भिंड। 30 जनवरी 2020 को भारत में पहला कोरोना पॉज़िटिव मरीज पाया गया था, लेकिन विश्व में तेजी से फैले कोरोना संक्रमण ने महामारी कि वो व्यापक लहर दिखाई जिसमें न जाने कितनी जिंदगियां काल के गाल में समा गई, न जाने कितने परिवार तबाह हो गये. भारत में दस्तक देने के बाद भी सरकार द्वारा एहतियाती कदम उठाते हुए लोगों को क्वारेंटाइन करना शुरू कर दिया गया था, लेकिन तब तक बात हाथ से निकल चुकी थी. भारत में भी तेज़ी से कोरोना महामारी अपने पैर पसार रही थी कि 19 मार्च की रात 8 बजे अचानक प्रधानमंत्री सभी को चौंकाने वाले अपने अंदाज में देश को संदेश देने आए और 22 फरवरी के दिन जनता द्वारा जनता के लिए लगाए गए जनता कर्फ्यू की अपील की.
जिस तरह देश वासियों ने उनकी अपील का सहयोग किया. उसे देखते हुए 25 मार्च 2020 से देश में लॉकडाउन लगा दिया गया है. यह वह समय था जब हम देश वासी उस अनजान वायरस से घबराए हुए थे, व्यापार ठप्प हो चुके थे, प्रवासी मज़दूर पैदल अपने घरों को लौट रहे थे. इस महामारी ने करोड़ों ज़िंदगियों पर प्रभाव डाला. इस सब के बीच वह लोग जिन्हें हम कोरोना वॉरियर्स के नाम से जानते हैं वे आगे आए और अपनी ज़िम्मेदारियां निभाते हुए खुद की जान की परवाह किए बगैर पूरी शिद्दत से जन सेवा में जुट गए. इस बीच कई कोरोना वॉरियर्स ने अपनी जान गंवाई तो कईयों ने अपनो को खोया. आज इस लॉकडाउन को लगे पूरा एक साल बीत चुका है. इस मौके पर ईटीवी भारत उन कोरोना योद्धाओं की कहानियां आपके सामने ला रहा है, जिन्होंने उस दौर को न सिर्फ देखा है, बल्कि अपने कष्ट छिपाकर भी जनसेवा का काम आगे बढ़ाते रहे हैं. ऐसे ही एक कोरोना योद्धा हैं, भिंड ज़िला स्वास्थ्य विभाग में मूलत आईडीएसबी के डेटा मैनेजर के पद पर पदस्थ और वर्तमान में नोडल अधिकारी और प्रभारी प्रबंधक जिला कार्यक्रम अधिकारी राजेश शर्मा.
अनजान बीमारी, व्यवस्थाओं की कमी और संक्रमण का ख़तरा
राजेश शर्मा ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि कोरोना की शुरुआत से लेकर अब तक का सफर आसान नहीं रहा, मार्च 2020 में जब कोरोना संक्रमण की खबरें आना शुरू हुई तो एक डर था कैसी बीमारी है. सुना था इसकी संक्रमकता व्यापक है, शासन से भी निर्देश आने शुरू हुए तो भिंड जिले में बचाव की तैयारियों में जुट गए. कोरोना की संक्रमकता बहुत थी और इसके मरीजों और संदिग्धों को आइसोलेट रखना था. उस हिसाब से हमारे यहां व्यवस्थाएं नहीं थी. ऐसे में कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग को काफी मशक्कत करनी पड़ी. नोडल के तौर पर काम करना था, इसलिए उन्हें भी नोडल ऑफिसर की ज़िम्मेदारी दी गयी थी.
पहले केस के साथ शुरू हुई चुनौतियां
8 मई वो दिन था, जब भिंड जिले में पहला केस आया और इसके साथ हमारे लिए चुनौतियां शुरू हो गई. देश में लॉकडाउन लग चुका था संसाधनों की कमी थी और पर लॉकडाउन के डर में बाहर से आने वाले लोग प्रवासी मज़दूर भिंड ज़िले में प्रवेश कर रहे थे. ऐसे में एक बड़ी चुनौती इस बात को लेकर भी थी कि हमें ये नहीं पता था कि कौन सा व्यक्ति संक्रमित और कौन सा नहीं कहीं कोई ऐसा व्यक्ति संक्रमित हो और सोसायटी में संक्रमण फैला दें. इसका भी बचाव करना था तो बाहर से आने वाले लोगों को क्वारंटाइन करना शुरू किया गया. उनके लिए सभी व्यवस्थाएं बनायी गई. व्यापक तौर पर टेस्टिंग शुरू की गई, जिस तरह से बाहर से आने वाले लोगों की संख्या में इज़ाफ़ा हो रहा था. वैसे भिंड ज़िले में अब नए संक्रमित केस आ रहे थे, जिसकी वजह से डॉक्टर और स्टॉफ की ड्यूटी लगाना बेहद ज़रूरी था. सारी व्यवस्थाएं बनायी जा रही है, शायद ही ऐसा कोई दिन गया हो जैसे कोई स्वास्थ्यकर्मी 12-1 बजे से पहले अपने घर गया हो.
परिवार को संक्रमण से बचाने के लिए अलग रहे
कोरोना संक्रमण का ख़तरा ऐसा कि एक दूसरे को छूने से आस पास की संक्रमित हवा में भी हो सकता था. ऐसे में कहीं अपने परिवार के लोग ही हमारी वजह से संक्रमित न हो जाए, इस बात का भी ध्यान रखना है, हर रोज ऐसे लोगों के बीच जाने की वजह से जो संक्रमित थे या संदिग्ध थे खुद को कोरोना का ख़तरा तो था ही, इसलिए घर पहुंचने पर भी एक अलग कमरे में रहना पड़ा. अपनों के क़रीब होने के बावजूद बेहद दूर थे, लेकिन अपने परिजनों को संक्रमण के होने से बचाने के लिए कोरोना की गाइडलाइन के उन्हें हमको भी फ़ॉलो करना ज़रूरी था.
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संक्रमित हुए तो अस्पताल में लैप्टॉप पर जारी रखा काम
राजेश शर्मा ने बताया कि एक दौर ऐसा भी आया जब संक्रमण तेज़ी से फैल रहा था और इसकी चपेट में स्वास्थ्यकर्मी भी आना शुरू हुए. पहले डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ़ और बाद में ख़ुद राजेश शर्मा भी संक्रमित हो गए. उन्हें इलाज के लिए ग्वालियर के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन अब इस दौरान अपनी उन्होंने अपना इलाज कराते हुए अस्पताल में ही लैपटॉप के ज़रिए अपने काम को जारी रखा. वह फ़ील्ड में नहीं जा सकते थे. स्टॉफ की कमी थी इसलिए रिपोर्ट तैयार करने से लेकर जो भी ऑफिशियल वर्क था, रिपोर्ट तैयार करना, डेटा कलेक्शन, मॉनीटरिंग उन्होंने अपने लैपटॉप के ज़रिए जारी रखी.
भिंड में पहली मौत और पिता को खोया
केस और चिन्ताएं तेजी से बढ़ रही थी, जिले में संक्रमित मरीज़ों का आंकड़ा क़रीब हज़ार के पार जा चुका था. करीब 10 लोग इस महामारी से भिंड ज़िले में अपनी जान गंवा चुके हैं. लेकिन शुरुआती तौर पर जिन मरीज़ों क़ी मौत हो गई वे भले ही भिंड ज़िले से थे, लेकिन सभी की मौत ज़िले के बाहर पास अन्य अस्पतालों में इलाज के दौरान हुई थी, लेकिन दुर्भाग्य से जब भिंड ज़िले में इलाज के दौरान पहली मौत हुई तो वह खुद राजेश शर्मा के पिता की हुई. उस दौरान राजेश खुद कोरोना संक्रमित थे और ग्वालियर में इलाज करा रहे थे. जब उन्हें इस घटना की सूचना मिली तो एक एम्बुलेंस के ज़रिए उन्हें लाया गया और प्रोटोकॉल के तहत उनके पिता का अंतिम संस्कार कराया गया. राजेश शर्मा कहते हैं कि उनके लिए कोरोना कभी न भूलने वाला दौर है.
ज़िम्मेदारी बड़ी है इसलिए ज़िंदगी रुकी नही
अपने पिता को खोने के बाद और इस बीमारी से ठीक होने के बाद जब राजेश शर्मा दोबारा अपनी ड्यूटी पर लौटे तो उन्होंने पूरी शिद्दत से एक बार फिर अपनी ज़िम्मेदारी को संभालते हुए काम शुरू किया, क्योंकि देश में एक बार फिर कोरोना तेजी से फैल रहा है, इसलिए आगे कोई और उनके पिता की तरह अपनों को ना खोए इसलिए संक्रमण से बचाव के सभी प्रयास किए जा रहे हैं. कोरोना वैक्सीन लगाने का काम भी तेज़ी से चल रहा है. जिससे के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों और टीकाकरण कर दिया जाए और उन्हें इस बीमारी से कोई गंभीर खतरा न रहे क्योंकि राजेश शर्मा यह मानते हैं कि अगर संक्रमण पर समय से काबू न रखा गया तो भिंड जिले में भी मुंबई-इन्दौर-भोपाल की तरह मौत का आंकड़ा बहुत ज़्यादा बढ़ सकता था और या खतरा अब भी बना हुआ है. इसलिए एक बार फिर पूरी शिद्दत के साथ पूरा स्वास्थ्य विभाग संक्रमण से बचाव के काम में जुट गया है.