भिंड। भारत में चंबल का नाम किसी ने शायद ही न सुना हो, लेकिन जिसने भी सुना उसे इस क्षेत्र के बारे में बागी बीहड़ बंदूक के बारे में ही पता होगा. कहां जाता था की चंबल वह जगह है जहां जब घर में बच्ची पैदा होती है तो दुनिया में आते से ही उसे मार दिया जाता था. अगर पता चल जाता था कि गर्भवती महिला के पेट में कोई कन्या पाल रही है तो उसकी भ्रूण हत्या कर दी जाती थी. इस समाज में कई कुरीतियों को लेकर चंबल क्षेत्र बदनाम रहा. लेकिन अब ऐसा नहीं है, अब इस क्षेत्र में एक अच्छा और सकारात्मक बदलाव आया है. जिसमें समाज के हर वर्ग ने अपनी भूमिका भी निभाई है. कई डकैतों ने सरेंडर कर दिया तो कई लोग मुख्य धारा के साथ नए जमाने के प्रवेश में ढलने लगे हैं.
जागरूकता लाने का प्रयास: भिंड को वीर सपूतों की भूमि कहा जाता है और बेटियां तो जैसे क्षेत्र में अपनी उपलब्धियां से चार चांद लग रही हैं. लेकिन कहीं ना कहीं आज भी कई लोग ऐसे हैं जिनके घर में बेटी पैदा होने पर एक मलाल चेहरे पर नजर आ ही जाता है. बेटा-बेटी का यह फर्क मिटाने में शायद कुछ समय और लगेगा लेकिन इसके लिए लोगों का जागरूक होना जरूरी और यही जागरूकता भिंड के तिलक सिंह भदौरिया और उनके साथी मिलकर लाने का एक प्रयास कर रहे हैं. उन नवजात बेटियों का भव्य स्वागत समारोह मना कर जो इस दुनियां में जन्म ले चुकी हैं.
फूलों का रास्ता, पैरों की छाप: दो दिन पहले ही भिंड के मेहगांव कस्बे में रहने वाले राजेश चौधरी के घर नातिन ने जन्म लिया है. इस खास मौके को और यादगार बनाने के लिए उन्होंने तिलक सिंह भदौरिया से संपर्क किया. वे चाहते थे कि उनकी बेटी का गृह प्रवेश भी लोगों के लिए मिसाल बने. तिलक और उनकी टीम के दो सदस्य समय पर मेहगांव पहुंच गए. नन्ही परी के अस्पताल से घर आने से पहली ही स्वागत की तैयारियां पूरी कर ली गईं. फूलों का रास्ता बनाया, उसके स्वागत के लिए फूलों से ही संदेश लिखा. जब तक तैयारी पूरी हुई तब तक नन्ही परी अस्पताल से घर आ गयी.
मिठाई से तुलादान, स्वागत देखने जुटी भीड़: गली में एंट्री करते ही ढोल नगाड़ों के साथ उसे घर के पास तक लाया गया. फिर बच्ची को तिलक लगाकर परिजनों ने उसका स्वागत किया. ये बेला यहीं नही रुकी इसके बाद नन्ही परी फूलों के रास्ते घर की ओर बढ़ी जहां पहले उसका मिठाई से तुलादान कराया गया और इसके बाद रोली से पैरों के छाप लिए गए इसके बाद किसी नई दुल्हन की तरह नन्ही परी के पैरों से घर की देहरी पर रखा सजा हुआ चावल का लोटा गिरवाया गया और उसका गृह प्रवेश कराया गया. नन्ही परी के स्वागत समारोह में न सिर्फ घरवाले या रिश्तेदार बल्कि सैकड़ों लोग शामिल हुए.
लंबे अरसे बाद हुआ घर में बेटी का जन्म: परिवार के मुखिया राजेश चौधरी ने बताया कि ''उनके घर में पीढ़ियों के बाद ये पहली बेटी हुई है, इसलिए सभी बहुत खुश हैं. सभी चाहते थे कि नातिन की खुशी अलग तरह से यादगार बने. इसके लिए kamp समूह के लोगों से पूछा था, वे पहले भी इस क्षेत्र में तीन बार कार्यक्रम कर चुके हैं. हमारे यहां भी उनके सहयोग से बहुत अच्छा समारोह हुआ, बहुत लोग आए थे देखने के लिए.''
जागरूकता के लिए शुरू की थी पहल: इस पहल को लेकर जब तिलक सिंह भदौरिया से बात की तो उन्होंने बताया कि ''2016 में समाज में कुछ अच्छा करने के उद्देश्य से दोस्तों के साथ मिलकर कीरतपुरा असोसिएशन मैनेजमेंट पॉवर्टी (kamp) शुरू किया था.'' उन्होंने बताया कि ''जब भी वे अपने घर के आसपास देखते थे कि लोग बेटे के जन्म पर उत्साह दिखाते, मिठाइयां बंटवाते हैं, लेकिन जब किसी के घर बेटी पैदा होती तो माहौल मातम जैसा रहता है. ये सोच आज भी पूरी तरह से लोगों के जहन से नहीं गयी. इसी बात ने मन को झकझोर दिया और फिर उन्होंने इसके लिए जागरुकता लाने के उद्देश्य से साथियों के साथ मिलकर गांव के ही कुछ परिवारों में बेटियों के जन्म पर जलसा मनवाया. ये देख कर और भी लोग प्रेरित हुए और उनकी पहल को सराहना मिली.'' धीरे धीरे उनका ये प्रयास रंग लाया और भिंड शहर और आसपास के क्षेत्रों में भी कई लोगों ने उनसे संपर्क किया. तिलक और उनके साथियों को चंबल के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और अन्य जिलों से भी बुलावा आया, वे वहां गए और उन्हें जागरूक किया.
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अब तक 140 बच्चियों का कर चुके स्वागत: तिलक कहते हैं कि ''कोई प्रयास तब तक जागरूकता नहीं लाता जब तक उसमें अन्य लोगों की भागीदारी न हो. शुरू-शुरू में कई लोगों को लगता था कि हम जाते हैं और सामाजिक संगठन की तरह फ्री में उनके लिए ये समारोह ऑर्गनाइज करते हैं. लेकिन फिर हमने इस आयोजन पर आने वाला खर्च परिवारों पर छोड़ना शुरू कर दिया. साथ ही तैयारी में भी परिवार के सदस्यों को सहयोग करने के लिए कहा, जिसका सकारात्मक परिणाम देखने को मिला. आज जगह-जगह से फोन आते हैं लेकिन हर जगह जाना संभव नहीं. क्योंकि इस समूह से जुड़ा हर सदस्य नौकरी पेशा है, जो अपने व्यस्त समय में से समय निकालते हैं. तो समझाने पर लोग खुद से भी नन्ही परी के स्वागत का कार्यक्रम आयोजित कर लेते और फिर उनके पास फोटोज भेजते हैं जिसे तिलक अपने सोशल मीडिया पर शेयर भी करते हैं. अब तक वे 139 बच्चियों के स्वागत कर चुके थे और मेहगांव में उन्होंने 140 वीं बेटी का स्वागत किया है.''
बेटियां बोझ हैं नहीं: एक सोच जिसने समाज की ओझी सोच को बदलने का काम किया एक विचार जिसने समाज की बेटियों के प्रति विचारधारा को बदल दिया. ये अहसास दिलाया कि बेटियां बोझ नही हैं. उस प्रयास का ही असर है कि आज चंबल बेटियों के जन्म पर जलसा मनाता है.