शिल्पकारों द्वारा मंदिर का ऐतिहासिक मठ तैयार किया गया. चूंकि तब भिंड क्षेत्र पूरा वनक्षेत्र था इसलिए शिवलिंग का नाम वनखंडेश्वर पड़ा.

वनखंडेश्वर मंदि
वनखंडेश्वर मंदि

करीब 840 सालों से जल रही अखंड ज्योत

वनखंडेश्वर महादेव मंदिर के मठ में भोलेनाथ के पास सैकड़ों सालों से दो अखंड ज्योत जल रही हैं. इसके पीछे की कहानी बताते हुए महंत वीरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि जब पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल राजा से युद्ध में जीत हांसिल की. उसके बाद वे भिंड लौटे और पूजन कर वनखंडेश्वर महादेव के मंदिर में दो अखंड ज्योत जलाईं जो करीब पिछले 840 सालों से आज तक निरंतर जल रही हैं. इनकी देखरेख के लिए अंग्रेजों के दौर में सिंधिया घराने ने दो पुजारियों की नियुक्तियां की थी, जो मंदिर की देखरेख और अखंड ज्योत का ध्यान रखते थे. आज भी 2 पुजारी मंदिर में जल रही ज्योति की देखरेख करते हैं.

Vankhandeshwar Temple
वनखंडेश्वर महादेव

श्रावण में पूजा का है खास महत्व

वैसे तो साल में महाशिवरात्रि के दिन प्रदेश और देशभर के श्रध्दालु वनखंडेश्वर के दर्शन को पहुंचते हैं. लेकिन सावन के महीने में भोलेनाथ की अलग ही कृपा होती है. शिव पुराण में बताया गया है की श्रावण के महीने में जो भक्त श्रावण सोमवार के दिन शिवजी का अभिषेक करेगा वह समस्त कष्टों को छुटकारा पाता है और उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि शिव जी आपकी श्रद्धा से खुश होते हैं जरूरी नहीं कि फल फूल जैसी चीजों से उनकी सेवा करें. सावन के महीने में कांवड़िए दूर-दूर से कांवड़ भरकर लाते हैं और शिवजी का अभिषेक करते हैं इन दिनों में यह नजारा देखने लायक होता है

लालबत्ती लगी पालकी में निकलती है शिव बारात

महाशिवरात्रि पर देवासी राज वन खंडेश्वर महाराज शिव बारात में लाल बत्ती लगी पालकी में सवार होकर बड़ी शान से निकलते हैं. वन खंडेश्वर महादेव की बारात में पूरा शहर और दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु शामिल होते हैं. इस मौके पर शिव जी का खास श्रंगार भी किया जाता है. पालकी पर चांदी का छत्र सभी का ध्यान आकर्षित करते हैं. वहीं दशहरे की शाम भी वन खंडेश्वर महादेव को हीरे जवाहरात जड़े मुकुट और आभूषणों से सजाया जाता है.

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