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अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा सैकड़ों साल पुराना ऐतिहासिक किला, सैलानियों को यहां आने में लगता है डर

भिंड जिले में देवगिरी पर्वत पर बना 375 पुराना ऐतिहासिक किला आज देखरेख के अभाव के चलते बर्बाद हो रहा है. लेकिन प्रशासन किले की रखरखाव होनी की पर्याप्त व्यवस्था बता रहा है.

अटेर किला ऐतिहासिक धरोहर
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Published : Aug 24, 2019, 3:47 PM IST

भिंड। महाभारत काल के देवगिरी पर्वत पर बना ऐतिहासिक अटेर किला आज अपनी दुर्दशा पर बदहाली के आंसू बहा रहा है. लगभग 375 साल पुराना ऐतिहासिक किला मरम्मत और देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अटेर किले में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रृंखला उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये है कि जिस प्राचीर पर कभी भदौरिया वंश की विजय पताका फहराया करती थी. वही आज खंडहर में तब्दील हो गई है.

अटेर किला ऐतिहासिक धरोहर

भिंड से करीब 28 किलोमीटर दूर अटेर में बने भव्य देवगिरी दुर्ग का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह, महा सिंह और बखत सिंह ने सन 1664 से 1668 के काल में किया गया था. इनके नाम पर इस क्षेत्र को भदावर के नाम से जाना जाता था. किला की अधिकांश इमारतें धराशाई होकर अपनी दुर्दशा की कहानी खुद बयां कर रही हैं. पर्यटक केके यादव का कहना है कि प्रशासन ने पर्यटन के नाम पर बड़े- बड़े बोर्ड तो लगा रखे हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर इस किले में कुछ नहीं है. ना सैलानियों को कोई यहां बताने वाला है और ना ही सुरक्षा के लिहाज से कोई गार्ड मौजूद रहता है.

पर्यटकों का कहना है कि यह अटेर किला ऐतिहासिक किला है, लेकिन देखरेख के अभाव के चलते कई इमारतों में बदबू फैली हुई है. इस वजह से सैलानियों को घूमने में दिक्कत आती है.जब अटेर करे कीले की बदहाली को लेकर पुरातत्व विभाग से बात की गई तो अधिकारियों का कहना है कि किले पर रखरखाव की पर्याप्त व्यवस्था है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां की पूर्ण व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही अधिकारी सैलानियों की संख्या कम आने की बात खुद मान रहे है.

चंबल के बीहाड़ों में बसा ये अटेर किला सैकड़ों किवदंती, कई सौ किस्सों और ना जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए है. लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर अनदेखी का शिकार झेल रही है और देखरेख के अभाव में यह बेशकीमती किला नष्ट होने की कगार पर है.

भिंड। महाभारत काल के देवगिरी पर्वत पर बना ऐतिहासिक अटेर किला आज अपनी दुर्दशा पर बदहाली के आंसू बहा रहा है. लगभग 375 साल पुराना ऐतिहासिक किला मरम्मत और देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अटेर किले में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रृंखला उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये है कि जिस प्राचीर पर कभी भदौरिया वंश की विजय पताका फहराया करती थी. वही आज खंडहर में तब्दील हो गई है.

अटेर किला ऐतिहासिक धरोहर

भिंड से करीब 28 किलोमीटर दूर अटेर में बने भव्य देवगिरी दुर्ग का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह, महा सिंह और बखत सिंह ने सन 1664 से 1668 के काल में किया गया था. इनके नाम पर इस क्षेत्र को भदावर के नाम से जाना जाता था. किला की अधिकांश इमारतें धराशाई होकर अपनी दुर्दशा की कहानी खुद बयां कर रही हैं. पर्यटक केके यादव का कहना है कि प्रशासन ने पर्यटन के नाम पर बड़े- बड़े बोर्ड तो लगा रखे हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर इस किले में कुछ नहीं है. ना सैलानियों को कोई यहां बताने वाला है और ना ही सुरक्षा के लिहाज से कोई गार्ड मौजूद रहता है.

पर्यटकों का कहना है कि यह अटेर किला ऐतिहासिक किला है, लेकिन देखरेख के अभाव के चलते कई इमारतों में बदबू फैली हुई है. इस वजह से सैलानियों को घूमने में दिक्कत आती है.जब अटेर करे कीले की बदहाली को लेकर पुरातत्व विभाग से बात की गई तो अधिकारियों का कहना है कि किले पर रखरखाव की पर्याप्त व्यवस्था है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां की पूर्ण व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही अधिकारी सैलानियों की संख्या कम आने की बात खुद मान रहे है.

चंबल के बीहाड़ों में बसा ये अटेर किला सैकड़ों किवदंती, कई सौ किस्सों और ना जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए है. लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर अनदेखी का शिकार झेल रही है और देखरेख के अभाव में यह बेशकीमती किला नष्ट होने की कगार पर है.

Intro:भिंड जिला मुख्यालय से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अटेर का ऐतिहासिक किला आज अपनी दुर्दशा पर खुद ही आंसू बहा रहा है लगभग 375 साल पुराना ऐतिहासिक किला आवश्यक मरम्मत व देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है अटेर के लिए में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रंखला प्रशासनिक उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोते जा रहे हैं जिस प्राचीर पर कभी भदौरिया वंश की विजय पताका फहराया करती थी वही आज खंडहर में तब्दील हो गई है


Body:महाभारत में जिस देवगिरी पर्वत का जिक्र है उसी देवगिरी पर्वत पर बना है अटेर का किला भिंड के अटेर का किला देवगिरी दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है ऐतिहासिक किले को देखने हर साल हजारों सैलानी पहुंचते हैं लेकिन देखरेख के अभाव में यह ऐतिहासिक धरोहर अब खंडहर में तब्दील होती जा रही है भिंड से करीब 28 किलोमीटर दूर अटेर में बने भव्य देवगिरी दुर्ग का निर्माण भदोरिया राजा बदन सिंह, महा सिंह और बखत सिंह द्वारा 1664 से 1668 के काल में किया गया था इनके नाम पर इस क्षेत्र को भदावर के नाम से जाना जाता था यह चंबल की गहरी वादियों के अंदर स्थित है वर्तमान में अखंड हर अवस्था में किला की अधिकांश इमारतें धराशाई होकर अपनी दुर्दशा की कहानी खुद बयां कर रही हैं यहां दूसरे राज्यों से आने वाले पर्यटकों का भी कहना है कि ऐतिहासिक किला है लेकिन इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा यदि किले की देखभाल होती है तो यह पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध होकर लोगों को रोजगार भी मुहैया करा सकता है केंद्रीय पुरातत्व विभाग के आगे निकला जीर्ण शीर्ण हालत में है जिसकी दीवारों और छत टूट कर गिर रही हैं हल्की हवा चलने पर ही किले के अंदर से पत्थरों के गिरने की आवाजें आती हैं ऐसे में आने वाले सैलानी भी खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं इतना ही नहीं किले में नियमित सफाई नहीं होने के कारण कई इमारतों में बदबू फैली हुई है साथ ही जगह-जगह लगे चरणों की सुंदरता में ग्रहण लगा रहे हैं।

केके यादव, पर्यटक
राकेश सिंह राठौर, पर्यटक
जितेंद्र राठौर, पर्यटक

जब अटेर करे की बदहाली को लेकर पुरातत्व विभाग से बात की गई तो अधिकारियों का कहना है कि किले पर रखरखाव की पर्याप्त व्यवस्था है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां की पूर्ण व्यवस्था की गई है साथ ही पर्यटन को लेकर के कहा कि अकेला एकांत में बना हुआ है यहां के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं है पर्यटकों के लिए पर्याप्त सहूलियत नहीं है ऐसे में बाहर से आने वाले पर्यटक बहुत ही कम पहुंच पाते हैं।

बाइट- वीरेंद्र पांडे, वरिष्ठ मार्गदर्शक, पुरातत्व विभाग


Conclusion:देशभर में लोग भिंड जिले को बीहड़ों और डकैतों के लिए जानते हैं लेकिन पर्यटन के लिहाज से भी समृद्ध शादी है चंबल के बीहड़ों की ऊंची नीची तन्हाइयों में बने पुरातत्व महत्व के स्मारक मंदिर और दुर्ग बहुत अनूठे हैं मगर प्रसार प्रचार और देखरेख के अभाव में यह बेशकीमती ऐतिहासिक संप्रदाय अब नष्ट होने की कगार पर हैं

भिंड से ईटीवी भारत के लिए पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट
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