भिंड। जिस बीहड़ी क्षेत्र में कभी डाकू मोहर सिंह का आतंक था, जिस चंबल का युवा दो दशक पहले तक जुल्म की बगावत कर बंदूक उठा लेता था, उसी भिंड जिले की तस्वीर अब इतनी बदल चुकी है कि आज नौजवान हथियारों की जगह हाथों में खेती की औजारें उठाकर किसानी को लाभ का धंधा बनाने में जुटे हुए हैं. मेहगांव क्षेत्र का एक किसान तो अपने खेतों में इजरायली खीरे उगा रहा है, जिसकी बिक्री देश की राजधानी दिल्ली तक हो रही है. पारंपरिक खेती से हटकर किया यह प्रयोग कितना सफल साबित हो रहा है जानिए ETV Bharat की इस खास रिपोर्ट के जरिए.
पारंपरिक खेती से हटकर किया ये उपाए: किसान वो अन्नदाता है जो पूरे साल अपने खेत में कड़ी मेहनत करता है, अपने खून पसीने सींच कर फसल तैयार करता है. लेकिन कई बार उस फसल का उचित दाम तक नहीं मिलता है. चंबल-अंचल में तो खेती के नाम पर पारंपरिक फसल यानि गेहूं सरसों, चना, मसूर, अरहर और बाजरा ही उगाया जाता है. कुछ छोटे किसान सब्जियां तो लगाते हैं लेकिन मौसम की मार से कई बार उन्हें नुकसान झेलना पड़ता है. अब अंचल के भिंड जिले में रहने वाले नरेश भदौरिया ने पारंपरिक किसानी से हटके आधुनिक खेती को अपनाया और आज वे अपने खेत में इजरायली खीरा पैदा कर रहे हैं.
किसान ने लगवाया पॉली हाउस: जिले के मेहगांव तहसील मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित मेहगांव-मौ हाईवे के पास नरेश भदौरिया ने शासन और उद्यानिकी विभाग की मदद से अपनी जमीन पर पॉली हाउस लगवाया है. जिसमें वे पारंपरिक खेती से हटकर फल और सब्जियां उगया रहे हैं, लेकिन जिस चीज की पैदावार ने सबका ध्यान खींचा वह इजरायली खीरा है. डेढ़ महीने लगातार इसकी खेती की गई जिसने पहली बार में ही किस्मत बदल दी. किसान नरेश भदौरिया ने बताया कि वे पहली बार खेती कर रहे हैं, उन्होंने पहले कभी फसल नहीं उगाई. वे बेरोजगार थे उन्होंने व्यवसायों में हाथ आजमाया लेकिन कमाई में मात खाते रहे, हाल ही में वे राजस्थान गए हुए थे जहां रास्ते में हाईवे किनारे उन्हें एक पॉली हाउस दिखाई दिया. उन्होंने वहां जाकर जब किसान से बात की और इस सिस्टम को समझा, इसके बाद उन्होंने खुद भी पॉली हाउस लगाने का फैसला लिया.
करीब 28 लाख रुपए से तैयार हुआ पॉली हाउस: नरेश शर्मा जब वापस भिंड आए तो उद्यानिकी विभाग पहुंचकर जानकारी ली और पॉली हाउस लगाने की बात रखी. प्रोजेक्ट पास हो गया कुछ समय में करीब 28 लाख रुपए की लागत से पॉली हाउस बनकर तैयार हो गया. उन्होंने बताया कि इसके लिए वे खुद करीब साढ़े 14 लाख रुपए विभाग में जमा किए थे, जिसमें करीब 50 फीसदी सब्सिडी के तौर पर उन्हें वापस मिल गया. अब बात थी फसलों की जिसके लिए उन्होंने काफी रिसर्च किया और आखिर में इजरायल से खीरे के बीज मंगवाए. नरेश बताते हैं कि इन बीज से करीब डेढ़ महीने में ही पौधे तैयार हो कर फल यानी खीरा देने लगा. फसल की देखभाल के संबंध में जानकारी देने देहरादून और लखनऊ से वैज्ञानिकों के दल भी आते रहते हैं, जो बताते हैं कि फसल में कब और कितना खाद देना है साथ ही देखभाल कैसे करनी है.
बेहद अच्छा है स्वाद: इस इजरायली खीरे की बात ही कुछ अलग है. किसान नरेश के खेतों में उग रहा यह इजरायली खीरा भारतीय खीरे के मुकाबले दिखने में बिल्कुल हरा होता है. इस पर किसी तरह की धारियां नहीं होती हैं, साथ ही इसका छिलका आलू की तरह पतला होता है. खाने में यह बहुत टेस्टी और मुलायम होता है. इसका छिलका उतारे बिना ही इसे खाया जा सकता है .
प्रतिदिन मिल रही 3 से 4 क्विंटल फसल: किसान नरेश के मुताबिक ये इजरायल के बीज से तैयर पौधे भी आम पौधों से अलग हैं, जिनमे खीरे एक या 2 नहीं बल्कि गुच्छों में लगते हैं. नरेश ने बताया कि वर्तमान में प्रतिदिन खेत से करीब 3 से 4 क्विंटल खीरा तोड़ा जाता है और उन्हें दिल्ली तक सप्लाई किया जाता है. बीते 2 सप्ताह से वे भिंड की सब्जी मंडी में अपना खीरा पहुंचा रहे हैं, डेढ़ महीने से कम समय में ये खीरा बंपर पैदावार के साथ अच्छे दामों पर बिक रहा है. दिल्ली में ये खीरा करीब 25 से 30 रुपए प्रतिकिलो और भिंड में 15 से 20 रुपए प्रतिकिलो तक का भाव जाता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि इस आधुनिक तकनीक के जरिए उन्होंने कम समय में काफी लाभ कमा लिया है. आज की परिस्थिति देख कर लगता है कि उन्हें यह बिसनेस 10 साल पहले ही शुरू कर देना चाहिए था.
खीरे के बाद मिलेगी रंग बिरंगी शिमला मिर्च: नरेश कहते हैं कि यह फसल और किसानी उनके लिए लाभदायक साबित हो रही है, क्योंकि इस पॉली हाउस में वे 12 महीने फसल लगाएंगे. खीरे के बाद इस परिसर में वे लाल, हरी और पीली शिमला मिर्च लगाने वाले हैं जिसके लिए उन्नत बीज भी उन्हें वैज्ञानिकों ने उपलब्ध कराए हैं. वे कहते हैं कि आसपास के कई लोग उनका पॉली हाउस देखने आते हैं. कई किसान उनसे इसकी जानकारी भी लेते हैं कि यह कार्य किस तरह किया जाता है. कई किसानों ने यहां आकर ट्रेनिंग भी ली है. ऐसे में नरेश भदौरिया सभी को पॉली हाउस शुरू करने की सलाह देते हैं, जिससे अन्य किसानों को भी खेती में फायदा मिल सके. नरेश भदौरिया ने बताया कि उन्होंने अपने इस पॉली हाउस खेत में खीरे के अलावा अन्य सब्जी और फल भी लगाए हैं. उनके खेत में लाल भिंडी भी पैदा हो रही है, लेकिन नरेश इसे मार्केट में बेचते नहीं हैं बल्कि इसका उपयोग घर और दोस्तों के लिए करते हैं. आज उनके खेत में खीरे के अलावा हरी भिंडी, तोरई, ककड़ी और करेला भी पैदा हो रहे हैं.
उद्यानिकी विभाग ने दी 50 फीसदी सब्सिडी: जब इस संबंध में जिला उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक गंभीर सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि भिंड जिले में किसानों का पारंपरिक खेती से आधुनिक खेती की ओर ज्यादा रुझान बढ़ा है. इसी के तहत किसान नरेश भदौरिया की पत्नी मिथलेश भदौरिया के नाम से विभाग ने 1 एकड़ यानी 4000 वर्ग मीटर में शेलडेड (पॉली) हाउस बनाया था, जिसकी लागत करीब 28 लाख 40 हजार आई है. इस लागत राशि में उद्यानिकी विभाग ने शासन की योजना के तहत 50 फीसदी यानि 14 लाख 20 हजार रुपए का अनुदान भी दिया है. इस खेत में आज खीरे की अच्छी और गुणवत्तापूर्ण फसल है. इसके लिए लेबर भी रीवा से मंगवाई गए हैं, जो फसल का पूरा ध्यान रखते हैं. इस प्रयोग के जरिए नरेश का खीरा दिल्ली तक सप्लाई हो रहा है. उन्होंने बताया कि हमारे पास फील्ड स्टाफ है, हर एक ब्लॉक में उद्यानिकी विकास अधिकारी की पोस्टिंग है. प्रशिक्षण के बाद समय समय पर किसानों को जानकारी देते हैं.
किसानों के लिए कौन सी खेती बेहतर: जिला उद्यानिकी अधिकारी का का कहना है कि "किसान को पारंपरिक अन्न की खेती की बजाय उद्यानिकी खेती करना चाहिए, क्योंकि इसमें जितने भी फसले हैं चाहे वह सब्जी उत्पादन हो मसाला उत्पादन हो, ये पारंपरिक खेती से ज्यादा 4 से 5 गुना उत्पादन देता है और कीमत भी लगभग उतनी ही रहती है."
वरदान साबित हो रही आधुनिक खेती: आज जब लोग देश में बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे हैं, तब नरेश भदौरिया ने बेरोजगार होने के बावजूद अपना एक मुकाम हासिल किया है. खेती में एक प्रयोग उन्हें सफलता की सीढ़ियां चढ़ा रहा है. ऐसे में कहा जा सकता है कि बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे युवाओं के लिए भी आधुनिक खेती वरदान साबित हो सकती है.