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Rakshabandhan 2023: पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसे हुई रक्षाबंधन की शुरुआत, जानिए इस त्योहार के अस्तित्व में आने की पूरी कहानी - राजा बलि ने मांग वरदान

भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व रक्षाबंधन 30 अगस्त को है. इस वर्ष भी हर बार की तरह राखी पर्व को लेकर लोगों में गजब का उत्साह है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रक्षाबंधन की शुरुआत कैसे और किसने की. इस पर्व के जनक कौन हैं. आपको ये सारी जानकारी बता रहे हैं हम.

Rakshabandhan 2023
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसे हुई रक्षाबंधन की शुरुआत
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 28, 2023, 7:08 AM IST

भिंड। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर त्योहार किसी पौराणिक घटना से जुड़ा होता है. ऐसी ही कथाओं पर आधारित होने के चलते सनातन धर्म में त्योहारों को पूजा अर्चना और पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है. भाई-बहन के प्रेम को समर्पित है ये त्योहार. इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र के रूप में राखी बांधती है. भाई उसको रक्षा का वचन देता है. ज्योतिष शास्त्री पंडित प्रणयन एम पाठक के अनुसार रक्षाबंधन को लेकर कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं हैं लेकिन असल में यह त्योहार माता लक्ष्मी और असुर देव बलि से जुड़ा हुआ है.

राजा बलि से जुड़ी है कथा : पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि असुर वंश के राजा प्रह्लाद के पौत्र थे राजा बलि. जिन्होंने कठोर तपस्या कर पर्याप्त यश और राज्य प्राप्त किया था. प्रजा भी सुखी थी. राजा बलि को दानदाता कहा जाता था. क्योंकि उनके द्वार से कभी कोई ख़ाली हाथ नहीं लौटता था लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अपने साम्राज्य और दान का घमंड होने लगा. उनके साम्राज्य के मंत्री और सलाहकारों ने आग में घी डालने का काम किया. राजा बलि स्वर्ग प्राप्ति का सपना देखने लगे. ये मंशा भांपते ही राजा इंद्रदेव को अपने सिंहासन का भय व्याप्त होने लगा. इससे घबरा कर इन्द्र देव श्री विष्णु भगवान की शरण में जा पहुंचे और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की.

भगवान विष्णु वामन अवतार में : इंद्र की प्रार्थना पर उदार होकर भगवान विष्णु वामन अवतार में ब्राह्मण वेश में राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे. राजा बलि ने भी अपने अहंकार में उन्हें मनचाहा दान देने का वचन दे दिया. जिस पर वामन बने श्री विष्णु ने राजा से भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली. दानी राजा बलि ने भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए उन्हें तीन पग भूमि दान में दे दी. भगवान ने अपना चमत्कार दिखाया और एक पग में स्वर्गलोक और दूसरे पग में पृथ्वीलोक नाप लिया. लेकिन अभी तीसरा पग रखना बाकी था. जब भगवान विष्णु ने उससे तीसरा पग रखने का स्थान पूछा तो राजा बलि के सामने संकट खड़ा हो गया. राजा बलि ने वचन निभाने के लिए अपना सिर वामन अवतार के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे शीश पर रख दीजिए. भगवान विष्णु के पैर रखते ही बलि परलोक पहुंच गया.

राजा बलि ने मांगा वरदान : मान्यता है कि बलि द्वारा जिस तरह अपने वचन का पालन किया गया, उससे भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने के लिये कहा. राज बलि ने रात-दिन भगवान विष्णु को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया. ऐसे में श्री विष्णु भगवान को अपने वचन का पालन करने के लिए राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा. इस वचन के चलते अब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ विष्णु लोक में नहीं रह सकते थे. इस समस्या के समाधान के माता लक्ष्मी ने देवऋषि नारद से सलाह मांगी.

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मां लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधा : नारद ने माता लक्ष्मी को एक उपाय सुझाया. लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसके हाथ पर रक्षा सूत्र के रूप में कलावा बांध अपना भाई बना लिया और उससे उपहार के रूप में अपने पति भगवान श्री विष्णु को अपने साथ विष्णु लोक ले आई. जिस दिन यह यह प्रसंग घटित हुआ, उस समय श्रावण मास चल रहा था और दिन पूर्णिमा थी. तभी से रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाने लगा.

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक कथाओं, मान्यताओं और ज्योतिषविदों की जानकारी के आधार पर है, ETV Bharat इसके पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता है.

भिंड। हिंदू मान्यताओं के अनुसार हर त्योहार किसी पौराणिक घटना से जुड़ा होता है. ऐसी ही कथाओं पर आधारित होने के चलते सनातन धर्म में त्योहारों को पूजा अर्चना और पूरे परिवार के साथ मनाया जाता है. भाई-बहन के प्रेम को समर्पित है ये त्योहार. इस दिन बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र के रूप में राखी बांधती है. भाई उसको रक्षा का वचन देता है. ज्योतिष शास्त्री पंडित प्रणयन एम पाठक के अनुसार रक्षाबंधन को लेकर कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं हैं लेकिन असल में यह त्योहार माता लक्ष्मी और असुर देव बलि से जुड़ा हुआ है.

राजा बलि से जुड़ी है कथा : पौराणिक कथाओं में जिक्र है कि असुर वंश के राजा प्रह्लाद के पौत्र थे राजा बलि. जिन्होंने कठोर तपस्या कर पर्याप्त यश और राज्य प्राप्त किया था. प्रजा भी सुखी थी. राजा बलि को दानदाता कहा जाता था. क्योंकि उनके द्वार से कभी कोई ख़ाली हाथ नहीं लौटता था लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अपने साम्राज्य और दान का घमंड होने लगा. उनके साम्राज्य के मंत्री और सलाहकारों ने आग में घी डालने का काम किया. राजा बलि स्वर्ग प्राप्ति का सपना देखने लगे. ये मंशा भांपते ही राजा इंद्रदेव को अपने सिंहासन का भय व्याप्त होने लगा. इससे घबरा कर इन्द्र देव श्री विष्णु भगवान की शरण में जा पहुंचे और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की.

भगवान विष्णु वामन अवतार में : इंद्र की प्रार्थना पर उदार होकर भगवान विष्णु वामन अवतार में ब्राह्मण वेश में राजा बलि के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे. राजा बलि ने भी अपने अहंकार में उन्हें मनचाहा दान देने का वचन दे दिया. जिस पर वामन बने श्री विष्णु ने राजा से भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली. दानी राजा बलि ने भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए उन्हें तीन पग भूमि दान में दे दी. भगवान ने अपना चमत्कार दिखाया और एक पग में स्वर्गलोक और दूसरे पग में पृथ्वीलोक नाप लिया. लेकिन अभी तीसरा पग रखना बाकी था. जब भगवान विष्णु ने उससे तीसरा पग रखने का स्थान पूछा तो राजा बलि के सामने संकट खड़ा हो गया. राजा बलि ने वचन निभाने के लिए अपना सिर वामन अवतार के आगे कर दिया और कहा तीसरा पग आप मेरे शीश पर रख दीजिए. भगवान विष्णु के पैर रखते ही बलि परलोक पहुंच गया.

राजा बलि ने मांगा वरदान : मान्यता है कि बलि द्वारा जिस तरह अपने वचन का पालन किया गया, उससे भगवान विष्णु अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान मांगने के लिये कहा. राज बलि ने रात-दिन भगवान विष्णु को अपने सामने रहने का वचन मांग लिया. ऐसे में श्री विष्णु भगवान को अपने वचन का पालन करने के लिए राजा बलि का द्वारपाल बनना पडा. इस वचन के चलते अब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के साथ विष्णु लोक में नहीं रह सकते थे. इस समस्या के समाधान के माता लक्ष्मी ने देवऋषि नारद से सलाह मांगी.

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डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी पौराणिक कथाओं, मान्यताओं और ज्योतिषविदों की जानकारी के आधार पर है, ETV Bharat इसके पूर्ण सत्य होने का दावा नहीं करता है.

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