भिंड। 'ये ढाई किलो का हाथ अगर किसी को पड़ जाये तो आदमी उठाता नहीं.. उठ जाता है…' बॉलीवुड की सबसे सफल फिल्मों में से एक फिल्म 'दामिनी' से सनी देओल का यह डायलॉग उनकी पहचान बनी. इसी डायलॉग की तरह ही भिंड की अनुभा जैन का पंच भी किसी को नानी याद दिला सकता है, अनुभा जैन एक बॉक्सिंग प्लेयर हैं जो स्कूल शिक्षा एवं खेल विभाग के अन्तर्गत होने वाले स्कूल गेम्स में 71प्लस वेट कैटगरी में खेलती हैं. वे ज़िले की पहली छात्रा हैं, जिन्हें स्कूल बॉक्सिंग गेम्स के नेशनल खेलने का मौका मिला है.
पिता ने किया बॉक्सिंग के लिए मोटिवेट: इस वर्ष अपनी 12वीं की परीक्षा पास करने वाली अनुभा भिंड जिले के सरकारी स्कूल शासकीय उत्कृष्ट उच्च माध्यमिक विद्यालय क्रमांक-1 की छात्रा थी, जिन्होंने 2 साल पहले अपने पिता और स्कूल के स्पोर्ट्स कोच के कहने पर बॉक्सिंग की शुरुआत की. स्कूल में ट्रेनिंग के दौरान कोच भूपेन्द्र ने उनकी काबिलियत को परखा और स्कूल लेवल प्रतियोगिताओं में आगे बढ़ाने का फैसला लिया. कोच स्कूल गेम्स में अपने विद्यालय के 30 बच्चों को अलग-अलग खेलों के लिए लेकर ग्वालियर पहुंचे, चूँकि अनुभा एक हेल्दी औसत से ज्यादा वजन वाली छात्रा थीं तो उनके वजन को ही उनकी ताकत बनाकर बॉक्सिंग रिंग में उतारा. यहां अनुभा ने अपनी बेसिक ट्रेनिंग के बलबूते पहले जिला स्तर और फिर संभाग स्तर में क्वालीफाई किया.
हर रोज ट्रेनिंग के लिए किया 80 किलोमीटर का सफर: बिना संसाधन एक सरकारी स्कूल की छात्रा के लिए यह बड़ी बात थी कि आगे वह स्कूल गेम्स की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में खेलने वाली थी, लेकिन बेसिक ट्रेनिंग के साथ राज्य स्तर पर खेलना आसान नहीं होता. इसके लिए कड़ी ट्रेनिंग ज़रूरी थी, साथ ही पढ़ाई भी ज़रूरी थी, क्योंकि अनुभा 12वीं बोर्ड की छात्रा थीं. लेकिन ट्रेनिंग के लिए भी यहां ना तो बॉक्सिंग रिंग थी, ना ही महिला कोच ऐसे में तैयारी के लिए अब परेशानी सामने खड़ी थी, इसको देखते हुए अनुभा के पिता आशीष जैन ने भिंड से लगे उत्तरप्रदेश के इटावा जिले में पदस्थ एक महिला कोच रूखसार बानों से संपर्क किया और उनसे बेटी को ट्रेनिंग देने की गुज़ारिश की.
जब महिला कोच रूखसार बानों मान गई तो संघर्ष का एक पड़ाव फिर शुरू हुआ, क्योंकि बोर्ड परीक्षाओं का अहम साल होने के चलते पढ़ाई भी नही छोड़ी जा सकती थी. ऐसे में प्रतिदिन शाम को अनुभा अपने पिता के साथ 40 किलोमीटर का सफर तय कर इटावा जाती और 3 घंटे ट्रेनिंग कर वापस लौटती थी, क्योंकि अगली सुबह स्कूल पहुंच कर पढ़ाई भी करनी होती थी.
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नहीं था स्टेट टूर्नामेंट में नाम, खेलने का मौका मिला तो गोल्ड हांसिल किया: अनुभा जैन को झटका तब लगा, जब स्टेट लेवल स्कूल बॉक्सिंग मैचेस की लिस्ट आयी. इस लिस्ट में अनुभा का नाम ही नहीं था. क्वालीफाई करने के बाद भी उन्हें राज्य स्तरीय गेम्स से बाहर कर दिया गया था, जिसकी कोई वाजिब वजह भी नही बतायी गई. लेकिन उनके पिता ने हार नहीं मानी, किस्मत से तब तक शासकीय उत्कृष्ट उच्च माध्यमिक विद्यालय क्रमांक एक में स्कूल शिक्षा एवं खेल विभाग द्वारा भिंड में बॉक्सिंग रिंग बनाई जा चुकी थी और राज्य स्तरीय बॉक्सिंग प्रतियोगिता भी इसी रिंग पर भिंड में प्रस्तावित हुई. ऐसे में अनुभा के पिता और कोच ने खेल अधिकारियों से बात की और जल्द ये कमी पकड़ में आ गई और जोनल अधिकारियों ने लिस्ट में सुधार कराया और अनुभा को राज्य स्तर पर खेलने का मौका मिला जिसे उसने अपनी मेहनत और ट्रेनिंग के बलबूते गोल्ड मेडल जीत कर राष्ट्रीय स्तर के लिए क्वॉलिफाई कर लिया.
बोर्ड परीक्षा ने डाला नेशनल टूर्नामेंट के नतीजों पर असर: अनुभा के पिता आशीष जैन ने बताया "इसी साल बोर्ड परीक्षा होने से कुछ महीनों से अनुभा की ट्रेनिंग पर विराम लग गया था क्योंकि सुनने में आया था की इस वर्ष नेशनल नहीं होंगे. ऐसे में परीक्षा के चलते प्रैक्टिस नहीं हो सकी, लेकिन अचानक ढेढ़ महीने पहले एक दिन फोन आया कि 7-8 जून को राष्ट्रीय स्तर के खेल में सुपर हैवी वेट कैटेगरी में अनुभा को खेलने जाना है, वह भिंड ज़िले से अकेली खिलाड़ी हैं. ऐसे में ट्रेनिंग दोबारा शुरू की भोपाल में प्रतियोगिता का आयोजन हुआ और कुछ पॉइंट्स की वजह से मेडल छूट गया. लेकिन ये अपने आप में बड़ी बात थी की भिंड ज़िले की बेटी राष्ट्रीय स्तर पर स्कूल गेम्स में बॉक्सिंग खेलने पहुंच सकीं, वे बॉक्सिंग में अपनी कैटेगरी में अब तक दो मेडल हांसिल करने वाली भिंड जिले की पहली स्कूल बॉक्सिंग खिलाड़ी हैं."
बॉक्सिंग के साथ मेडिकल की पढ़ाई का सपना: अनुभा अपनी इस उपलब्धि का पूरा श्रेय अपने पिता को देती हैं. अनुभा कहती हैं कि "मेरे पिता ने हमेशा मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है. और भी बच्चियों को भिंड जिले से आगे आना चाहिए, उन्हें स्पोर्ट्स के प्रति मोटिवेट होना चाहिए. वे अपने माता पिता से बात करें, उन्हें समझाएं, ना कि उन पर दबाव डालें. ऐसे ही माता पिता भी अपने बच्चों को सपोर्ट करें, क्योंकि यदि किसी का पढ़ाई में मन नहीं लगता है, तो वह स्पोर्ट्स में भी आगे बढ़ सकता है. आज खेल जगत में काफी सारी सुविधा और ऑपोर्च्युनिटी हैं. मैंने 12वीं पास कर चुकी हूं और आगे भी बॉक्सिंग जारी रखना चाहती हूं, लेकिन इसके साथ-साथ ही मैं एक साल तक मेडिकल की तैयारी भी करना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि भविष्य में मेरा जुड़ाव पढ़ाई और खेल दोनों से बना रहे.."