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महिला दिवस पर विशेष: चंबल में बदलाव की बयार, बेटियों के जन्म पर होता है जलसा

दुनिया भर में 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है, इस दिन को महिलाओं की समाज में मजबूत होती भूमिका को जश्न के तौर पर मनाया जाता है. इस महिला दिवस पर ईटीवी भारत किसी व्यक्ति विशेष से नही बल्कि एक ऐसी पहल से आपको रूबरू करा रहा है जो चम्बल अंचल में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी सोच में एक बदलाव लाई. जिस चम्बल में कभी बेटियों को पैदा होते ही मार दिया जाता था वहां आज उनके पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है. (KAMP group in bhind)

changing picture of chambal
भिंड में बेटियों के जन्म पर जलसा
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Published : Mar 4, 2022, 3:52 PM IST

भिंड। चंबल का नाम आते ही लोगों के जहन में डाकूओं के नाम आने लगते हैं. यहां कई ऐसे डाकू हुए जिनके नाम से पुलिस भी कांप जाती थी. महिलाएं भी घर के बाहर कदम नहीं रखती थी. रूढ़िवादी सोच के चलते चम्बल में बेटियों के पैदा होते ही तम्बाकू मुंह में रख कर नवजात की हत्या कर दी जाती थी, लेकिन समय बदला और धीरे धीरे यहां की तस्वीर भी बदल चुकी है. अब लोग बच्चियों को बेटों की तरह प्यार देते हैं उन्हें पढ़ाते लिखाते हैं. आजादी के मायने का अहसास दिलाते हैं. अंचल में बेटियों को लेकर पुरानी सोच को बदलाने और उनकी स्थिति में बदलाव लाने के लिए युवाओं का एक समूह KAMP यानी कीरतपुरा असोसिएशन मैनेजमेंट पॉवर्टी काम कर रहा है. जिसके प्रयासों का नतीजा है अब जिन घरों में बेटियां जन्म लेती हैं वहां इस समूह के लोग पहुंचते हैं और बच्ची के गृहप्रवेश को जलसे और जश्न में बदल देते हैं.

भिंड में हो रहा बदलाव बेटियों के जन्म पर मनाया जाता है जश्न

अनोखे अंदाज में कराया जाता है गृह प्रवेश
इस समूह द्वारा बड़े ही अनोखे अंदाज में कन्या जन्म के बाद उसका गृह प्रवेश कराया जाता है. जश्न की शुरुआत में फूलों से रास्ता बनाया जाता है, इस रास्ते पर कन्या का तुलादान होता है. इसके बाद नई लक्ष्मी के पैरों की छाप सी जाती है. ताकि ये पल यादगार के रूप में हमेशा मौजूद रहें. फिर फूलों से भरे लोटे को बच्ची के पैर से गिराकर गृहप्रवेश कराया जाता है, ये पूरा आयोजन बेहद ही मनमोहक होता है. जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है.

पायल किन्नर पहल से हुईं प्रभावित
KAMP समूह अब तक 94 बेटियों का इसी तरह भव्य स्वागत कर चुका है. हाल ही में भिंड के शास्त्री नगर में उन्होंने एक परिवार के लिए बेटी का गृहप्रवेश खास बनाया. यह परिवार था शहर की पायल किन्नर का,पायल ने अपनी नातिन का गृहप्रवेश खास तरीके से कराने के लिए KAMP की शुरुआत करने वाले तिलक सिंह भदौरिया से संपर्क किया था. जिन्होंने अपने साथियों के साथ नवजात बच्ची प्रज्ञा का स्वागत कराया. ढोल नगाड़ों से बेटी को अस्पताल से घर तक लाया गया उसके बाद फूलों से सजाए रास्ते में, मिठाई से तुलादान किया गया और कन्या के पद चिन्ह लिए गए जिसके बाद गृह प्रवेश की रस्म समपन्न हुई. पायल किन्नर भी मानती हैं कि पहले की अपेक्षा अब लोग बेटियों को ज्यादा सम्मान देने लगे हैं उन्हें भी इस तरह के आयोजन की जानकारी लगी थी वे भी इससे प्रभावित हुईं थीं. वे कहती हैं कि हर घर मे बेटियों का प्रवेश ऐसे ही सम्मान से किया जाना चाहिए.

चंबल की बदलती तस्वीर
पायल किन्नर की तरह ही दीप्ति का परिवार भी बच्ची के पैदा होने पर बहुत खुश है. दीप्ति ने बीते 30 दिसम्बर को एक बेटी को जन्म दिया. उनके भाई खुद कैम्प समूह के सदस्य हैं. दीप्ति की पहले से ही एक बेटी है. वे कहती हैं कि आज भी हमारे समाज में अगर एक बेटी हो जाए तो सब यहीं चाहते हैं कि दूसरा बच्चा बेटा हो, बेटे से ही परिवार पूरा होता है. इस तरह की धरणा में बदलाव बहुत जरूरी है. इसी सोच को बदने के लिए उन्होंने अपनी दूसरी बेटी के जन्म के बाद इसका गृहप्रवेश जलसे की तरह कराया.

अम्बेडकर की मूर्ति हटाने गए प्रशासन की टीम पर हमला, एसडीएम को जिंदा जलाने की कोशिश

चम्बल में आज भी होता है बेटा-बेटी में फर्क
KVMP के संस्थापक तिलक सिंह भदौरिया बताया कि चम्बल इलाके में आज भी बेटा बेटी में फर्क किया जाता है. बेटे के जन्म पर खुशी में मिठाई बांटी जाती है, लेकिन बेटी के पैदा होने पर वह खुशी नजर नहीं आती. ये सब देखकर उनका मन विचलित रहता था. इसी फर्क को दूर करने के लिए उन्होंने समूह की नींव रखी. अब तक वे 94 बेटियों का स्वागत कार्यक्रम कर चुके हैं. इस कार्यक्रमों का धीरे धीरे असर देखने को मिला है. अब लोगों की सोच में वाकई बदलाव आ रहा है. बेटों की तरह अब लोग बेटियों को भी महत्व देते हैं. कार्यक्रम में ज्यादा खर्च नहीं होता, जो परिवार खर्च उठाने के लिए सक्षम नहीं होता तो समूह द्वारा अपने खर्चे पर बच्ची का गृहप्रवेश कराया जाता है.

समूह को नहीं बनाया NGO
तिलक सिंह भदौरिया ने बताया कि उन्होंने आज तक इस समूह को एनजीओ नहीं बनाया. क्योंकि लोग NGO को अलग नजर से देखने लगे हैं. NGO बनाने पर उनकी पहल का शायद उतना असर नहीं होता, यही सोचकर उन्होंने साधारण तरीके से अपने काम को आगे बढ़ाया है. वहीं तिलक के सहयोगी प्रभात ने बताया कि शुरुआत में हम सिर्फ 7-8 लोग थे, लेकिन देखते ही देखते उनके समूह में 60 से 70 लोग हो चुके हैं. बेटी के पैदा होने पर जितनी खुशी परिवार को होती है उतनी ही हमें भी होती है.

(KAMP group in bhind) (kamp group celebrating birth of daughters in bhind)

भिंड। चंबल का नाम आते ही लोगों के जहन में डाकूओं के नाम आने लगते हैं. यहां कई ऐसे डाकू हुए जिनके नाम से पुलिस भी कांप जाती थी. महिलाएं भी घर के बाहर कदम नहीं रखती थी. रूढ़िवादी सोच के चलते चम्बल में बेटियों के पैदा होते ही तम्बाकू मुंह में रख कर नवजात की हत्या कर दी जाती थी, लेकिन समय बदला और धीरे धीरे यहां की तस्वीर भी बदल चुकी है. अब लोग बच्चियों को बेटों की तरह प्यार देते हैं उन्हें पढ़ाते लिखाते हैं. आजादी के मायने का अहसास दिलाते हैं. अंचल में बेटियों को लेकर पुरानी सोच को बदलाने और उनकी स्थिति में बदलाव लाने के लिए युवाओं का एक समूह KAMP यानी कीरतपुरा असोसिएशन मैनेजमेंट पॉवर्टी काम कर रहा है. जिसके प्रयासों का नतीजा है अब जिन घरों में बेटियां जन्म लेती हैं वहां इस समूह के लोग पहुंचते हैं और बच्ची के गृहप्रवेश को जलसे और जश्न में बदल देते हैं.

भिंड में हो रहा बदलाव बेटियों के जन्म पर मनाया जाता है जश्न

अनोखे अंदाज में कराया जाता है गृह प्रवेश
इस समूह द्वारा बड़े ही अनोखे अंदाज में कन्या जन्म के बाद उसका गृह प्रवेश कराया जाता है. जश्न की शुरुआत में फूलों से रास्ता बनाया जाता है, इस रास्ते पर कन्या का तुलादान होता है. इसके बाद नई लक्ष्मी के पैरों की छाप सी जाती है. ताकि ये पल यादगार के रूप में हमेशा मौजूद रहें. फिर फूलों से भरे लोटे को बच्ची के पैर से गिराकर गृहप्रवेश कराया जाता है, ये पूरा आयोजन बेहद ही मनमोहक होता है. जिसकी हर कोई तारीफ कर रहा है.

पायल किन्नर पहल से हुईं प्रभावित
KAMP समूह अब तक 94 बेटियों का इसी तरह भव्य स्वागत कर चुका है. हाल ही में भिंड के शास्त्री नगर में उन्होंने एक परिवार के लिए बेटी का गृहप्रवेश खास बनाया. यह परिवार था शहर की पायल किन्नर का,पायल ने अपनी नातिन का गृहप्रवेश खास तरीके से कराने के लिए KAMP की शुरुआत करने वाले तिलक सिंह भदौरिया से संपर्क किया था. जिन्होंने अपने साथियों के साथ नवजात बच्ची प्रज्ञा का स्वागत कराया. ढोल नगाड़ों से बेटी को अस्पताल से घर तक लाया गया उसके बाद फूलों से सजाए रास्ते में, मिठाई से तुलादान किया गया और कन्या के पद चिन्ह लिए गए जिसके बाद गृह प्रवेश की रस्म समपन्न हुई. पायल किन्नर भी मानती हैं कि पहले की अपेक्षा अब लोग बेटियों को ज्यादा सम्मान देने लगे हैं उन्हें भी इस तरह के आयोजन की जानकारी लगी थी वे भी इससे प्रभावित हुईं थीं. वे कहती हैं कि हर घर मे बेटियों का प्रवेश ऐसे ही सम्मान से किया जाना चाहिए.

चंबल की बदलती तस्वीर
पायल किन्नर की तरह ही दीप्ति का परिवार भी बच्ची के पैदा होने पर बहुत खुश है. दीप्ति ने बीते 30 दिसम्बर को एक बेटी को जन्म दिया. उनके भाई खुद कैम्प समूह के सदस्य हैं. दीप्ति की पहले से ही एक बेटी है. वे कहती हैं कि आज भी हमारे समाज में अगर एक बेटी हो जाए तो सब यहीं चाहते हैं कि दूसरा बच्चा बेटा हो, बेटे से ही परिवार पूरा होता है. इस तरह की धरणा में बदलाव बहुत जरूरी है. इसी सोच को बदने के लिए उन्होंने अपनी दूसरी बेटी के जन्म के बाद इसका गृहप्रवेश जलसे की तरह कराया.

अम्बेडकर की मूर्ति हटाने गए प्रशासन की टीम पर हमला, एसडीएम को जिंदा जलाने की कोशिश

चम्बल में आज भी होता है बेटा-बेटी में फर्क
KVMP के संस्थापक तिलक सिंह भदौरिया बताया कि चम्बल इलाके में आज भी बेटा बेटी में फर्क किया जाता है. बेटे के जन्म पर खुशी में मिठाई बांटी जाती है, लेकिन बेटी के पैदा होने पर वह खुशी नजर नहीं आती. ये सब देखकर उनका मन विचलित रहता था. इसी फर्क को दूर करने के लिए उन्होंने समूह की नींव रखी. अब तक वे 94 बेटियों का स्वागत कार्यक्रम कर चुके हैं. इस कार्यक्रमों का धीरे धीरे असर देखने को मिला है. अब लोगों की सोच में वाकई बदलाव आ रहा है. बेटों की तरह अब लोग बेटियों को भी महत्व देते हैं. कार्यक्रम में ज्यादा खर्च नहीं होता, जो परिवार खर्च उठाने के लिए सक्षम नहीं होता तो समूह द्वारा अपने खर्चे पर बच्ची का गृहप्रवेश कराया जाता है.

समूह को नहीं बनाया NGO
तिलक सिंह भदौरिया ने बताया कि उन्होंने आज तक इस समूह को एनजीओ नहीं बनाया. क्योंकि लोग NGO को अलग नजर से देखने लगे हैं. NGO बनाने पर उनकी पहल का शायद उतना असर नहीं होता, यही सोचकर उन्होंने साधारण तरीके से अपने काम को आगे बढ़ाया है. वहीं तिलक के सहयोगी प्रभात ने बताया कि शुरुआत में हम सिर्फ 7-8 लोग थे, लेकिन देखते ही देखते उनके समूह में 60 से 70 लोग हो चुके हैं. बेटी के पैदा होने पर जितनी खुशी परिवार को होती है उतनी ही हमें भी होती है.

(KAMP group in bhind) (kamp group celebrating birth of daughters in bhind)

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