भिंड। सिंध नदी (Sindh River) में तबाही का मंजर है, जिसने भी पानी का सैलाब देखा वह खौफजदा हो गया. पल पल बढ़ते पानी ने शासन प्रशासन (Bhind Administaration) की भी सांसे अटका दीं. तीन दिन सिंध का यह रौद्र रूप किनारे बसे आधा सैकड़ा गांव (Flood affected bhind villages) के लोग कभी भूल नही पाएंगे. बाढ़ ने साल भर में इकट्ठा की पूंजी, अनाज और घर को तबाह कर दिया. सैकड़ों लोगों को सेना और एनडीआरएफ ने बचाया. पुलिस और प्रशासन (Bhind police) ने भी क्षमता से आगे बढ़कर अपना सहयोग करते हुए लोगों की जानें बचायी. ऐसे हो लोगों की कहानी खुद पीड़ितों की जुबानी जानने के लिए ईटीवी भारत (ETV Bharat ground report on flood) सिंध किनारे बसे भारौली कलां गांव पहुंचा. देखिए यह खास रिपोर्ट.
बाढ़ में टापू बन गया भारौली कलां
वैसे तो भिंड में इन दिनों बाढ़ का कहर पूरे जिले में ही बरप रहा है, लेकिन सिंध नदी के बढ़े जल स्तर ने दर्जनभर गांव प्रभावित किए हैं. पानी का बहाव इतना तेज था कि जिले में सिंध पर बने दो बड़े पुल बह गए. नदी तट से पांच किलोमीटर दायरे में सिर्फ पानी ही पानी नजर आ रहा था. भारौली कलां भी पूरी तरह टापू बन चुका था. गांव मुख्य मार्ग से निचले इलाके में बसा है, जिसकी वजह से बाढ़ की चपेट में आ गया.
बाढ़ ने बर्बाद किया सब कुछ
गांव के किसान सरन सिंह ने बताया कि बाढ़ से भारौली कलां भी अछूता नहीं रहा. रात में बताया गया कि पानी गांव तक आ सकता है. 4 अगस्त को गांव में बाढ़ का पानी आ चुका था. रात में ही प्रशासन की रेस्क्यू टीम पहुंची जिसके जरिए महिलाओं और बच्चों को गांव से बाहर निकाला गया. पानी तेजी से बढ़ा. घर की छत के उपर तक पानी था, जिसकी वजह से घर में रखा सामान डूब गया. मवेशियों का चारा और घर में रखा अनाज भी पूरी तरह बर्बाद हो गया. लोग परेशान हैं. खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है.
प्रशासन ने भगवान भरोसे छोड़ा
गांव के ही ललन सिंह ने बताया कि बाढ़ के बाद खाने के लिए एक दाना नहीं बचा है. बाढ़ की वजह से हालत बहुत खराब हो चुके हैं. उन्होंने बताया कि बाढ़ का पानी तो कम हो गया है, लेकिन घर अब रहने लायक नहीं बचे हैं. प्रशासन ने मदद के नाम पर इतिश्रि कर दिया है. जब घर की छतें डूबी हुईं थी तो कोई रेस्क्यू तक के लिए नहीं आया. उन्होंने कहा कि किसी नेता और मंत्री ने सुध तक नहीं ली है. सिर्फ थानेदार हैं, जो मदद के लिए आगे आकर भोजन की व्यवस्था कर रहे है.
बह गया सब कुछ, तन पर सिर्फ कपड़े बचे
इस बाढ़ में लोगों ने अपना सब कुछ खो दिया है. भारौली के अजय सिंह कहते हैं कि नदी में पानी उतरता-चढ़ता रहता है, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस बार इतनी भयंकर बाढ़ आएगी. उन्हें इतना समय भी नहीं मिला कि अपना सामान सहेज पाते हैं. बाढ़ बढ़ी तो जल्दी से मवेशियों को लेकर पीपा के सहारे गांव के बाहर निकले. उन्होंने कहा कि बाढ़ ने सब कुछ छीन लिया मवेशी और तन पर कपड़े बचे हैं.
सड़क पर जिंदगी की गुजर-बसर
अजय सिंह की तरह ही गिरेंद्र भी गांव के बाहर एक ट्रैक्टर पर सामान लादे अपने परिवार के साथ प्लास्टिक-पल्ली का आसरा बनाकर गुजर कर रहे हैं. उन का घर भी बाढ़ में डूब गया था. कोई मदद नहीं आयी. गांव वालों की तरह अपने बेटे के साथ तैर कर सुरक्षित स्थान पर पहुंच गए. जब पानी उतर गया तो घर रहने लायक नहीं बचा. ऐसे में जो सामान उपयोग लायका था, उसे ट्रैक्टर में रखकर सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे बसेरा बनाकर रह रहे हैं.
अब आसान नहीं राह
बाढ़ ने गांव के गांव तबाह कर दिए हैं. सामान से लेकर अनाज तक सब कुछ बर्बाद हो गया है. ऐसे में इन किसानों के लिए अब साल भर घर का खर्च चलने की समस्या खड़ी हो गई है. जिनके सिर छत भी नहीं बची, वे अब कहां रहेंगे. नेता भी महज मदद का आश्वासन देकर चले जाते हैं.
सरकार से मुआवजे की आस
बाढ़ पीड़ित लोगों का कहना है कि इस आपदा के बाद वह खुद को बेसहारा और लाचार महसूस कर रहे हैं. अब उन्हें सिर्फ सरकार से आस है कि वे मदद के लिए आगे आकर मुआवजा दें, तो फिर से जिंदगी पटरी पर आए. सरकार ने घोषणाएं भी की हैं कि नुकसान की भरपायी होगी. जिनके घर टूटे हैं, उन्हें नए आवास मिलेंगे. जिनके मवेशी नही बचे उन्हें मुआवजा दिया जाएगा. राशन पानी तो बांटा जा रहा है, लेकिन वह लम्बे समय के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे में सरकार को सिर्फ घोषणाओं से बढ़कर जल्द से जल्द इन पीड़ितों की मदद करने के लिए आगे आना चाहिए.