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MP Bhind दोबारा शुरू होगी कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना, 42 साल में 4 से 125 करोड़ हो गई लागत

चंबल क्षेत्र के लिए वर्षों पहले स्वीकृत हुई कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना (Kanera udvahan irrigation project) को एनजीटी की आधिकारिक तौर पर हरी झंडी मिल गई है. 12 साल के लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर इस सिंचाई परियोजना का काम जल्द शुरू होगा. खास बात यह है कि परियोजना की लागत 42 साल में 4 से 125 करोड़ हो गई है. 1980 में शुरू हुई यह परियोजना आज तक क्यों नहीं हो सकी पूरी. क्या और किसको होगा इससे लाभ जानिए, ETV Bharat की इस ख़ास रिपोर्ट में.

Kanera udvahan irrigation project start again
MP Bhind दोबारा शुरू होगी कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना
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Published : Dec 26, 2022, 7:02 PM IST

भिंड। चंबल क्षेत्र के भिंड ज़िले में ‘कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना’ की एक दशक बाद नींव रखी गई और काम शुरू हुआ. लेकिन कुछ वर्षों के बाद ग्रहण की तरह इस सिंचाई परियोजना में रोड़े लगते गए और 2010 में एनजीटी की रोक के साथ काम पूरी तरह ठप हो गया और ठंडे बस्ते में चला गया. अब हाल ही में पर्यावरण विभाग से इस परियोजना को क्लीयरेंस मिल गया है और एक बार फिर इसका काम जल्द शुरू हो सकता है. कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना साल 1977 में अस्तित्व में आयी. जब इसकी प्लानिंग की गई थी. साल 1980 में यह धरातल पर आयी, तब से आज तक इस परियोजना का तीन बार शिलान्यास हो चुका है.

1980 में स्वीकृत हुई थी परियोजना : सबसे पहले 1980 में अटेर से तत्कालीन विधायक शिवशंकर समाधिया इस परियोजना को स्वीकृत करा कर लाए और तत्कालीन संसदीय सचिव रहे जाहर शर्मा से इसका शिलान्यास कराया. बजट आवंटन के अभाव में कुछ वक़्त बाद काम रुक गया. इसके बाद जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार आयी तो 1986 में अटेर के तत्कालीन विधायक सत्यदेव कटारे ने प्रयास किए और माधवराव सिंधिया ने इसका दोबारा शिलान्यास किया. लेकिन इस बार भी कुछ समय बाद कनेरा सिंचाई परियोजना को ग्रहण लगा और काम बंद हो गया. इसके बाद वर्ष 2008 में अटेर से विधायक अरविंद भदौरिया ने प्रयास किए और परियोजना को एक बार फिर जीवंत किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों इसका तीसरी बार शिलान्यास कराया लेकिन दो वर्ष बाद एक बार फिर यह योजना कम बंद होने के साथ ठंडे बस्ते में चली गई.

चार दशक में 125 करोड़ पर पहुंच गई लागत : इस परियोजना को बनाने का उद्देश्य उस समय भिंड ज़िले के अटेर क्षेत्र के 96 गांवों के किसानों को लाभ देने और 15,500 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करना था. साल 1980 में जब ज़मीनी स्तर और इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ उस दौरान इस योजना की लागत भी क़रीब 3 करोड़ 97 लाख 59 हज़ार 800 रुपय थी. जिसमें 2006 तक 3 करोड़ 61 लाख रुपय खर्च हो चुके थे. जबकि 2008 तक इसकी लागत बढ़कर 90 करोड़ रुपय तक पहुंच गई थी. वहीं एक बार फिर ये प्रोजेक्ट अब रिवाइव होगा और इसकी लागत अब क़रीब 125 करोड़ रुपये होने वाली है.

पहले ‘बजट’ ने रोका फिर वन विभाग ने ठप कराई : मध्यप्रदेश सरकार की किसान हितैषी इस कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना के सितारे शुरू से ही गर्दिश में चलते आ रहे हैं. 1980 में शिलान्यास के बाद जहां बजट ना मिलने से काम रुका था वहीं 1986 में भी परियोजना दोबारा शुरू हुई लेकिन दो साल में बजट के अभाव से एक बार फिर काम बंद हुआ और योजना ठंडे बस्ते में चली गई वहीं तीसरी बार जब 2008 में इसकी शुरुआत हुई तब वन विभाग द्वारा इस परियोजना के अन्तर्गत आ रही घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में निर्माण करने के लिए पर्यावरण विभाग की अनुमति ना लेने को लेकर सिंचाई विभाग को पत्र लिख कर आपत्ति दायर की गई. लेकिन अधिकारियों की ढीलपोल के चलते 2010 में इस परियोजना पर रोक लगा दी गई.

मंत्री भदौरिया बोले- हमने पूरा प्रयास किया : हाल में भिंड आये प्रदेश के सहकारिता मंत्री और अटेर से वर्तमान विधायक डॉ.अरविंद भदौरिया ने बताया कि ये परियोजना एक बार फिर शुरू होने जा रही है. मंत्री ने कहा कि वे पिछले चार वर्षों से इस कार्य के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे. पर्यावरण मंत्री से मुलाक़ात से लेकर विभिन्न समितियों की बैठकों में बताई गई कमियों को पूरा करने के बाद अक्टूबर में आयोजित हुई पर्यावरण मंत्रालय की राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थाई समिति की 70वीं बैठक में कनेरा सिंचाई परियोजना को अनुमति मिल गई है. साथ ही इस सिंचाई परियोजना के लिए घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में इंटकवेल निर्माण के लिए 0.95 हैक्टेयर जमीन भी स्वीकृत की गई है. जिसके लिए ऑन रिकॉर्ड सभी आधिकारिक प्रक्रिया 11 दिसंबर को पूरी कर ली गई है.

अगले महीने शुरू होगा निर्माण कार्य : मंत्री भदौरिया ने यह भी बताया कि अभी इस योजना में 20 करोड़ रुपये पड़े हुए हैं. इस प्रोजेक्ट की रिवाइव एस्टिमेट के लिए भी आवेदन कर दिया गया है. अब यह पूरा प्रोजेक्ट 125 करोड़ रुपय की लागत से तैयार होगा. इसके साथ ही बताया कि आने वाले एक माह के भीतर ही परियोजना का निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा, इस परियोजना से अब क्षेत्र की 15 हज़ार हेक्टेयर से ज़्यादा कृषि भूमि को सिंचित किया जा सकेगा.

Kanera udvahan irrigation project start again
MP Bhind दोबारा शुरू होगी कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना

भोपाल- इंदौर की तर्ज पर पेयजल की व्यवस्था : इस परियोजना के लिए दूसरी प्लानिंग भी सरकार ने कर रखी है. सहकारिता मंत्री के मुताबिक जिस तरह होशंगाबाद से नर्मदा का पानी राजधानी भोपाल की प्यास बुझाता है, जिस तरह ओमकारेश्वर से इंदौर पानी ले जाया गया. ठीक उसी तरह कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना के ज़रिए फ़िल्टर प्लांट स्थापित कर चम्बल का पानी अटेर क्षेत्र के 140 गांवों के लोगों को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने की भी प्लानिंग है.

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शर्तों के साथ मिली परियोजना को हरी झंडी : कनेरा नहर परियोजना को पूरा करना अब भी आसान नहीं होगा. क्योंकि इस परियोजना के लिए अनुमति भी कुछ शर्तों के साथ मिली हैं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 4 नवंबर को जारी पत्र में बताया गया है कि इस परियोजना के तहत होने वाले निर्माण के लिए प्रस्तावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि वन, वन्य जीवन और उसके आवासों को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. साथ ही चंबल सेंचुरी में डॉल्फ़िन और घड़ियाल के संरक्षण के लिए चंबल नदी में मंत्रालय द्वारा गठित की जाने वाली समिति द्वारा सुझाए गए न्यूनतम प्रवाह स्तर को बनाए रखना होगा. जब नदी का जल स्तर कम होगा या जलीय जीवों के लिए पानी पर्याप्त नहीं होगा है तो सिंचाई के लिए पानी नहीं दिया जाएगा.

भिंड। चंबल क्षेत्र के भिंड ज़िले में ‘कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना’ की एक दशक बाद नींव रखी गई और काम शुरू हुआ. लेकिन कुछ वर्षों के बाद ग्रहण की तरह इस सिंचाई परियोजना में रोड़े लगते गए और 2010 में एनजीटी की रोक के साथ काम पूरी तरह ठप हो गया और ठंडे बस्ते में चला गया. अब हाल ही में पर्यावरण विभाग से इस परियोजना को क्लीयरेंस मिल गया है और एक बार फिर इसका काम जल्द शुरू हो सकता है. कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना साल 1977 में अस्तित्व में आयी. जब इसकी प्लानिंग की गई थी. साल 1980 में यह धरातल पर आयी, तब से आज तक इस परियोजना का तीन बार शिलान्यास हो चुका है.

1980 में स्वीकृत हुई थी परियोजना : सबसे पहले 1980 में अटेर से तत्कालीन विधायक शिवशंकर समाधिया इस परियोजना को स्वीकृत करा कर लाए और तत्कालीन संसदीय सचिव रहे जाहर शर्मा से इसका शिलान्यास कराया. बजट आवंटन के अभाव में कुछ वक़्त बाद काम रुक गया. इसके बाद जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार आयी तो 1986 में अटेर के तत्कालीन विधायक सत्यदेव कटारे ने प्रयास किए और माधवराव सिंधिया ने इसका दोबारा शिलान्यास किया. लेकिन इस बार भी कुछ समय बाद कनेरा सिंचाई परियोजना को ग्रहण लगा और काम बंद हो गया. इसके बाद वर्ष 2008 में अटेर से विधायक अरविंद भदौरिया ने प्रयास किए और परियोजना को एक बार फिर जीवंत किया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथों इसका तीसरी बार शिलान्यास कराया लेकिन दो वर्ष बाद एक बार फिर यह योजना कम बंद होने के साथ ठंडे बस्ते में चली गई.

चार दशक में 125 करोड़ पर पहुंच गई लागत : इस परियोजना को बनाने का उद्देश्य उस समय भिंड ज़िले के अटेर क्षेत्र के 96 गांवों के किसानों को लाभ देने और 15,500 हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करना था. साल 1980 में जब ज़मीनी स्तर और इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ उस दौरान इस योजना की लागत भी क़रीब 3 करोड़ 97 लाख 59 हज़ार 800 रुपय थी. जिसमें 2006 तक 3 करोड़ 61 लाख रुपय खर्च हो चुके थे. जबकि 2008 तक इसकी लागत बढ़कर 90 करोड़ रुपय तक पहुंच गई थी. वहीं एक बार फिर ये प्रोजेक्ट अब रिवाइव होगा और इसकी लागत अब क़रीब 125 करोड़ रुपये होने वाली है.

पहले ‘बजट’ ने रोका फिर वन विभाग ने ठप कराई : मध्यप्रदेश सरकार की किसान हितैषी इस कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना के सितारे शुरू से ही गर्दिश में चलते आ रहे हैं. 1980 में शिलान्यास के बाद जहां बजट ना मिलने से काम रुका था वहीं 1986 में भी परियोजना दोबारा शुरू हुई लेकिन दो साल में बजट के अभाव से एक बार फिर काम बंद हुआ और योजना ठंडे बस्ते में चली गई वहीं तीसरी बार जब 2008 में इसकी शुरुआत हुई तब वन विभाग द्वारा इस परियोजना के अन्तर्गत आ रही घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में निर्माण करने के लिए पर्यावरण विभाग की अनुमति ना लेने को लेकर सिंचाई विभाग को पत्र लिख कर आपत्ति दायर की गई. लेकिन अधिकारियों की ढीलपोल के चलते 2010 में इस परियोजना पर रोक लगा दी गई.

मंत्री भदौरिया बोले- हमने पूरा प्रयास किया : हाल में भिंड आये प्रदेश के सहकारिता मंत्री और अटेर से वर्तमान विधायक डॉ.अरविंद भदौरिया ने बताया कि ये परियोजना एक बार फिर शुरू होने जा रही है. मंत्री ने कहा कि वे पिछले चार वर्षों से इस कार्य के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे. पर्यावरण मंत्री से मुलाक़ात से लेकर विभिन्न समितियों की बैठकों में बताई गई कमियों को पूरा करने के बाद अक्टूबर में आयोजित हुई पर्यावरण मंत्रालय की राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थाई समिति की 70वीं बैठक में कनेरा सिंचाई परियोजना को अनुमति मिल गई है. साथ ही इस सिंचाई परियोजना के लिए घड़ियाल सेंचुरी क्षेत्र में इंटकवेल निर्माण के लिए 0.95 हैक्टेयर जमीन भी स्वीकृत की गई है. जिसके लिए ऑन रिकॉर्ड सभी आधिकारिक प्रक्रिया 11 दिसंबर को पूरी कर ली गई है.

अगले महीने शुरू होगा निर्माण कार्य : मंत्री भदौरिया ने यह भी बताया कि अभी इस योजना में 20 करोड़ रुपये पड़े हुए हैं. इस प्रोजेक्ट की रिवाइव एस्टिमेट के लिए भी आवेदन कर दिया गया है. अब यह पूरा प्रोजेक्ट 125 करोड़ रुपय की लागत से तैयार होगा. इसके साथ ही बताया कि आने वाले एक माह के भीतर ही परियोजना का निर्माण कार्य शुरू कराया जाएगा, इस परियोजना से अब क्षेत्र की 15 हज़ार हेक्टेयर से ज़्यादा कृषि भूमि को सिंचित किया जा सकेगा.

Kanera udvahan irrigation project start again
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भोपाल- इंदौर की तर्ज पर पेयजल की व्यवस्था : इस परियोजना के लिए दूसरी प्लानिंग भी सरकार ने कर रखी है. सहकारिता मंत्री के मुताबिक जिस तरह होशंगाबाद से नर्मदा का पानी राजधानी भोपाल की प्यास बुझाता है, जिस तरह ओमकारेश्वर से इंदौर पानी ले जाया गया. ठीक उसी तरह कनेरा उद्वहन सिंचाई परियोजना के ज़रिए फ़िल्टर प्लांट स्थापित कर चम्बल का पानी अटेर क्षेत्र के 140 गांवों के लोगों को शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने की भी प्लानिंग है.

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शर्तों के साथ मिली परियोजना को हरी झंडी : कनेरा नहर परियोजना को पूरा करना अब भी आसान नहीं होगा. क्योंकि इस परियोजना के लिए अनुमति भी कुछ शर्तों के साथ मिली हैं पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 4 नवंबर को जारी पत्र में बताया गया है कि इस परियोजना के तहत होने वाले निर्माण के लिए प्रस्तावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि वन, वन्य जीवन और उसके आवासों को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए. साथ ही चंबल सेंचुरी में डॉल्फ़िन और घड़ियाल के संरक्षण के लिए चंबल नदी में मंत्रालय द्वारा गठित की जाने वाली समिति द्वारा सुझाए गए न्यूनतम प्रवाह स्तर को बनाए रखना होगा. जब नदी का जल स्तर कम होगा या जलीय जीवों के लिए पानी पर्याप्त नहीं होगा है तो सिंचाई के लिए पानी नहीं दिया जाएगा.

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