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Year Ender 2020: जानिए साल 2020 में कैसे रहे भिंड के सियासी समीकरण - Goodbye 2020

2020 हर तरह से लोग के लिए अलग रहा है. इस साल कई तरह के घटनाक्रम लोगों को देखने को मिले, वहीं राजनीतिक लिहाज से भी यह साल काफी उठापटक भरा रहा है. जानिए की भिंड राजनीतिक हलचलों ने किस तरह से बदला इतिहास.....

Bhind
भिंड का सियासी समीकरण
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Published : Dec 27, 2020, 4:46 PM IST

भिंड। साल 2020 जल्द ही हमें अलविदा कहने जा रहा है, लेकिन यह साल अपने साथ कई बड़े घटनाक्रम भी लेकर आया, जहां कोरोना वायरस ने लोगों के लिए पॉजिटिव शब्द के मायने बदल कर रख दिए, तो वहीं राजनीतिक लिहाज से भी यह साल काफी उठापटक भरा रहा है. बात अगर भिंड जिले की जाए तो यहां एक साथ कई बड़े राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिले हैं.

भिंड का सियासी समीकरण
  • विधायकों के इस्तीफों ने बदले समीकरण

साल 2020 में फरवरी के बाद जहां कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाथ छोड़, कमल थाम लिया, तो उनके साथ भिंड जिले के दो कांग्रेसी विधायक मेहगांव से ओपीएस भदौरिया और गोहद से रणवीर जाटव ने भी इस्तीफा देकर भगवा रंग ओढ़ लिया, नतीजा यह हुआ के दोनों ही विधानसभा में उप चुनाव हुए जिसमें एक सीट बीजेपी के तो एक कांग्रेस के खाते में गई. इस उपचुनाव में बीजेपी को मेहगांव सीट पर फायदा मिला, क्योंकि पहले भिंड जिले में बीजेपी के पास सिर्फ एक विधायक था, लेकिन मेहगांव उपचुनाव जीतने के साथ ही अब भिंड जिले में 5 में से 2 विधानसभा में बीजेपी के खाते में है. वहीं कांग्रेस को इस बार नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि 2018 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास तीन विधायक थे, लेकिन वर्तमान स्थिति में भिंड जिले की 5 में से दो ही सीटें कांग्रेस की रह गई हैं.

  • गोहद में कांग्रेस का कीर्तिमान, उपचुनाव की हैट्रिक

साल 2020 भले ही कांग्रेस के लिए राजनीतिक लिहाज से घाटे का साल रहा लेकिन गोहद उपचुनाव के साथ कांग्रेस ने एक नया कीर्तिमान भी रचा है. गोहद में रणवीर जाटव के इस्तीफे के बाद तीसरी बार उपचुनाव हुए और एक बार फिर चुनाव जीतकर कांग्रेस ने हैट्रिक लगा दी, क्योंकि इससे पहले साल 1985 में गोहद में तत्कालीन विधायक चतुर्भुज भदकारिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी, तो वहीं 2009 में कांग्रेस विधायक माखनलाल जाटव की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे रणवीर जाटव को कांग्रेस ने टिकट दिया था और जीत का सेहरा भी रणवीर जाटव के सर ही आया था, लेकिन 2020 में रणवीर जाटव के इस्तीफे के बाद एक बार फिर जनता ने कांग्रेस पर ही भरोसा जताया और उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मेवाराम जाटव को जीत दिलाकर कांग्रेस को लगातार तीन बार जताकर उपचुनाव हैट्रिक का सरताज बनाया.

  • आजादी के बाद मेहगांव को मिला पहला मंत्री

मेहगांव विधानसभा 1951 में पहली बार पहचान में आई थी. उस वक्त मध्य प्रदेश की 79 विधानसभाओं में यह गोहद मेहगांव के नाम से जानी जाती थी, लेकिन जल्द ही मेहगांव को अलग से विधानसभा क्षेत्र की पहचान मिली, बावजूद इतने लंबे समय बाद भी भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा से कोई भी विधायक मंत्री पद पर नहीं बैठ सका, लेकिन सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके साथ अपनी विधायकी त्याग कर तत्कालीन कांग्रेस विधायक ओपीएस भदौरिया बीजेपी में शामिल हो गए और मध्य प्रदेश में एक बार फिर शिवराज की सरकार को सत्ता में लाने में अपनी अहम भूमिका निभाई, जिसका फल उन्हें जल्द ही मिला, और शिवराज मंत्रिमंडल में नगरीय प्रशासन विभाग का राज्यमंत्री पद बतौर इनाम उन्हें मिला. ऐसे कहा जा सकता है लेकिन इतिहास में ओपीएस भदोरिया मेहगांव विधानसभा से पहले मंत्री बने हैं.

ये भी पढ़ें-New Year 2021: प्रदेश के टाइगर रिजर्व की बुकिंग फुल

  • ओपीएस भदौरिया ने बदला इतिहास

राजनीति क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि मेहगांव विधानसभा सीट एक ऐसी सीट है, जहां कभी किसी एक दल का दबदबा नहीं रहा. इसके साथ ही यहां पाला बदलने वाले नेता को भी जनता ने कभी दूसरा मौका नहीं दिया, जिसका बड़ा उदाहरण राय सिंह भदौरिया के रूप में देखने को मिला था. 1967 में जनसंघ से राय सिंह भदौरिया विधायक चुने गए थे, उन्होंने 1972 में जनसंघ से पाला बदलकर कांग्रेस से चुनाव लड़ा तो जनता ने न सिर्फ उन्हें हराया, बल्कि 13 साल तक दोबारा मौका तक नहीं दिया. काफी मेहनत के बाद जाकर साल 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में रायसिंह बाबा को दोबारा मौका देकर विधानसभा पहुंचाया था. तब से ही यह बात मेहगांव विधानसभा क्षेत्र के लिए मशहूर रही, लेकिन सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ओपीएस भदौरिया ने एक नया इतिहास रचा क्योंकि, अपनी विधायकी त्याग कर पाला बदलने वाले भदोरिया 2020 में हुए उपचुनाव में भारी मतों से जीते और अब 28 दिसंबर को एक बार फिर विधायक पद की शपथ लेंगे.

  • डॉ गोविंद सिंह V/s जिला कांग्रेस कमेटी

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के साथ ही लगातार कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह और सभी कांग्रेसी दिग्गज नेता यह कहते नजर आए थे कि अब कांग्रेस में गुटबाजी खत्म हो चुकी है, क्योंकि सबसे बड़ा गुट सिंधिया ने बना रखा था, और अब कांग्रेस गुटबाजी से पूरी तरह आजाद हो चुकी है, लेकिन कांग्रेसी नेताओं के यह बयान ज्यादा समय तक अंदरूनी कलह को दबा ना सके, और मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस में अपना दबदबा रखने वाले और सात बार के कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री डॉक्टर गोविंद सिंह के खिलाफ कांग्रेसियों की खिलाफत भी खुलकर सामने आ गई, और ये विरोध भी किसी और का नहीं बल्कि भिंड जिला कांग्रेस कमेटी का था. जहां जिला अध्यक्ष और जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने न सिर्फ उनका विरोध किया बल्कि मेहगांव विधानसभा उपचुनाव की हार का जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करते हुए, उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से बर्खास्त किए जाने की मांग की.

हाल ही में सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए पूर्व कांग्रेसी नेताओं का तो यही मानना है, कि जिस तरह मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का हाथ रहा, जिन्होंने मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार को फेल करने में अपनी भूमिका अदा की. कहीं ना कहीं उसी का बदला अब पूर्व सीएम कमलनाथ अपने तरीके से ले रहे हैं और डॉक्टर गोविंद सिंह का विरोध कहीं ना कहीं उसी ओर इशारा है, क्योंकि खुद डॉक्टर गोविंद सिंह दिग्विजय गुट से माने जाते हैं.

भिंड। साल 2020 जल्द ही हमें अलविदा कहने जा रहा है, लेकिन यह साल अपने साथ कई बड़े घटनाक्रम भी लेकर आया, जहां कोरोना वायरस ने लोगों के लिए पॉजिटिव शब्द के मायने बदल कर रख दिए, तो वहीं राजनीतिक लिहाज से भी यह साल काफी उठापटक भरा रहा है. बात अगर भिंड जिले की जाए तो यहां एक साथ कई बड़े राजनीतिक घटनाक्रम देखने को मिले हैं.

भिंड का सियासी समीकरण
  • विधायकों के इस्तीफों ने बदले समीकरण

साल 2020 में फरवरी के बाद जहां कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाथ छोड़, कमल थाम लिया, तो उनके साथ भिंड जिले के दो कांग्रेसी विधायक मेहगांव से ओपीएस भदौरिया और गोहद से रणवीर जाटव ने भी इस्तीफा देकर भगवा रंग ओढ़ लिया, नतीजा यह हुआ के दोनों ही विधानसभा में उप चुनाव हुए जिसमें एक सीट बीजेपी के तो एक कांग्रेस के खाते में गई. इस उपचुनाव में बीजेपी को मेहगांव सीट पर फायदा मिला, क्योंकि पहले भिंड जिले में बीजेपी के पास सिर्फ एक विधायक था, लेकिन मेहगांव उपचुनाव जीतने के साथ ही अब भिंड जिले में 5 में से 2 विधानसभा में बीजेपी के खाते में है. वहीं कांग्रेस को इस बार नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि 2018 में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास तीन विधायक थे, लेकिन वर्तमान स्थिति में भिंड जिले की 5 में से दो ही सीटें कांग्रेस की रह गई हैं.

  • गोहद में कांग्रेस का कीर्तिमान, उपचुनाव की हैट्रिक

साल 2020 भले ही कांग्रेस के लिए राजनीतिक लिहाज से घाटे का साल रहा लेकिन गोहद उपचुनाव के साथ कांग्रेस ने एक नया कीर्तिमान भी रचा है. गोहद में रणवीर जाटव के इस्तीफे के बाद तीसरी बार उपचुनाव हुए और एक बार फिर चुनाव जीतकर कांग्रेस ने हैट्रिक लगा दी, क्योंकि इससे पहले साल 1985 में गोहद में तत्कालीन विधायक चतुर्भुज भदकारिया के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी, तो वहीं 2009 में कांग्रेस विधायक माखनलाल जाटव की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे रणवीर जाटव को कांग्रेस ने टिकट दिया था और जीत का सेहरा भी रणवीर जाटव के सर ही आया था, लेकिन 2020 में रणवीर जाटव के इस्तीफे के बाद एक बार फिर जनता ने कांग्रेस पर ही भरोसा जताया और उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मेवाराम जाटव को जीत दिलाकर कांग्रेस को लगातार तीन बार जताकर उपचुनाव हैट्रिक का सरताज बनाया.

  • आजादी के बाद मेहगांव को मिला पहला मंत्री

मेहगांव विधानसभा 1951 में पहली बार पहचान में आई थी. उस वक्त मध्य प्रदेश की 79 विधानसभाओं में यह गोहद मेहगांव के नाम से जानी जाती थी, लेकिन जल्द ही मेहगांव को अलग से विधानसभा क्षेत्र की पहचान मिली, बावजूद इतने लंबे समय बाद भी भिंड जिले की मेहगांव विधानसभा से कोई भी विधायक मंत्री पद पर नहीं बैठ सका, लेकिन सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद उनके साथ अपनी विधायकी त्याग कर तत्कालीन कांग्रेस विधायक ओपीएस भदौरिया बीजेपी में शामिल हो गए और मध्य प्रदेश में एक बार फिर शिवराज की सरकार को सत्ता में लाने में अपनी अहम भूमिका निभाई, जिसका फल उन्हें जल्द ही मिला, और शिवराज मंत्रिमंडल में नगरीय प्रशासन विभाग का राज्यमंत्री पद बतौर इनाम उन्हें मिला. ऐसे कहा जा सकता है लेकिन इतिहास में ओपीएस भदोरिया मेहगांव विधानसभा से पहले मंत्री बने हैं.

ये भी पढ़ें-New Year 2021: प्रदेश के टाइगर रिजर्व की बुकिंग फुल

  • ओपीएस भदौरिया ने बदला इतिहास

राजनीति क्षेत्र के जानकार बताते हैं कि मेहगांव विधानसभा सीट एक ऐसी सीट है, जहां कभी किसी एक दल का दबदबा नहीं रहा. इसके साथ ही यहां पाला बदलने वाले नेता को भी जनता ने कभी दूसरा मौका नहीं दिया, जिसका बड़ा उदाहरण राय सिंह भदौरिया के रूप में देखने को मिला था. 1967 में जनसंघ से राय सिंह भदौरिया विधायक चुने गए थे, उन्होंने 1972 में जनसंघ से पाला बदलकर कांग्रेस से चुनाव लड़ा तो जनता ने न सिर्फ उन्हें हराया, बल्कि 13 साल तक दोबारा मौका तक नहीं दिया. काफी मेहनत के बाद जाकर साल 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में रायसिंह बाबा को दोबारा मौका देकर विधानसभा पहुंचाया था. तब से ही यह बात मेहगांव विधानसभा क्षेत्र के लिए मशहूर रही, लेकिन सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए ओपीएस भदौरिया ने एक नया इतिहास रचा क्योंकि, अपनी विधायकी त्याग कर पाला बदलने वाले भदोरिया 2020 में हुए उपचुनाव में भारी मतों से जीते और अब 28 दिसंबर को एक बार फिर विधायक पद की शपथ लेंगे.

  • डॉ गोविंद सिंह V/s जिला कांग्रेस कमेटी

ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के साथ ही लगातार कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह और सभी कांग्रेसी दिग्गज नेता यह कहते नजर आए थे कि अब कांग्रेस में गुटबाजी खत्म हो चुकी है, क्योंकि सबसे बड़ा गुट सिंधिया ने बना रखा था, और अब कांग्रेस गुटबाजी से पूरी तरह आजाद हो चुकी है, लेकिन कांग्रेसी नेताओं के यह बयान ज्यादा समय तक अंदरूनी कलह को दबा ना सके, और मध्य प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आने के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस में अपना दबदबा रखने वाले और सात बार के कांग्रेस विधायक और पूर्व मंत्री डॉक्टर गोविंद सिंह के खिलाफ कांग्रेसियों की खिलाफत भी खुलकर सामने आ गई, और ये विरोध भी किसी और का नहीं बल्कि भिंड जिला कांग्रेस कमेटी का था. जहां जिला अध्यक्ष और जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने न सिर्फ उनका विरोध किया बल्कि मेहगांव विधानसभा उपचुनाव की हार का जिम्मेदार मानते हुए उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित करते हुए, उन्हें 6 साल के लिए पार्टी से बर्खास्त किए जाने की मांग की.

हाल ही में सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए पूर्व कांग्रेसी नेताओं का तो यही मानना है, कि जिस तरह मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का हाथ रहा, जिन्होंने मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार को फेल करने में अपनी भूमिका अदा की. कहीं ना कहीं उसी का बदला अब पूर्व सीएम कमलनाथ अपने तरीके से ले रहे हैं और डॉक्टर गोविंद सिंह का विरोध कहीं ना कहीं उसी ओर इशारा है, क्योंकि खुद डॉक्टर गोविंद सिंह दिग्विजय गुट से माने जाते हैं.

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