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अन्नदाता की यही पुकार, बर्बाद हुई फसलों का मुआवजा दे सरकार - सर्वे का दावा कितना सही

भिंड में चंबल नदी में आई बाढ़ ने किसानों की लाखों हेक्टेयर फसलों को बर्बाद कर दिया. जब बाढ़ उतरी तो सरकार ने प्रभावित किसानों को 30 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर मुआवजे की घोषणा की. जिसके बाद ईटीवी भारत ने गांवों में जाकर मुआवजे के लिए कराए सर्वे का रियलिटी टेस्ट किया. इसमें जो सच्चाई सामने आई उसे जानने के लिए पढ़े खबर...

भिंड में चंबल नदी
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Published : Nov 16, 2019, 12:02 AM IST

भिंड। वह किसान जिसे हम अन्नदाता कहते हैं, आज खुद ही अन्न के लिए परेशान है. वह पहले प्रकृति के मार झेलने के बाद अब सराकरी तंत्र की उदासीनता के सामने बेबस हो चुका है. अपनी-अपनी कहानी लिए हर किसान बस किसी सरकारी नुमाइंदे के इनके पास पहुंचकर मदद करने की आस देख रहा है.

मुआवजे के लिए कराए सर्वे का रियलिटी टेस्ट

बीते 15 सितंबर को भिंड में चंबल नदी ने अपना रौद्र रूप लिया और अंचल के एक दर्जन से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ गए. हजारों परिवार घर-बार, मवेशी, संपत्ति को छोड़कर सेना और प्रशासन की मदद से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचे. धीरे-धीरे हालात तो सामान्य हो गए लेकिन इस प्राकृतिक आपदा ने हजारों हेक्टेयर में फसल को बर्बाद कर दिया.

प्रशासन का सर्वे का दावा कितना सही

सरकार ने अतिवृष्टि से प्रभावित हुई फसलों के लिए 30 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर मुआवजे की घोषणा की तो किसान को राहत मिली. लेकिन प्रभावितों को आज भी मुआवजे का इंतजार है. जिला प्रशासन का कहना है कि अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों के नुकसान का आंकलन कर मुआवजा खातों तक पहुंच रहा है. लेकिन प्रभावित किसान इस बात को साफ नकारते नजर आते हैं.

Aggrieved farmer
पीड़ित किसान

मुकुट पूरा गांव के ग्रामीणों और किसानों का कहना है कि सर्वे सिर्फ कागजों में ही निपटा दिया गया, ना तो पूछताछ हुई और ना अधिकारियों ने बुलाया, शायद कहीं बैठे-बैठे ही सर्वे कर लिया गया. बाढ़ प्रभावित पीड़ितों का दर्द जब हमने प्रशासनिक अधिकारियों को बताया तो अटेर तहसीलदार मनीष जैन का कहना था कि अटेर और सिरपुरा सर्कल के 14 गांव में नुकसान ज्यादा था. सभी गांवों में पटवारियों द्वारा उसका आकलन कराया जा चुका है.

Home goods wasted in flood
बाढ़ में बर्बाद हुआ घर का सामान

अटेर के एसडीएम अभिषेक चौरसिया ने बताया कि मकान क्षति और प्रशिक्षण के लिए करीब उन्नयासी लाख छत्तीस हजार रूपए का पेमेंट किया जाना है. जिनमें कुछ गांवों का पेमेंट हो चुका है. वहीं उन्होंने यह भी माना कि पटवारियों द्वारा किए गए सर्वे को शत प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता.

किसान परेशान हैं, फसलें चौपट हो चुकी हैं, कमाई का कोई जरिया नहीं है, ऐसे में अन्नदाता के पास सरकार के वादों और आश्वासनों के अलावा और कुछ नहीं बचा है. इन्हें तो बस इंतेजार है कि सरकार इनकी सुध ले और इन तक मदद पहुंचे.

भिंड। वह किसान जिसे हम अन्नदाता कहते हैं, आज खुद ही अन्न के लिए परेशान है. वह पहले प्रकृति के मार झेलने के बाद अब सराकरी तंत्र की उदासीनता के सामने बेबस हो चुका है. अपनी-अपनी कहानी लिए हर किसान बस किसी सरकारी नुमाइंदे के इनके पास पहुंचकर मदद करने की आस देख रहा है.

मुआवजे के लिए कराए सर्वे का रियलिटी टेस्ट

बीते 15 सितंबर को भिंड में चंबल नदी ने अपना रौद्र रूप लिया और अंचल के एक दर्जन से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ गए. हजारों परिवार घर-बार, मवेशी, संपत्ति को छोड़कर सेना और प्रशासन की मदद से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचे. धीरे-धीरे हालात तो सामान्य हो गए लेकिन इस प्राकृतिक आपदा ने हजारों हेक्टेयर में फसल को बर्बाद कर दिया.

प्रशासन का सर्वे का दावा कितना सही

सरकार ने अतिवृष्टि से प्रभावित हुई फसलों के लिए 30 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर मुआवजे की घोषणा की तो किसान को राहत मिली. लेकिन प्रभावितों को आज भी मुआवजे का इंतजार है. जिला प्रशासन का कहना है कि अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों के नुकसान का आंकलन कर मुआवजा खातों तक पहुंच रहा है. लेकिन प्रभावित किसान इस बात को साफ नकारते नजर आते हैं.

Aggrieved farmer
पीड़ित किसान

मुकुट पूरा गांव के ग्रामीणों और किसानों का कहना है कि सर्वे सिर्फ कागजों में ही निपटा दिया गया, ना तो पूछताछ हुई और ना अधिकारियों ने बुलाया, शायद कहीं बैठे-बैठे ही सर्वे कर लिया गया. बाढ़ प्रभावित पीड़ितों का दर्द जब हमने प्रशासनिक अधिकारियों को बताया तो अटेर तहसीलदार मनीष जैन का कहना था कि अटेर और सिरपुरा सर्कल के 14 गांव में नुकसान ज्यादा था. सभी गांवों में पटवारियों द्वारा उसका आकलन कराया जा चुका है.

Home goods wasted in flood
बाढ़ में बर्बाद हुआ घर का सामान

अटेर के एसडीएम अभिषेक चौरसिया ने बताया कि मकान क्षति और प्रशिक्षण के लिए करीब उन्नयासी लाख छत्तीस हजार रूपए का पेमेंट किया जाना है. जिनमें कुछ गांवों का पेमेंट हो चुका है. वहीं उन्होंने यह भी माना कि पटवारियों द्वारा किए गए सर्वे को शत प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता.

किसान परेशान हैं, फसलें चौपट हो चुकी हैं, कमाई का कोई जरिया नहीं है, ऐसे में अन्नदाता के पास सरकार के वादों और आश्वासनों के अलावा और कुछ नहीं बचा है. इन्हें तो बस इंतेजार है कि सरकार इनकी सुध ले और इन तक मदद पहुंचे.

Intro:बीते 15 सितंबर को भिंड के क्षेत्र में चंबल नदी ने अपना रौद्र रूप लिया और अंचल के एक दर्जन से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ गए धीरे-धीरे हालात तो सामान्य हो गए लेकिन इस प्राकृतिक आपदा ने हजारों हेक्टेयर में फसल को बर्बाद कर दिया आज किसान मुआवजे के लिए परेशान है लोगों के लिए जीवन यापन की समस्या खड़ी है जिला प्रशासन का कहना है कि अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों के नुकसान के आंकलन कर मुआवजा खातों तक पहुंच रहा है लेकिन अटेर का किसान उनकी इस बात को नकारते नजर आ रहा है


Body:मध्य प्रदेश में सितंबर का महीना सैलाब लेकर आया सैलाब उस बाढ़ का जिसने हजारों परिवारों को बेघर कर दिया बर्बाद कर दिया लोग अपने घर बार मवेशी संपत्ति को छोड़कर सेना और प्रशासन की मदद से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचे पानी उतरा तो मंदिर दिल दहलाने वाला था मकान पानी से ढह गए फसलें चौपट हो गई और प्रदेश का अन्नदाता ही भूखों मरने की कगार पर आ गया फिर सरकार ने अतिवृष्टि से प्रभावित हुई फसलों के लिए ₹30000 प्रति हेक्टेयर मुआवजे की घोषणा की तो किसान को राहत हुई और पानी उतरने के साथ जनजीवन सामान्य होने लगा लेकिन करीब 2 महीने बीतने को हैं और भिंड के अटेर में चंबल नदी में आई बाढ़ से मुकुटपुरा, खेराहट, दिन्नपुरा, नावली वृंदावन, अटेर समेत 14 गांव के प्रभावितों को अभी मुआवजे का इंतजार है।

कहने को शासन-प्रशासन मुआवजे की पूर्ति जल्द से जल्द करना चाहता है जिसके लिए सर्वे प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है लेकिन मुकुट पूरा गांव के ग्रामीणों और किसानों का कहना है कि सर्वे सिर्फ कागजों में ही निपटा दिया गया है ना तो पूछताछ हुई ना अधिकारियों ने बुलाया शायद कहीं बैठे-बैठे ही सर्वे कर लिया गया, आरोप है सर्वे में विसंगतियां भी बहुत हैं जांच दल में शामिल जिम्मेदारों ने अपने करीबी लोगों के नाम लिस्ट में शामिल कर दिए हैं तो कई किसान ऐसे हैं जिनके नुकसान के बाद भी दावा लिस्ट में उनको शामिल नहीं किया गया।

मुकुट पुरा गांव के रहने वाले लोगों में भी प्रशासन के लिए अब गुस्सा दिखाई देने लगा है गांव के ही एक किसान रामसनेही बताते हैं के बाढ़ में घर का सारा सामान चला गया दूसरे की जमीन किराए पर लेकर फसल बोई थी लेकिन उस प्राकृतिक आपदा ने उसे भी बर्बाद कर दिया अब मुआवजा मिलेगा भी तो भूस्वामी को ऐसे में हमारे हिस्से तो सिर्फ नुकसान ही आया है गांव के एक मजदूर भारत का कहना है कि प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली वार्ड के बाद पूरा घर बर्बाद हो गया पक्की दीवार ढह गई आज पल्ली की झोपड़ी में गुजर कर रहे हैं अधिकारी आए भी तो लिखा पढ़ी कर चले गए लेकिन मुआवजा राशि आज तक नहीं मिली अब हालात यह हैं कि मजदूरी करने भी नहीं जा पाते क्योंकि अगर मजदूरी करने जाएंगे तो आवारा पशु उनके घर में जमावड़ा बना लेते हैं ऐसे में अब घर बचाएं या पेट पाले मदद के नाम पर भी 50 किलो गेहूं दिए गए लेकिन गेहूं उबाल के तो नहीं खा सकते और भी चीजों की जरूरत होती है

इन बाढ़ प्रभावित पीड़ितों का दर्द जब हमने प्रशासनिक अधिकारियों को बताया तो अटेर तहसीलदार मनीष जैन का कहना था कि अटेर और सिरपुरा सर्कल के 14 गांव में नुकसान ज्यादा था सभी गांव में पटवारियों द्वारा उसका आकलन कराया जा चुका है जो दावा सूची बनी उसमें कहीं कोई पात्र न छूटे उसके लिए दवा सूची को गांव में चस्पा भी कराया गया है साथ ही आपत्ति नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है तो वहीं अटेर के अनुविभागीय अधिकारी अभिषेक चौरसिया ने बताया कि अब तक आंकलन के अनुसार बाढ़ प्रभावित सभी गांव में फसल छति मकान क्षति और प्रशिक्षण के लिए करीब ₹7936000 का पेमेंट किया जाना है जिनमें कुछ गांव का पेमेंट हो चुका है वहीं एसडीएम ने यह भी माना कि पटवारियों द्वारा किए गए सर्वे को शत प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता इसीलिए गांव में सूचियां लगवाई है जो लोग दावा आपत्ति दे रहे हैं उनका निरीक्षण कर निराकरण भी किया जा रहा है एसडीएम ने यह भी साफ किया कि फसल के नुकसान का मुआवजा उसी व्यक्ति को मिलेगा जिसने फसल की बोवनी की थी और अपना पैसा लगाया था।


Conclusion:भिंड के ढेर में बाढ़ के बाद प्रशासन ने लोगों की मदद और मुआवजे के लिए सर्वे किया लेकिन सर्वे के बाद भी हजारों पीड़ितों को राहत नहीं है क्योंकि सर्वे के बावजूद उनका मुआवजा राशि नहीं मिली है ऐसे में गरीबों किसानों और आपदा से पीड़ित ग्रामीणों के आगे जीवन यापन की बड़ी समस्या खड़ी है कई लोग बेघर हैं परेशान हैं फसलें चौपट हो चुकी हैं कमाई का कोई जरिया नहीं लेकिन कोई सुध लेने वाला भी नहीं है और प्रशासन कहता है कि जल्द से जल्द उपलब्ध करा दिया जाएगा ऐसे में इन आपदा पीड़ितों के लिए अब इंतजार के अलावा कोई चारा नहीं है।

भिंड ईटीवी भारत के लिए पीयूष श्रीवास्तव

बाइट- पीड़ित किसान, मुकुटपुरा( बिना कपड़ों के)
बाइट- रामसनेही, पीड़ित किसान
बाइट- भारत, पीड़ित मजदूर

121- किसानों के साथ
121- मनीष जैन, तहसीलदार, अटेर (पीली शर्ट में)
121- अभिषेक चौरसिया, अनुविभागीय अधिकारी, अटेर

नोट- यदि तहसीलदार का 121 ठीक न लगे तो उसे बाईट के तौर पर ले सकते है उसमें कैमरा एंगल गलत होने से रिपोर्टर ओपेनउँग क्लोजिंग थोड़ी गड़बड़ हो गई है

एसडीएम के साथ 121 बिल्कुल ठीक है।


पीटीसी- पीयूष श्रीवास्तव, संवाददाता
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