भिंड। महाभारत काल के देवगिरी पर्वत पर बना ऐतिहासिक अटेर किला आज अपनी दुर्दशा पर बदहाली के आंसू बहा रहा है. लगभग 375 साल पुराना ऐतिहासिक किला मरम्मत और देखभाल के अभाव में खंडहर में तब्दील होता जा रहा है. अटेर किले में एक के बाद एक महल और कलात्मक चित्रों की श्रृंखला उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोते जा रहे हैं. आलम ये है कि जिस प्राचीर पर कभी भदौरिया वंश की विजय पताका फहराया करती थी. वही आज खंडहर में तब्दील हो गई है.
भिंड से करीब 28 किलोमीटर दूर अटेर में बने भव्य देवगिरी दुर्ग का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह, महा सिंह और बखत सिंह ने सन 1664 से 1668 के काल में किया गया था. इनके नाम पर इस क्षेत्र को भदावर के नाम से जाना जाता था. किला की अधिकांश इमारतें धराशाई होकर अपनी दुर्दशा की कहानी खुद बयां कर रही हैं. पर्यटक केके यादव का कहना है कि प्रशासन ने पर्यटन के नाम पर बड़े- बड़े बोर्ड तो लगा रखे हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर इस किले में कुछ नहीं है. ना सैलानियों को कोई यहां बताने वाला है और ना ही सुरक्षा के लिहाज से कोई गार्ड मौजूद रहता है.
पर्यटकों का कहना है कि यह अटेर किला ऐतिहासिक किला है, लेकिन देखरेख के अभाव के चलते कई इमारतों में बदबू फैली हुई है. इस वजह से सैलानियों को घूमने में दिक्कत आती है.जब अटेर करे कीले की बदहाली को लेकर पुरातत्व विभाग से बात की गई तो अधिकारियों का कहना है कि किले पर रखरखाव की पर्याप्त व्यवस्था है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां की पूर्ण व्यवस्था की गई है. इसके साथ ही अधिकारी सैलानियों की संख्या कम आने की बात खुद मान रहे है.
चंबल के बीहाड़ों में बसा ये अटेर किला सैकड़ों किवदंती, कई सौ किस्सों और ना जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए है. लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर अनदेखी का शिकार झेल रही है और देखरेख के अभाव में यह बेशकीमती किला नष्ट होने की कगार पर है.