भिंड। वह किसान जिसे हम अन्नदाता कहते हैं, आज खुद ही अन्न के लिए परेशान है. वह पहले प्रकृति के मार झेलने के बाद अब सराकरी तंत्र की उदासीनता के सामने बेबस हो चुका है. अपनी-अपनी कहानी लिए हर किसान बस किसी सरकारी नुमाइंदे के इनके पास पहुंचकर मदद करने की आस देख रहा है.
बीते 15 सितंबर को भिंड में चंबल नदी ने अपना रौद्र रूप लिया और अंचल के एक दर्जन से ज्यादा गांव बाढ़ की चपेट में आ गए. हजारों परिवार घर-बार, मवेशी, संपत्ति को छोड़कर सेना और प्रशासन की मदद से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचे. धीरे-धीरे हालात तो सामान्य हो गए लेकिन इस प्राकृतिक आपदा ने हजारों हेक्टेयर में फसल को बर्बाद कर दिया.
प्रशासन का सर्वे का दावा कितना सही
सरकार ने अतिवृष्टि से प्रभावित हुई फसलों के लिए 30 हजार रूपए प्रति हेक्टेयर मुआवजे की घोषणा की तो किसान को राहत मिली. लेकिन प्रभावितों को आज भी मुआवजे का इंतजार है. जिला प्रशासन का कहना है कि अतिवृष्टि से पीड़ित किसानों के नुकसान का आंकलन कर मुआवजा खातों तक पहुंच रहा है. लेकिन प्रभावित किसान इस बात को साफ नकारते नजर आते हैं.
मुकुट पूरा गांव के ग्रामीणों और किसानों का कहना है कि सर्वे सिर्फ कागजों में ही निपटा दिया गया, ना तो पूछताछ हुई और ना अधिकारियों ने बुलाया, शायद कहीं बैठे-बैठे ही सर्वे कर लिया गया. बाढ़ प्रभावित पीड़ितों का दर्द जब हमने प्रशासनिक अधिकारियों को बताया तो अटेर तहसीलदार मनीष जैन का कहना था कि अटेर और सिरपुरा सर्कल के 14 गांव में नुकसान ज्यादा था. सभी गांवों में पटवारियों द्वारा उसका आकलन कराया जा चुका है.
अटेर के एसडीएम अभिषेक चौरसिया ने बताया कि मकान क्षति और प्रशिक्षण के लिए करीब उन्नयासी लाख छत्तीस हजार रूपए का पेमेंट किया जाना है. जिनमें कुछ गांवों का पेमेंट हो चुका है. वहीं उन्होंने यह भी माना कि पटवारियों द्वारा किए गए सर्वे को शत प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता.
किसान परेशान हैं, फसलें चौपट हो चुकी हैं, कमाई का कोई जरिया नहीं है, ऐसे में अन्नदाता के पास सरकार के वादों और आश्वासनों के अलावा और कुछ नहीं बचा है. इन्हें तो बस इंतेजार है कि सरकार इनकी सुध ले और इन तक मदद पहुंचे.