भिंड। कितने अरमानों से इंसान एक-एक ईंट जोड़कर अपने सपनों का आशियाना बनाता है, इस उम्मीद में कि अब इसी महल में उसका जीवन आराम से गुजर जायेगा, लेकिन सिर्फ पानी के लिए उसे अपने सपनों का महल छोड़कर जाना पड़े तो फिर उस पर क्या बीतती होगी, ये तो उससे बेहतर कोई नहीं जानता. खंडहर बन चुके सपनों के ये महल, दरवाजों पर लटकते ताले, सूनसान रास्ते और निर्जन हो चुके इस गांव में कभी खुशियां बरसती थीं, पर पानी की किल्लत के चलते यहां के सैकड़ों परिवार पलायन कर गये और बिन पानी ये गांव सूना हो गया.
जल संकट से जूझ रहे ग्रामीण गांव छोड़ने को मजबूर हैं क्योंकि खरौआ गांव के लोग पानी के लिए नहर और गांव के एक मात्र कुएं पर ही निर्भर हैं. जोकि गर्मी में सूख जाता है. जबकि करोड़ों की लागत से तैयार नल जल योजना भी रास्ते में ही दम तोड़ जाती है. अब प्यास बुझाने के लिए ग्रामीणों को पलायन करना ही पड़ रहा है.
कलेक्टर ने भी माना की पानी के अभाव में ग्रामीणों ने पलायन किया है, लेकिन जल्द ही इसका कोई विकल्प तलाशने का आश्वासन भी दिया है. ताकि लोगों को पीने का पानी भी मिल जाये और पलायन भी रुक सके. उन्होंने पीएचई विभाग को इसके लिए निर्देशित भी किया है.
कलेक्टर साहब आश्वासन तो दिये हैं कि जल्द ही इस समस्या का कोई परमानेंट इलाज ढूंढ़ लिया जायेगा, पीने के पानी का इंतजाम हो जाये तो फिर से यहां की गलियां गुलजार हो जाएंगी और खंडहर में तब्दील हो रहे सपनों के महलों में फिर से रौनक लौट आयेगी. जब यहां लोग फिर से रहने लगेंगे तो बंजर होती धरती भी हरियाली की चादर से ढक जायेगी, नहीं तो धीरे धीरे बंजर होते इस गांव में नजर आते खंडहर भी मिट्टी में दफ्न हो जायेंगे.