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कोरोना ने उजाड़ा परिवार, मां-बाप का साया उठने के बाद भीख मांग रहे बच्चे, श्मशान में मिला था आसरा

कोरोना काल में अनाथ बच्चों के लिए सरकार ने कई योजना बनाई, लेकिन यह योजनाएं जमीनी स्तर पर कारगर होती नहीं दिख रही है, ऐसे में अनाथ मासूम बच्चे भीख मांगकर अपना गुजारा करने को मजबूर हैं.

orphan children
कोरोना ने उजड़ा परिवार
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Published : Aug 27, 2021, 5:45 PM IST

Updated : Aug 28, 2021, 1:18 PM IST

भिंड। कोरोना महामारी ने लाखों परिवार तबाह कर दिए, अपने परिजनों को खोने का गम सिर्फ़ वही जानते हैं, जिन्होंने इस बीमारी अपनों को लड़ते देखा है, कोरोना में कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनके परिजन गुजरने के बाद घर चलाने वाला कोई नहीं बचा है, कई मासूम जिंदगियां अनाथ हो गईं.

कोरोना ने उजड़ा परिवार

कोरोना ने उजाड़ा परिवार

ऐसे ही अनाथ बच्चों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी योजनाओं की घोषणा की थी, जिसने आर्थिक सहायता के साथ पेंशन और मुफ्त पढ़ाई का प्रावधान है, लेकिन कागजी ख़ानापूर्ति के नाम पर भिंड जिले के दबोह इलाके में एक परिवार कोरोना से उजड़ गया, माता पिता का साया 5 मासूम बच्चों के सिर से उठ गया, हालत यह है कि ये अनाथ बच्चे भूखों मरने की कगार पर है, गांव में भीख मांग कर पेट पालने को मजबूर हैं. लेकिन शासन प्रशासन की ओर से उन्हें कोई मदद अब तक मुहैया नहीं हो सकी है.

पीएम केयर फ़ॉर चिल्ड्रन योजना हो रही फेल

दरअसल भिंड के दबोह के अमाहा गांव में जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते प्रधानमंत्री की पीएम केयर फ़ॉर चिल्ड्रन योजना और मुख्यमंत्री की सीएम कोविड बाल कल्याण योजना का लाभ इन बेसहारा और अनाथ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है, जो कोरोना से अपने मां बाप को खोने के बाद पिछले 10 महीने से गांव में भीख मांग कर पेट भर रहे हैं.

भीख मांग कर पेट भर रहे बच्चे

अमाहा गांव के राघवेंद्र वाल्मीकि और उनकी पत्नी गिरिजा ने दस महीने पहले कोरोना के चलते अपनी जान गवां दी थी, और अपने पीछे 5 मासूम बच्चों को छोड़ गए, माता-पिता के मौत के बाद से ही मासूम बच्चे भूख मिटाने के लिए दर दर भटकने को मजबूर हैं, 5 बच्चों में सबसे बड़ी बेटी की उम्र महज 7 साल है, जबकि सबसे छोटा बच्चा 7 महीने का है. ये भाई-बहन पेट पालने के लिए हर रोज गांव से मिलने वाली भीख के मोहताज हैं, बड़ी बेटी घर-घर जाकर खाना मांगती है, जिससे उनका पेट भरता है.

बारिश में श्मशान में गुजारते हैं रातें

मां बाप की मौत के बाद उनका घर तो रहने के लिए है, लेकिन कच्ची झोपड़ी जो कभी गिर सकती है, जिसकी वजह से ये अनाथ बच्चे बारिश में पास बने श्मशान के तीन शेड में रातें गुजारते हैं, क्योंकि मिट्टी की झोपड़ी बारिश में कभी धराशायी हो सकती है.

कागजी कार्रवाई में अटका भविष्य

ऐसा नहीं है कि जिम्मेदार इनके हालात से वाकिफ नहीं हैं. लेकिन सचिव महोदय कागजी में का हवाला देते हुए, वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का इंतजार करने की मजबूरी जताते हैं. सचिव अशोक पारासर का कहना है कि इन बच्चों के पास कोई भी दस्तावेज नहीं है, गांव में कनेक्टिविटी नहीं होने से इन बच्चों के ना तो परिवार ID बन पाया, ना ही आधार कार्ड, जिसकी वजह से कोरोना से मौत होने पर परिजनों को योजना का लाभ नहीं मिल पाया.

जनप्रतिनिधियों को नहीं फुर्सत

कहने को भिंड जिले में जनप्रतिनिधियों की कमी नहीं है, जिले में तीन मंत्री हैं, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया इतनी नाकामी के बाद भी जिला प्रशासन की तारीफों के कसीदे कसते नहीं थकते, राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया भी जनता के सखियों में साथ खड़े होने की बात कहते नजर आते हैं, लेकिन उनका भी इस ओर कोई ध्यान नहीं गया, वहीं भाजपा सांसद संध्या राय कहने को दो जिलों की जिम्मेदारी सम्भाल रही हैं, लेकिन उनके जिले में मासूमों की हालत की उन्हें जानकारी तक नहीं है, उनके किसी प्रतिनिधि या कार्यकर्ता ने उन्हें बताना मुनासिब समझा.

नेता लूट रहे वाहवाही, बच्चे भीख मांगने को मजबूर

कुल मिलाकर सर्किट योजनाओं में फीता काटकर फोटो खिंचाने वाले इन जैन प्रतिनिधियों में किसी ने इन मासूम बच्चों का दर्द समझने लिए जहमत तक नहीं उठाई. वहीं विपक्षी विधायक डॉ गोविंद सिंह ने ऊंट के मुंह में जीरे के सामान दो हजार रुपए की आर्थिक सहायता देकर वाहवाही लूटने का प्रयास ज़रूर किया है.

कोरोना में अनाथ हुए 30 हजार से ज्यादा बच्चे: मदद की दरकार, मासूमों के नाम पर फंड उगाहने वालों से सावधान

आज भी इन बच्चों के आगे जीवन के कई संघर्ष हैं, लेकिन इन कागजी कार्रवाइयों के नाम पर मासूमों की भूख को भी नजर अन्दाज किया जा रहा है, इन मासूमों की सामान्य ग्राम पंचायत स्तर पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई, ज़िम्मेदारों को संवेदनशील होकर इन अनाथ बच्चों के लिए व्यवस्थाएं बनाने योजनाओं लाभ दिलाने और सिर पर छत मुहैया कराने की दरकार है, सांसद ने भी जल्द कलेक्टर से बात करने का आश्वासन तो दिया है, लेकिन लगता है कि तब तक मासूमों को फिर भीख मांग कर ही भूख मिटानी पड़ेगी.

भिंड। कोरोना महामारी ने लाखों परिवार तबाह कर दिए, अपने परिजनों को खोने का गम सिर्फ़ वही जानते हैं, जिन्होंने इस बीमारी अपनों को लड़ते देखा है, कोरोना में कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनके परिजन गुजरने के बाद घर चलाने वाला कोई नहीं बचा है, कई मासूम जिंदगियां अनाथ हो गईं.

कोरोना ने उजड़ा परिवार

कोरोना ने उजाड़ा परिवार

ऐसे ही अनाथ बच्चों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी योजनाओं की घोषणा की थी, जिसने आर्थिक सहायता के साथ पेंशन और मुफ्त पढ़ाई का प्रावधान है, लेकिन कागजी ख़ानापूर्ति के नाम पर भिंड जिले के दबोह इलाके में एक परिवार कोरोना से उजड़ गया, माता पिता का साया 5 मासूम बच्चों के सिर से उठ गया, हालत यह है कि ये अनाथ बच्चे भूखों मरने की कगार पर है, गांव में भीख मांग कर पेट पालने को मजबूर हैं. लेकिन शासन प्रशासन की ओर से उन्हें कोई मदद अब तक मुहैया नहीं हो सकी है.

पीएम केयर फ़ॉर चिल्ड्रन योजना हो रही फेल

दरअसल भिंड के दबोह के अमाहा गांव में जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते प्रधानमंत्री की पीएम केयर फ़ॉर चिल्ड्रन योजना और मुख्यमंत्री की सीएम कोविड बाल कल्याण योजना का लाभ इन बेसहारा और अनाथ बच्चों को नहीं मिल पा रहा है, जो कोरोना से अपने मां बाप को खोने के बाद पिछले 10 महीने से गांव में भीख मांग कर पेट भर रहे हैं.

भीख मांग कर पेट भर रहे बच्चे

अमाहा गांव के राघवेंद्र वाल्मीकि और उनकी पत्नी गिरिजा ने दस महीने पहले कोरोना के चलते अपनी जान गवां दी थी, और अपने पीछे 5 मासूम बच्चों को छोड़ गए, माता-पिता के मौत के बाद से ही मासूम बच्चे भूख मिटाने के लिए दर दर भटकने को मजबूर हैं, 5 बच्चों में सबसे बड़ी बेटी की उम्र महज 7 साल है, जबकि सबसे छोटा बच्चा 7 महीने का है. ये भाई-बहन पेट पालने के लिए हर रोज गांव से मिलने वाली भीख के मोहताज हैं, बड़ी बेटी घर-घर जाकर खाना मांगती है, जिससे उनका पेट भरता है.

बारिश में श्मशान में गुजारते हैं रातें

मां बाप की मौत के बाद उनका घर तो रहने के लिए है, लेकिन कच्ची झोपड़ी जो कभी गिर सकती है, जिसकी वजह से ये अनाथ बच्चे बारिश में पास बने श्मशान के तीन शेड में रातें गुजारते हैं, क्योंकि मिट्टी की झोपड़ी बारिश में कभी धराशायी हो सकती है.

कागजी कार्रवाई में अटका भविष्य

ऐसा नहीं है कि जिम्मेदार इनके हालात से वाकिफ नहीं हैं. लेकिन सचिव महोदय कागजी में का हवाला देते हुए, वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों का इंतजार करने की मजबूरी जताते हैं. सचिव अशोक पारासर का कहना है कि इन बच्चों के पास कोई भी दस्तावेज नहीं है, गांव में कनेक्टिविटी नहीं होने से इन बच्चों के ना तो परिवार ID बन पाया, ना ही आधार कार्ड, जिसकी वजह से कोरोना से मौत होने पर परिजनों को योजना का लाभ नहीं मिल पाया.

जनप्रतिनिधियों को नहीं फुर्सत

कहने को भिंड जिले में जनप्रतिनिधियों की कमी नहीं है, जिले में तीन मंत्री हैं, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया इतनी नाकामी के बाद भी जिला प्रशासन की तारीफों के कसीदे कसते नहीं थकते, राज्यमंत्री ओपीएस भदौरिया भी जनता के सखियों में साथ खड़े होने की बात कहते नजर आते हैं, लेकिन उनका भी इस ओर कोई ध्यान नहीं गया, वहीं भाजपा सांसद संध्या राय कहने को दो जिलों की जिम्मेदारी सम्भाल रही हैं, लेकिन उनके जिले में मासूमों की हालत की उन्हें जानकारी तक नहीं है, उनके किसी प्रतिनिधि या कार्यकर्ता ने उन्हें बताना मुनासिब समझा.

नेता लूट रहे वाहवाही, बच्चे भीख मांगने को मजबूर

कुल मिलाकर सर्किट योजनाओं में फीता काटकर फोटो खिंचाने वाले इन जैन प्रतिनिधियों में किसी ने इन मासूम बच्चों का दर्द समझने लिए जहमत तक नहीं उठाई. वहीं विपक्षी विधायक डॉ गोविंद सिंह ने ऊंट के मुंह में जीरे के सामान दो हजार रुपए की आर्थिक सहायता देकर वाहवाही लूटने का प्रयास ज़रूर किया है.

कोरोना में अनाथ हुए 30 हजार से ज्यादा बच्चे: मदद की दरकार, मासूमों के नाम पर फंड उगाहने वालों से सावधान

आज भी इन बच्चों के आगे जीवन के कई संघर्ष हैं, लेकिन इन कागजी कार्रवाइयों के नाम पर मासूमों की भूख को भी नजर अन्दाज किया जा रहा है, इन मासूमों की सामान्य ग्राम पंचायत स्तर पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई, ज़िम्मेदारों को संवेदनशील होकर इन अनाथ बच्चों के लिए व्यवस्थाएं बनाने योजनाओं लाभ दिलाने और सिर पर छत मुहैया कराने की दरकार है, सांसद ने भी जल्द कलेक्टर से बात करने का आश्वासन तो दिया है, लेकिन लगता है कि तब तक मासूमों को फिर भीख मांग कर ही भूख मिटानी पड़ेगी.

Last Updated : Aug 28, 2021, 1:18 PM IST
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