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Save Environment: भिंड के संजीव ने पर्यावरण के नाम किया जीवन, एक दशक में लगाए 3 हजार पौधे, 2500 पेड़ बनकर तैयार

मध्य प्रदेश के भिंड के रहने वाले संजीव बरुआ, जोकि पर्यावरण प्रेमी हैं. लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित तो कर ही रहे हैं, खुद भी पौधारोपण कर प्राकृति को बचाने का काम कर रहे हैं. संजीव पिछले एक दशक में अब तक करीब 3000 पौधे लगा चुके हैं, जिनमें से करीब 2500 पौधे आज पेड़ बनकर खड़े हैं.

environment day nature lover sanjeev barua
पर्यावरण दिवस प्रकृति प्रेमी संजीव बरुआ
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Published : Jun 7, 2022, 6:59 AM IST

भिंड। पूरी दुनिया में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य देश-दुनिया में लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक करना है. बीते वर्षों में पृथ्वी के जल वायु में काफी परिवर्तन आया है. आधुनिकता और विकासशील होने की दौड़ में देश-दुनिया की सरकारें और लोग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. बड़ी इमारते, अच्छी सड़के देश-दुनिया की तस्वीर बदल रहीं हैं, लेकिन विकसित होने के प्रयास में हम पर्यावरण का दोहन करते जा रहे हैं. बड़े-बड़े हाईवे बनाने के चक्कर मे हर साल हजारों-लाखों पेड़ काट दिए जाते हैं. इसी के दुष्प्रभाव हैं कि, हमारे देश में भी भारी जल वायु परिवर्तन देखने को मिल रहा है. इस पर्यावरण दिवस के मौके हम आपको ऐसे शख्स के बारे बता रहे हैं, जिन्होंने अपना जीवन प्रकृति को बचाने के लिए समर्पित कर दिया है.

Bhind Sanjeev Barua did his life in name of environment
भिंड के संजीव बरुआ ने पर्यावरण के नाम किया जीवन

आने वाली पीढ़ियों के लिए पेड़ लगने शुरू किए: मध्यप्रदेश के भिंड में रहने वाले संजीव बरुआ, मूल रूप से किसान हैं और LIC के कर्मचारी हैं. लेकिन पर्यावरण के लिए उनके प्रेम ने उनके जीवन को अलग मुकाम दिया है. भिंड शहर के दबोहा गांव के पास रहने वाले संजीव बीते एक दशक से पौधा रोपण कर रहे हैं. वे प्रतिवर्ष करीब 300 पौधे लगाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं. उनके लगाये कई पौधे आज पेड़ बन चुके हैं. पेड़ लगाने के जुनून की शुरुआत उन्होंने अपने भतीजे की वजह से की थी. संजीव बरुआ ने बताया कि सालों पहले उनके छोटे भतीजे ने उनसे पर्यावरण संबंधी कुछ ऐसे सवाल पूछे, जिनका जवाब उनके पास नहीं था. लेकिन उन्हें इस बात का अहसास जरूर हो गया कि, समय रहते पेड़ नहीं लगाये तो इसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को जरूर भुगतने पड़ेंगे. इसी के बाद से उन्होंने पौधारोपण करना शुरू किया, जो निरन्तर जारी है.

बदमाशों ने फिल्म 'पुष्पा' स्टाइल में की चंदन लकड़ी की चोरी, मजिस्ट्रेट के बंगले से ही काट ले गए पेड़

जीवनकाल में 3 हजार पौधे लगाये, 2500 पेड़ बनकर तैयार: संजीव बरुआ के मुताबिक वे पिछले एक दशक में करीब 3000 पौधे लगा चुके हैं. संजीव कहते हैं कि वे प्रतिवर्ष 300 पौधे लगाते हैं, खासकर पर्यावरण दिवस पर प्रतिवर्ष करीब 200 पौधे लगाते हैं. इसके बाद साल भर उनकी देखभाल करते हैं. हालांकि उनके लगाये पौधों में से करीब 2500 पौधे आज पेड़ बनकर खड़े हैं. संजीव ने बताया कि इस अंतर की वजह यह है कि कभी-कभार आवारा मवेशी इन पौधों को नुकसान पहुंचा देते हैं या कुछ पौधे सफल नहीं हो पाते. फिर भी इस बात की उन्हें खुशी है कि उनका प्रयास जरूर सफल हो रहा है.

Sanjeev Barua planted three thousand saplings in a decade
संजीव बरुआ ने एक दशक में लगाए तीन हजार पौधे

गिर रहा भूजल स्तर, फसलों पर भी असर: संजीव बरुआ कहते हैं कि जिस तरह हम विकास के नाम पर प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं, ये हमारे भविष्य के लिए ठीक नहीं है. पेड़ों की जबरन कटाई हमें ग्लोबल वार्मिंग की तरफ धकेल रही है. इसके कई प्रकार के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं, कृषि की दृष्टि ने फसलों को नुकसान हो रहा है. भूजलस्तर लगातार गिर रहा है, जिसकी वजह रबी की फसलें कमजोर पैदावार हो गयी हैं. पहले की अपेक्षा में अब जो फलदार पौधे जैसे आम के फल उतने प्रभावी नहीं होते है. क्योंकि पौध रोपण में भी भूजल स्तर की कमी से ऊपरी मिट्टी सख्त हो गयी है, जबकि आम के पेड़ के लिए मिट्टी में 50 फीसदी नमी होनी चाहिए.

Twenty five hundred saplings planted by Sanjeev Barua are ready as trees
संजीव बरुआ के लगाए पच्चीस सौ पौधे पेड़ बनकर तैयार

प्रदेश में सबसे कम पेड़ भिंड की जमीन पर: एक बड़ा नुकसान पेड़ काटे जाने की वजह से यह भी हुआ है कि, पृथ्वी पर गर्मी तेजी से बढ़ रही है. पर्यवरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ोतरी हो रही है. वायु प्रदूषण भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है. यह सभी जानते हैं कि पेड़ डाइऑक्साइड को ऑफ जरुर करते हैं, पर शुद्ध ऑक्सीजन छोड़ते हैं. लेकिन इसी तरह पेड़ काटना जारी रहा तो, आगे हालात और भी खराब होंगे. इसलिए पेड़ों का लगना बहुत जरूरी है. वर्तमान में देश और प्रदेश का हरित भूमि औसत 21.67 प्रतिशत हैं. यानी इस औसत भूमि पर पौधे हैं, लेकिन भिंड जिले में महज 16 फीसदी जमीन पर ही पेड़ बचे हैं. ऐसे में उन तमाम समस्याओं से निपटने का एक मात्र उपाय यही है कि पुराने छायादार वृक्षों को काटने से रोक जाए और नए पौधे लगाये जाएं. क्योंकि जिन स्थानों पर पेड़ एक साथ लगाये जाते हैं, उस स्थान का तापमान भी अन्य जगहों के मुकाबले कम होता है.

पौधरोपण के लिए मुक्तिधाम सबसे उपयुक्त जगह: संजीव के मुताबिक पेड़ लगाने के लिए उन्होंने मुक्तिधाम यानी शमशान घाटों की जमीन का चयन किया है. उनका कहना है कि शुरुआत में पेड़ लगाने के लिए शासकीय भूमि के नाम पर जमीन मिलना मुश्किल था, चूंकि लोगों की निजी जमीन पर पेड़ लगाने में विवाद हो सकता था. इसलिए सरकारी परिसर का चुनाव किया, शासकीय स्कूलों में पौधे रोपते, लेकिन स्कूलों में भी आजकल कभी भी विकास के नाम पर भवन निर्माण या अन्य विकास कार्य शुरू हो जाते हैं. जिसके चलते बिना सोचे समझे पेड़ काट दिए जाते हैं. ऐसे में मुक्तिधाम उन्हें सबसे उपयुक्त स्थान लगा, जहां पौधे पेड़ बनने के बाद छाया देंगे और इनके काटे जाने का भी डर नही रहेगा. वैसे भी मुक्तिधाम सबसे पवित्र स्थान माना जाता है, संजीव मानते हैं कि उनके लगाये पेड़ हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सौगात हैं. जो उन्हें स्वास्थ्य और स्वच्छ हवा देने का काम करेंगे और प्रकृति से जुड़ाव के लिए जागरूक करेंगे.

भिंड। पूरी दुनिया में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य देश-दुनिया में लोगों को प्रकृति के प्रति जागरूक करना है. बीते वर्षों में पृथ्वी के जल वायु में काफी परिवर्तन आया है. आधुनिकता और विकासशील होने की दौड़ में देश-दुनिया की सरकारें और लोग तेजी से आगे बढ़ रहे हैं. बड़ी इमारते, अच्छी सड़के देश-दुनिया की तस्वीर बदल रहीं हैं, लेकिन विकसित होने के प्रयास में हम पर्यावरण का दोहन करते जा रहे हैं. बड़े-बड़े हाईवे बनाने के चक्कर मे हर साल हजारों-लाखों पेड़ काट दिए जाते हैं. इसी के दुष्प्रभाव हैं कि, हमारे देश में भी भारी जल वायु परिवर्तन देखने को मिल रहा है. इस पर्यावरण दिवस के मौके हम आपको ऐसे शख्स के बारे बता रहे हैं, जिन्होंने अपना जीवन प्रकृति को बचाने के लिए समर्पित कर दिया है.

Bhind Sanjeev Barua did his life in name of environment
भिंड के संजीव बरुआ ने पर्यावरण के नाम किया जीवन

आने वाली पीढ़ियों के लिए पेड़ लगने शुरू किए: मध्यप्रदेश के भिंड में रहने वाले संजीव बरुआ, मूल रूप से किसान हैं और LIC के कर्मचारी हैं. लेकिन पर्यावरण के लिए उनके प्रेम ने उनके जीवन को अलग मुकाम दिया है. भिंड शहर के दबोहा गांव के पास रहने वाले संजीव बीते एक दशक से पौधा रोपण कर रहे हैं. वे प्रतिवर्ष करीब 300 पौधे लगाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं. उनके लगाये कई पौधे आज पेड़ बन चुके हैं. पेड़ लगाने के जुनून की शुरुआत उन्होंने अपने भतीजे की वजह से की थी. संजीव बरुआ ने बताया कि सालों पहले उनके छोटे भतीजे ने उनसे पर्यावरण संबंधी कुछ ऐसे सवाल पूछे, जिनका जवाब उनके पास नहीं था. लेकिन उन्हें इस बात का अहसास जरूर हो गया कि, समय रहते पेड़ नहीं लगाये तो इसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को जरूर भुगतने पड़ेंगे. इसी के बाद से उन्होंने पौधारोपण करना शुरू किया, जो निरन्तर जारी है.

बदमाशों ने फिल्म 'पुष्पा' स्टाइल में की चंदन लकड़ी की चोरी, मजिस्ट्रेट के बंगले से ही काट ले गए पेड़

जीवनकाल में 3 हजार पौधे लगाये, 2500 पेड़ बनकर तैयार: संजीव बरुआ के मुताबिक वे पिछले एक दशक में करीब 3000 पौधे लगा चुके हैं. संजीव कहते हैं कि वे प्रतिवर्ष 300 पौधे लगाते हैं, खासकर पर्यावरण दिवस पर प्रतिवर्ष करीब 200 पौधे लगाते हैं. इसके बाद साल भर उनकी देखभाल करते हैं. हालांकि उनके लगाये पौधों में से करीब 2500 पौधे आज पेड़ बनकर खड़े हैं. संजीव ने बताया कि इस अंतर की वजह यह है कि कभी-कभार आवारा मवेशी इन पौधों को नुकसान पहुंचा देते हैं या कुछ पौधे सफल नहीं हो पाते. फिर भी इस बात की उन्हें खुशी है कि उनका प्रयास जरूर सफल हो रहा है.

Sanjeev Barua planted three thousand saplings in a decade
संजीव बरुआ ने एक दशक में लगाए तीन हजार पौधे

गिर रहा भूजल स्तर, फसलों पर भी असर: संजीव बरुआ कहते हैं कि जिस तरह हम विकास के नाम पर प्रकृति को नुकसान पहुँचा रहे हैं, ये हमारे भविष्य के लिए ठीक नहीं है. पेड़ों की जबरन कटाई हमें ग्लोबल वार्मिंग की तरफ धकेल रही है. इसके कई प्रकार के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं, कृषि की दृष्टि ने फसलों को नुकसान हो रहा है. भूजलस्तर लगातार गिर रहा है, जिसकी वजह रबी की फसलें कमजोर पैदावार हो गयी हैं. पहले की अपेक्षा में अब जो फलदार पौधे जैसे आम के फल उतने प्रभावी नहीं होते है. क्योंकि पौध रोपण में भी भूजल स्तर की कमी से ऊपरी मिट्टी सख्त हो गयी है, जबकि आम के पेड़ के लिए मिट्टी में 50 फीसदी नमी होनी चाहिए.

Twenty five hundred saplings planted by Sanjeev Barua are ready as trees
संजीव बरुआ के लगाए पच्चीस सौ पौधे पेड़ बनकर तैयार

प्रदेश में सबसे कम पेड़ भिंड की जमीन पर: एक बड़ा नुकसान पेड़ काटे जाने की वजह से यह भी हुआ है कि, पृथ्वी पर गर्मी तेजी से बढ़ रही है. पर्यवरण में कार्बन डाई ऑक्साइड की बढ़ोतरी हो रही है. वायु प्रदूषण भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है. यह सभी जानते हैं कि पेड़ डाइऑक्साइड को ऑफ जरुर करते हैं, पर शुद्ध ऑक्सीजन छोड़ते हैं. लेकिन इसी तरह पेड़ काटना जारी रहा तो, आगे हालात और भी खराब होंगे. इसलिए पेड़ों का लगना बहुत जरूरी है. वर्तमान में देश और प्रदेश का हरित भूमि औसत 21.67 प्रतिशत हैं. यानी इस औसत भूमि पर पौधे हैं, लेकिन भिंड जिले में महज 16 फीसदी जमीन पर ही पेड़ बचे हैं. ऐसे में उन तमाम समस्याओं से निपटने का एक मात्र उपाय यही है कि पुराने छायादार वृक्षों को काटने से रोक जाए और नए पौधे लगाये जाएं. क्योंकि जिन स्थानों पर पेड़ एक साथ लगाये जाते हैं, उस स्थान का तापमान भी अन्य जगहों के मुकाबले कम होता है.

पौधरोपण के लिए मुक्तिधाम सबसे उपयुक्त जगह: संजीव के मुताबिक पेड़ लगाने के लिए उन्होंने मुक्तिधाम यानी शमशान घाटों की जमीन का चयन किया है. उनका कहना है कि शुरुआत में पेड़ लगाने के लिए शासकीय भूमि के नाम पर जमीन मिलना मुश्किल था, चूंकि लोगों की निजी जमीन पर पेड़ लगाने में विवाद हो सकता था. इसलिए सरकारी परिसर का चुनाव किया, शासकीय स्कूलों में पौधे रोपते, लेकिन स्कूलों में भी आजकल कभी भी विकास के नाम पर भवन निर्माण या अन्य विकास कार्य शुरू हो जाते हैं. जिसके चलते बिना सोचे समझे पेड़ काट दिए जाते हैं. ऐसे में मुक्तिधाम उन्हें सबसे उपयुक्त स्थान लगा, जहां पौधे पेड़ बनने के बाद छाया देंगे और इनके काटे जाने का भी डर नही रहेगा. वैसे भी मुक्तिधाम सबसे पवित्र स्थान माना जाता है, संजीव मानते हैं कि उनके लगाये पेड़ हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सौगात हैं. जो उन्हें स्वास्थ्य और स्वच्छ हवा देने का काम करेंगे और प्रकृति से जुड़ाव के लिए जागरूक करेंगे.

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