भिंड। मजदूरी के कार्यों में अब जेसीबी की आवाज सुनाई दे रही है. मामला यह है कि गर्मी में पेयजल संकट से निपटने के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार ने प्रत्येक जिले के ग्रामीण इलाकों में नवीन तालाब और पुराने तालाबों की मरम्मत कार्य किए जाने का फैसला लिया है. इसके तहत भिंड जिले में भी करीब 100 नए तालाब बनाए जा रहे हैं. इन तालाबों के निर्माण में मनरेगा मजदूरों की जगह खुदाई के लिए मशीनों का उपयोग हो रहा है. कोविड के दौरान खुद प्रदेश के गृह मंत्री ने विकास कार्यों में मशीनों से खुदाई पर रोक लगायी थी. लेकिन अब भिंड में हालत इसके उलट दिखाई दे रहे हैं. जानिए क्या है इसकी वजह इस रिपोर्ट के जरिए…
तालाब खोदती रहीं मशीनें: जिला प्रशासन के मुखिया और कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस इन दिनों लगातार क्षेत्र के अलग ग्राम में प्रस्तावित नवीन तालाब का निरीक्षण कर रहे हैं. इस दौरान ग्राम पंचायत डगर और रजपुरा में जेसीबी मशीन के जरिए हो रही तालाब की खुदाई की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं. मशीनों के जरिए कार्य कराने की वजह से मनरेगा मजदूरों को खुदाई का कार्य नहीं मिल पा रहा है. जिससे उनको आय दिलाने की सरकार की मंशा पर पानी फिरता नजर आ रहा है. बिना कार्य लिए मजदूरों को भुगतान नहीं किया जा सकता है. साथ ही मनरेगा कार्यों में मशीनों की उपयोगिता का कोई सीधा प्रावधान नहीं है. इससे मिट्टी के साथ ही ये मशीनें मजदूरों का पेट भी काट रहीं हैं.
जुलाई से पहले तैयार होंगे 100 तालाब: कलेक्टर सतीश कुमार के दौरे के दौरान जेसीबी की खुदाई की तस्वीर सोशल मीडिया पर भिंड कलेक्टर के अकाउंट से पोस्ट की गयी. जब इस सम्बंध में उनसे बात की गयी तो उन्होंने बताया कि वर्षाकाल में जल संचलन के प्रयास में प्रदेश शासन ने प्रत्येक जिले में 100 तालाबों के निर्माण की व्यवस्था की है. जिससे बरसात के समय में जिले में भी हर तालाब में 10 घन मीटर पानी इकट्ठा किया जा सके. इसको लेकर 15 जून से पहले कम से कम 100 तालाबों का निर्माण किया जा रहा है.
मजदूरों की जगह मशीनों के इस्तेमाल का ‘लूपहोल’: तालाब निर्माण में हो रही खुदाई के लिए मशीनों के उपयोग को लेकर पूछे सवाल पर कलेक्टर ने बताया कि निर्माण के लिए इस बार शासन ने ग्रामीण विकास विभाग के तहत मनरेगा योजना में मशीनरी उपयोग के लिए सीमित व्यवस्था है. इसलिए अन्य योजनाओं के माध्यम से जन सहयोग और सीएसआर फंड्स को समाहित करने का फैसला लिया है. चूंकि मनरेगा में मजदूरी खर्चों में बदलाव या कमी नहीं की जा सकती है इसलिए मैटेरियल कम्पोनेंट में मशीनरी के लिए सीमित व्यवस्था का प्रावधान किया है. ऐसे में भुगतान के लिए अन्य योजनाओं और जनसहयोग को समाहित किया जा रहा है.
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शासन ने रखा यह प्रावधान: जिला कलेक्टर ने यह भी बताया कि शासन ने इस बार यह भी प्रावधान रखा है कि अगर मनरेगा के मैटेरियल कम्पोनेंट में मशीनरी नहीं आ रही हो, तो हार्ड सर्फेस होने से समय की बचत और कार्य को जल्दी खत्म करने के लिए अन्य योजनाओं के फंड को समाहित किया जा सकता है. जिससे मशीनों के उपयोग का प्रतिबंध नहीं रहे. ये बदलाव फिलहाल पूरे प्रदेश के लिए किए गए हैं. जिससे ज्यादा से ज्यादा तालाबों का निर्माण किया जा सके.
काम के लिए भटक रहे मनरेगा मजदूर: मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने कोरोना के दौरान लौटे प्रवासी मजदूरों को आय उपलब्ध कराने की दृष्टि से ग्रामीण इलाकों में होने वाले विकास और निर्माण कार्यों में मनरेगा मजदूरों की उपयोगिता अनिवार्य की थी. गृह मंत्री ने सभी पंचायतों को चेतावनी दी थी की किसी भी पंचायत में मशीनों का उपयोग बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. लेकिन अब भिंड कलेक्टर की बातों से इतना तो साफ है की सरकार ने मशीनों के उपयोग से तालाबों की खुदाई का एक विकल्प खोज लिया है. इसका असर भी मनरेगा मजदूरों की आय पर होना तो निश्चित ही है. लेकिन सवाल यह भी उठता है की जब मजदूरों का काम मशीने करेंगी तो उन्हें काम कैसे मिलेगा और कैसे उनके परिवारों का पेट भरेगा.
(MGNREGA Scheme in MP) (Pond digging with machines in bhind) (Problems of MNREGA workers)