भिंड। मेहगांव में स्थित दंदरौआ सरकार डॉक्टर हनुमान के नाम से जाने जाते हैं. हनुमानजी के आगे डॉक्टर शब्द सुनते अजीब लग रहा है. लेकिन यहां के भक्तों की मानें तो मंदिर में विराजे हनुमानजी सभी असाध्य रोगों का इलाज करते हैं. खासकर फोड़े-फुंसी, और चर्मरोग का. खास बात ये है कि यहां हनुमानजी को कैंसर विशेषज्ञ भी माना जाता है.
देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु रोज भगवान के दर्शन के लिए आते हैं. डॉक्टर हनुमान उनके सभी असाध्य रोगों का सटीक इलाज करते हैं. मध्यप्रदेश के भिंड जिले के मेहगांव के पास स्थित दंदरौआ धाम प्रसिद्ध डॉक्टर हनुमान का प्रसिद्ध मंदिर है. इस मंदिर की खास बात ये है कि यहां हजारों भक्त अपनी जानलेवा बीमारियों का भी इलाज कराने आते हैं. खासकर यहां कैंसर के मरीज अपना इलाज कराने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में हनुमानजी खुद अपने एक भक्त का इलाज करने डॉक्टर बनकर यहां आए थे.
दंदरौआ धाम के महंत का कहना है कि हनुमान जी जिसका इलाज करने यहां आए थे. वो एक साधु थे और लंबे समय से उनको कैंसर था. उन्हे हनुमान जी ने मंदिर में डॉक्टर के वेश में दर्शन दिए थे. वो गर्दन में आला डाले थे, जिसके बाद साधु पूरी तरह स्वस्थ हो गया. श्रद्धालुओं का मानना है कि डॉक्टर हनुमान के पास सभी प्रकार के रोगों का कारगर इलाज है.
कैसे करते हैं इलाज
इस मंदिर में हनुमान जी की चमत्कारी भभूति से रोगों को खत्म किया जाता है. दूर-दूर से भक्त अपने रोगों के निदान के लिए हनुमानजी की चौखट पर आते हैं. श्रद्धा पूर्वक शीश झुका कर अपने रोग को मिटाने की विनती करते हैं. मंदिर की परिक्रमा लगाना भी रोग मुक्ति का एक मार्ग है. मंदिर से उन्हें ये भभूति प्रसाद के रूप में दी जाती है. जिसे वो पूर्ण भक्ति भावना से ग्रहण करते हैं. और जल्द ही रोगमुक्त हो जाते हैं.
बता दें मंदिर में हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है. ये नृत्य मुद्रा है. उनका चेहरा भी वानर के स्थान पर बाला के रूप में है. उनकी गदा उनके हाथ के बजाय बगल से रखी है. उनका स्वरूप विग्रह वात्सल्य भाव को दर्शाता है. ये तुलसीदास की रामचरितमानस की चौपाई से मेल खाती है. जो कहती है "एक सखी सीए संग बिहाई गई रही देखन फुलवाई." यह प्रसंग तुलसीदास ने पुष्प वाटिका के प्रसंग में भगवान श्री राम से माता जानकी को मिलाने के लिए हनुमान जी को भेष बदलकर जानकी की सखियों में सखी चारूबाला के रूप में बताया था.
दंदरौआ का इतिहास
दंदरौआ गांव 900 बीघा कृषि और 900 बीघा रकवा की भूमि रखने वाला छोटा गुर्जर बाहुल्य गांव है. जो एक समय में राणा धौलपुर (राजस्थान) के आधिपत्य में था. जब राणा यहां से धौलपुर वापस जाने लगे तो गुर्जर क्षत्रिय वंश के चंदेल राजाओं के वंशज ग्वालियर के अरोरा के निवासी कुंवर अमृत सिंह ने खरीद लिया था. कहा जाता है कि कुंवर अमृत सिंह (मितबाबा) के आने के समय हनुमान जी की ये प्रतिमा नीम के पेड़ के अंदर छुपी थी. जब किसी निर्माण कार्य के लिए इस नीम को काटा गया तो उस दौरान औजारों से टकराने से तेज आवाज आई. तो सावधानी से पेड़ को हटाने पर गोपी विषधारी हनुमान जी की मूर्ति प्राप्त हुई. जिसे वहां मिट्टी के चबूतरे पर स्थापित कराया गया.आज ये जगह दंदरौआ धाम के नाम से प्रसिद्ध है.