भिंड। जब कोई इंसान चंबल का नाम सुनता है तो सबसे उसके दिमाग में पहली तस्वीर झाड़ियों वाले पहाड़ों की आती है, जिन्हें बीहड़ कहा जाता है. इन बीहड़ों में डकैतों की छवि दिखाई देती है. भिंड ज़िला भी इसी चंबल का हिस्सा है, लेकिन ये बीहड़ सिर्फ अपराध और डकैतों से ही नही पहचाने जाते हैं. इन बीहड़ों का एक और पहलू है. ये बीहड़ और उनके आसपास बसे दर्जनों गांव ऐसे हैं, जिन्होंने पुरातन काल का इतिहास अपने भीतर समेट रखा है. महाभारत और रामायण काल के ऑर्नामेंट्स हों या सदियों पुरानी प्रतिमाएं और उनके अवशेष इन बीहड़ी गांव से मिले हैं, जिन्हें आज भिंड और ग्वालियर के म्यूजियम में प्रदर्शित किया जाता है. चंबल की उमा -महेश्वर की प्रतिमा को फ्रांस और मॉस्को महोत्सव में प्रदर्शित किया गया था. जहां इसकी विश्व रैंकिंग 51 दी गयी थी. इसमे ऊपर 4 शिवलिंग के साथ उमा- महेश्वर का पूरा परिवार है.
रामायण काल से लेकर 15वीं सदी तक का इतिहास : भिंड किले में संचालित पुरातत्व विभाग के संग्रहालय में सदियों का इतिहास नज़र आता है. भिंड ज़िले के प्रशासकों व राजाओं द्वारा निर्मित कराये गए पाषाण कला के नमूने यहां देखने को मिलते हैं. महाभारत काल और रामायण काल के ऑर्नामेंट्स उस समय के गांव के बर्तनों के अवशेष यहां संभालकर प्रदर्शित किए गए हैं. जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र कुमार पांडेय इस संग्रहालय की ज़िम्मेदारी संभाल रहे हैं. ETV भारत से चर्चा में उन्होंने बताया कि भिंड ज़िले में समय-समय पर रामायण और महाभारत काल से लेकर 15वीं शताब्दी तक के प्राचीन अवशेष मिले हैं. साथ ही सिंधिया काल के भी कुछ अवशेष यहां प्राप्त हुए हैं.
शौर्यपूर्ण शासकों से भरा रहा भिंड का इतिहास : भिंड जिले में कई शौर्यपूर्ण शासकों का साम्राज्य रहा है. लहार क्षेत्र में चंदेल राजाओं, गोहद और अटेर क्षेत्र में कच्छवघात राजाओं, गुर्जर प्रतिहार राजाओं, गोहद में जाट राजाओं और अटेर में कालांतर में भदावर राजाओं का शासन रहा है. भदौरिया, जाट और सिंधिया ये अपने समकालीन राजवंश थे, जो आपस मे लड़ते रहते थे. इन सभी प्रशासकों राजाओं ने अपने शासन के दौरान साम्राज्य में पाषाण कला और कारीगरी के बेहतरीन कार्य कराए थे, जो आज भी बेहद मनमोहक हैं.
कालिदास के काव्य में प्रतिमा का वर्णन : वैसे तो भिंड ज़िले के कई ऐसे गांव हैं जहां से पुरातत्व महत्व के ऑर्नामेंट्स और अवशेष प्राप्त हुए हैं लेकिन बरासों और बरहद गांव सबसे खास रहे हैं. यहां से प्राप्त हुईं प्रतिमाएं अपने आप मे विशेष हैं जहां 10वीं सदी ईस्वी की उमा- महेश्वर, रावण अनुग्रह प्रतिमा का वर्णन कालिदास द्वारा रचित काव्यों में भी है. वहीं बरासों गांव में मिली 9वीं सदी की उमा महेश्वर की प्रतिमा बेहद मनमोहक है. बरासों गांव में मिली उमा महेश्वर की प्रतिमा अपने आप मे विशेष है. जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि इस तरह की प्रतिमा आमतौर पर देखने को नही मिलती. इस प्रतिमा में शिव पार्वती के ऊपर 4 शिवलिंग नज़र आते हैं, जिनके दोनों ओर दो वानर बैठे हुए हैं, जो फलों को उठा कर खा रहे हैं. शिव के कंधे पर गोव (monitor lizard) चढ़ रही है, जिससे पार्वती भयभीत हो रही हैं, नीचे कार्तिकेय मयूर पर बैठे हैं. मयूर नंदी को छेड़ रहा है और नंदी के बिदकने की वजह से गणेश जी गिरते दिखाई देते हैं, जो भृंगी ऋषि का वर्णन है. जो दर्शाता है कि कार्तिकेय और गणेश का शीत युद्ध यहां भी जारी है.
विदेश यात्रा करने वाली ऐतिहासिक प्रतिमा : आपको जानकर हैरानी होगी कि उमा महेश्वर की यह प्रतिमा भिंड से निकल कर विदेश तक की यात्रा कर चुकी है, लेकिन यह बिल्कुल सच है. 90 के दशक में उमा महेश्वर की यही प्रतिमा फ्रांस महोत्सव और मॉस्को महोत्सव में भी जा चुकी है, जहां वर्ल्ड आर्कियोलॉजी में इसे 51वीं रैंक दी गयी थी. आज यह भिंड के पुरातत्व संग्रहालय में दर्शकों और पर्यटकों को इतिहास की गवाही दे रही है. जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र कुमार पांडेय ने बताया कि वैसे तो कई प्रतिमाएं और अवशेष इस ज़िले में प्राप्त हुए हैं, लेकिन वर्तमान में 160 से ज़्यादा एंटीक्विटीज यहां मौजूद हैं. इनकी खोज के संबंध में सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अन्तर्गत गांव-गांव सर्वे किया जाता है, जहां भी इस तरह के संकेत मिलते हैं या जानकारी मिलती है तो वहां सभी सावधानियां बरतते हुए इन ऑर्नामेंट्स को एक्ट्रक्ट किया जाता है.
पाषाणकालीन अवशेष मिले हैं : अब तक ये ऑर्नामेंट्स रूर, रौन, नयागांव सगरा के क्षेत्र से पाषाणकालीन अवशेष मिले हैं. बरहद, बरासों, गोहद के खनेता में और अन्य क्षेत्रों में प्राचीन विष्णु मंदिर बने हैं, जो कच्छवघातकालीन हैं. इसी तरह दर्जनों गांव प्राचीन सम्पदाओं को संजोये हुए हैं, जिन्हें आने वाले वक्त में खोजा जा सकता है. अब तक भिंड ज़िले में सिर्फ स्थानीय लोग और उनके साथ आने वाले व्यक्ति ही इस म्यूज़ियम तक पहुच पाते हैं लेकिन रेल रूट के साथ पर्यटकों के लिए अच्छी परिवहन सेवा होने पर यहां बहुतायत में पर्यटकों का भी आना शुरू होगा, जिस पर कार्य किया जा रहा है.
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पर्यटन के क्षेत्र में बहुत संभावनाएं : आने वाले समय मे चंबल का यह ज़िला पर्यटन के क्षेत्र में बहुत आगे जाने की संभावना रखता है. वीरेंद्र कुमार पांडेय, जिला पुरातत्व अधिकारी बताते हैं " चम्बल का भिंड ज़िला अपने आप में इतिहास का गवाह रहा है. आज भी न जाने कितने पुरातत्व महत्व के ऑर्नामेंट्स यहां की धरती में दबे हुए हैं. यहां रामायण काल के बर्तन और महाभारत काल के ऑर्नामेंट्स बीते समय मे मिले हैं, लेकिन इस म्यूज़ियम की सबसे आकर्षक प्रदर्शनी उमा महेश्वर की वह प्रतिमा है, जिसे 90 के दशक में मॉस्को और फ्रांस महोत्सव में प्रदर्शित किया गया. इसे वर्ल्ड आर्कियोलॉजी में इसे 51वीं रैंक दी गयी थी, यह आज भी भिंड ज़िले का सम्मान बढ़ा रही है."