भिंड। मध्य प्रदेश में उपचुनाव की सियासी बिसात बिछने के बाद चंबल अंचल पर दोनों दलों का फोकस है. जब भी चुनाव में ग्वालियर चंबल अंचल का जिक्र होता है तो डकैतों और बदमाशों की बात जरूर होती है. बागी और डकैतों का गढ़ रहे चंबल अंचल में अब कोई बड़ा डकैत नहीं बचा, लेकिन 80 के दशक से ही यहां उनका दबदबा रहा है. बात अगर भिंड जिले की करें तो यहां हमेशा ही डकैतों का बोलबाला रहा, क्योंकि कई डकैत अमीरों का पैसा गरीबों में बांट देते थे, जिसकी वजह से बीहड़ों के आसपास बसे गांव और वहां के लोग इनकी रक्षा करते थे.
माना तो यहां तक जाता रहा कि डकैतों ने जिस प्रत्याशी के पक्ष में वोट देने करने का एलान कर दिया उसकी जीत निश्चित होती थी, लेकिन वक्त के साथ हालात बदलते गए और और चुनाव का तरीका भी. फिलवक्त भिंड जिले में पूर्व डकैतों के नाम पर इक्का-दुक्का पूर्व दस्यु ही बचे हैं, जो सादगी से अपना जीवन यापन कर रहे हैं और लाइमलाइट से दूर रहकर सामान्य जिंदगी जी रहे हैं. चुनाव आने पर ये लोग क्षेत्र की समस्याएं और राजनीतिक दलों को देखकर चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं.
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इन डकैतों ने किया था आत्मसमर्पण
भिंड जिले का नाम भी एक वक्त तक डकैतों की वजह से बदनाम रहा. जब मध्यप्रदेश में अर्जुन सिंह की सरकार बनी तो 1981 में कई बड़े नामी इनामी डकैतों ने आत्मसमर्पण किया था, जिनमें मलखान सिंह, फूलन देवी, मोहर सिंह, मनोहर सिंह जैसे कई बड़े नाम शामिल थे, लेकिन सबसे पहले समर्पण करने वाले दस्यु उदय सिंह मस्ताना थे, जिन्होंने ईटीवी भारत से बागीकाल के दौरान हुए अनुभव साझा किए.
पूर्व दस्यु उदय सिंह मस्ताना ने साझा किए अनुभव
पूर्व दस्यु उदय सिंह मस्ताना कहते हैं कि उन दिनों चुनाव का अलग ही प्रभाव रहता था. राजनीतिक दल कभी डकैतों से संपर्क नहीं करते थे, बल्कि जो प्रत्याशी होते थे, जिन्हें उम्मीद होती थी, वही डकैतों के पास जाते थे. जब डकैतों को लगता था कि प्रत्याशी समाज और उनके काम आएगा तो उसका समर्थन करते थे, लेकिन अब लेकिन आज परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं. मस्ताना कहते हैं कि आज लोग राजनीतिक दलों से चुनाव लड़ते हैं, उनके अपने मुद्दे होते हैं, राजनीति होती है. उदय सिंह मस्ताना ने आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने कभी राजनीति की और कदम नहीं बढ़ाए.
एक वक्त अंचल में डकैतों का रहता था दबदबा- जय श्रीराम बघेल
कांग्रेस पार्टी के जिला अध्यक्ष जय श्रीराम बघेल भी काफी उम्रदराज शख्स हैं. उन्होंने भी वह दौर देखा है, जब डकैत चुनाव में अपना प्रभाव दिखाते थे. जय श्रीराम बघेल कहते हैं कि अब ना तो डकैत बचे हैं और ना ही राजनीतिक दलों से संपर्क करते हैं. अब तो राजनीति और जन समस्या ही चुनाव का मुद्दा होती है. हालांकि जयश्रीराम बघेल मानते हैं कि वो भी एक दौर में अंचल में डकैतों का दबदबा रहता था. भिंड जिले में 5 विधानसभा सीट आती हैं, लेकिन डकैतों का प्रभाव महज अटेर और भिंड विधानसभा तक ही सीमित था. सबसे बड़ी बात ये थी कि चुनाव होते थे, लोग वोटिंग करते थे, लेकिन डकैतों द्वारा कभी बूथ कैपचरिंग जैसी घटनाएं भिंड जिले में नहीं देखने मिलीं. डकैत महज अपने नाम के प्रभाव से प्रत्याशी को जिताने में मदद करते थे.
इन डकैतों ने राजनीति में भी रखा कदम
बंदूक छोड़कर विकास की मुख्यधारा से जुड़ने वाले पूर्व दस्यु में मलखान सिंह, फूलन देवी, मोहर सिंह और मनोहर सिंह यह ऐसे नाम हैं, जो चंबल क्षेत्र में खासकर भिंड क्षेत्र से जाने जाते हैं. यह चारों ही नाम है ऐसे हैं, जिन्होंने आत्मसमर्पण के बाद जनसेवा का रास्ता चुना और राजनीति में कदम रखा. मलखान सिंह तो एक ऐसा नाम है, जिसे लोग आज भी भूले नहीं हैं. मलखान सिंह 'दद्दा' ने आत्मसमर्पण के बाद बसपा से चुनाव लड़ा, उन दिनों बहुजन समाजवादी पार्टी कई पूर्व डकैतों के राजनीति में कदम रखने का जरिया बनी. फूलन देवी ने भी बसपा से राजनीति शुरू की. मलखान सिंह ने भी बसपा से चुनाव में हाथ आजमाया, लेकिन वे बीहड़ से विधानसभा तक का सफर तय नहीं कर सके, जिसके बाद कुछ समय तक कांग्रेस में रहे और अब हाल फिलहाल कुछ सालों से बीजेपी का समर्थन कर रहे हैं.
मलखान सिंह ने संभाला चुनाव प्रचार
साल 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव के दौरान भिंड की अटेर सीट पर प्रत्याशी रहे अरविंद भदौरिया के समर्थन में मलखान सिंह ने अटेर में प्रचार किया था. इसके बाद वे इस उपचुनाव में अब तक नजर नहीं आए हैं और ना ही राजनीतिक दलों द्वारा उनसे संपर्क की बात कहीं जा रही है. मलखान की तरह ही पूर्व दस्यु मोहर सिंह भी राजनीति में आए और कांग्रेस ज्वाइन की. लंबे समय तक वो कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे और मेहंगाव से नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर भी रहे. हाल ही में लॉकडाउन के दौरान मई 2020 में उनका निधन हो गया था.
अब बदल चुके हैं हालात
भिंड जिले में गोहद और मेहगांव विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है, लेकिन अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही. यहां लोग अब प्रत्याशी और क्षेत्र में उसके द्वारा दिया गया योगदान जनता के लिए महत्वपूर्ण है. भले ही 80 के दशक में चुनाव डकैतों की दम पर हुआ करते थे, लेकिन उस दौर में भी मेहगांव और गोहद विधानसभा क्षेत्र दस्यु प्रभाव से कोसों दूर थी. यही वजह है कि आज भी इन विधानसभाओं में डकैतों का कोई प्रभाव नहीं है. इसलिए जनता भी है अपने मन से मतदान करती है.