भिंड। 2013 के चुनाव से पहले जब भारतीय जनता पार्टी ने डॉ. भगीरथ प्रसाद को भिंड से लोकसभा प्रत्याशी बनाया तब अटेर क्षेत्र में वर्षों से चली आ रही चम्बल पार करने के लिए पुल की माँग एक वादा बनी. जिसे निभाने का पूरा प्रयास तत्कालीन बीजेपी सांसद ने किया. भिंड में बीते 8 साल पहले अटेर क्षेत्र से उत्तरप्रदेश के जैतपुर के बीच आवागमन में रोड़ा बनी चम्बल नदी पर 65 करोड़ की लागत का पुल स्वीकृत कराया, काम भी शुरू हुआ. एक लंबे अरसे बाद 90 फ़ीसदी काम पूरा भी हो चुका है.
चुनावी मुद्दा बनेगा अधूरा पुल: अब तक माना जा रहा था कि एक या दो महीने में ही यह पुल आवागमन के लिए शुरू हो जाएगा. लेकिन, अचानक इस पुल का निर्माण कर रही कंस्ट्रक्शन कंपनी ने काम बंद कर दिया है. जिसकी वजह से एक बार फिर लगने लगा है की ये पुल इस क्षेत्र के लिए एक चुनावी मुद्दा बनकर रह गया है. जिसे नेता अपनी उपलब्धि में तो गिना देते हैं लेकिन उपयोगिता अब भी शून्य है. स्थानीय लोग अब भी यूपी जाने के लिए लंबा फेर लेने को मजबूर हैं. वहीं एक बार फिर चम्बल पर बने रहे पुल की निर्माण अवधि बढ़ती नजर आ रही है. खबर है कि प्रशासन द्वारा कुछ कार्यों के लिए स्वीकृति प्रदान नहीं की जा रही है और ऊपर से कंस्ट्रक्शन कंपनी का पेमेंट रोक दिया गया है, जिसकी वजह से अब पुल का निर्माण आधिकारिक रूप से बंद कर दिया गया है.
नाव से पार करते थे लोग घड़ियालों भरी चम्बल: मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित भिंड जिले से एमपी यूपी के बीच बरही स्थित चम्बल पुल एक मात्र जरिया है. प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे भिंड जिले के अटेर क्षेत्र की जनता को यूपी जाने के लिए वर्षों से लंबा सफर तय करना पड़ता था. विकल्प के रूप में पहले घड़ियालों से भरी चम्बल नदी पर नाव से रास्ता पार कर लोग उत्तर प्रदेश के जैतपुर, इटावा, आगरा का सफर करते थे. कई बार नदी पर हादसे भी हुए जिसको देखते हुए तत्कालीन सांसद भगीरथ प्रसाद ने आठ साल पहले अटेर और जैतपुर के बीच रास्ता स्थापित कर दूरी को कम करने के लिए चम्बल पर नवीन पुल स्वीकृत कराया था. इसका टेंडर बिहार की नारायण दास कंस्ट्रक्शन को मिला तो पुल का निर्माण 2016 में शुरू हुआ. यह पुल 2018-19 में बनकर शुरू होना था.
एक पुल बंद दूसरा अधूरा: लोगों को उम्मीद थी कि अब ये पुल बनकर तैयार हो जाएगा और उन्हें 70 किलोमीटर का फेर करने की बजाय सिर्फ़ 12 किलोमीटर का सफर करना पड़ेगा. लेकिन 8 साल बाद भी यह पुल निर्माणाधीन है. स्थानीय लोगों का कहना है कि ''उत्तर प्रदेश जाने के लिए यह पुल सबसे सुगम रास्ता बनता, क्यूँकि यहाँ से जैतपुर करीब 10-12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है लेकिन पुल शुरू ना होने की वजह से मुसाफिरों को सुरपुरा फूप होते हुए बरही चम्बल पुल के जरिए यूपी में एंट्री लेनी पड़ती है. जहां से ऊदीमोड़ के रास्ते वे जैतपुर, या इटावा या आगरा पहुचते हैं. ये एक लंबा सफर हो जाता है. लेकिन इन दिनों तो बरही पर बना चम्बल पुल भी क्षतिग्रस्त होने के चलते भारी वाहनों का आवागमन बंद है. ऐसे में बस से अटेर से सफर करने वाले यात्रियों को जैतपुर पहुंचने में सुबह से शाम हो जाती है.''
ठेकेदार का भुगतान रोका तो उन्होंने कम बंद किया: कुछ लोगों का कहना था कि ''इस पुल का निर्माण ना होने से वे व्यापार नहीं कर पा रहे हैं. क्यूँकि इतना लंबा फेर ज्यादा हो जाता है.'' अब तक नवीन निर्माणाधीन पुल का काम पूरा ना होने को लेकर जब उनसे पूछा गया तो बताया कि ''ठेकेदार कंपनी को भुगतान नहीं किया जा रहा है जिसकी वजह से उन्होंने काम बंद कर दिया है. अब जब काम शुरू होगा तब पुल पूरा होगा. तब कहीं जाकर आवागमन इस पुल पर शुरू हो पाएगा.''
बार-बार रिवाइस करने से बढ़ रही अवधि: जब इस सम्बंध में ETV Bharat ने कंस्ट्रक्शन कंपनी से बात की तो उन्होंने बताया कि ''2016 में काम शुरू होने के बाद से शासन द्वारा इस पुल के निर्माण में बदलाव कराये जा रहे हैं. शुरू में तैयार डीपीआर में पुल की तय चौड़ाई में वृद्धि कर दी गई जिसकी वजह से काम एक साल से ज्यादा डिले हो गया, वहीं जब 2019 में बाढ़ आयी तो एक बार फिर पुल में बदलाव कर इसकी ऊँचाई बढ़ाने को कहा गया जो अपने आप में एक चेलेंज था. क्यूँकि पुल का निर्माण लगभग पूरा हो चुका था, पिलर बन चुके थे, स्लैब भी रखे जा चुके थे जिसकी वजह से काम दोबारा डिले हो गया.''
फंड नहीं किया रिलीज: निर्माण कंपनी के डीपीएम नारायण दस गुप्ता ने बताया कि ''हमने इस पुल के 17 में से 15 स्पान उठा लिए हैं सिर्फ दो बाकी रह गये हैं लेकिन इनके लिये अब तक प्रशासन की और से स्वीकृति नहीं दी गई है और न ही फंड रिलीज किया जा रहा है. जिसकी वजह से एक बार फिर काम डिले हुआ इन कामों को करने के लिए भुगतान नहीं होने की वजह से आधारिक रूप से काम बंद कर दिया गया है. यह पुल आने वाले एक दो महीने में शुरू हो सकता था लेकिन अब इन परेशानियों की वजह से इसमें और वक्त लगेगा. इस संबंध में पीडब्ल्यूडी के सेतु निर्माण विभाग को भी सूचित कर दिया गया है. जैसे ही भुगतान हो जाएगा वैसे ही काम दोबारा शुरू होगा और करीब चार महीने में पुल का निर्माण पूर्ण होकर इसे शुरू किया जा सकेगा.''
देश में पहली बार बनने के बाद लिफ्ट किया गया कोई पुल: अटेर पुल का निर्माण कर रही कंपनी के अधिकारियों ने बताया कि ''शुरुआत से ही इस पुल की हाईट कम थी. काम डीपीआर के मुताबिक चल रहा था लेकिन जब 2019 में बाढ़ आयी तो वाटर लेवल देखने के बाद इस पुल की ऊँचाई बढ़ाने के लिए नयी डीपीआर बनाई गई, काम रुक गया लेकिन पुल की ऊँचाई बढ़ाना एक बढ़ा चेलेंज था. खासकर तब जब उस पर काफी काम हो चुका था, स्लैब रखी जा चुकी थी लेकिन फिर भी जरूरत को समझते हुए इस चेलेंज को एक्सेप्ट किया और बाहर से मशीने बुलाकर कंपनी के इंजीनियर्स की कार्यकुशलता से हमने इसका रास्ता खोज निकाला. आज तक देश में कहीं भी पुल की स्लैब्स को ज्यादा से ज्यादा एक फीट तक ही उठाया गया है. वह भी तकनीकी समस्याओं को दूर करने के लिए लेकिन हमने करीब डेढ़ मीटर से ज्यादा इसे लिफ्ट कर स्थापित करके दिखाया है जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि है.
रिवाइस स्वीकृत होते ही कर देंगे भुगतान: वहीं, सरकार द्वारा फंड रिलीज ना करने और विभाग द्वारा आगे के काम की स्वीकृति ना देने को लेकर जब ETV Bharat ने पीडब्ल्यूडी के सेतु निर्माण विभाग ग्वालियर के कार्यपालन यंत्री जी.वी. मिश्रा से बात की तो उनका कहना था कि ''इस पुल के रिवाइज पुनिरीक्षत को स्वीकृति के लिए शासन को भेजा है. जैसे ही ये स्वीकृत होगा तभी भुगतान हो सकेगा. चूंकि ये पुल दो बार रिवाइस हुआ है. 2021 और फिर 2022 में जब बाढ़ आई थी उसकी वजह से पुल का लेवल बढ़ाना पड़ा था जिसकी वजह से पुनरीक्षित बनाना पड़ा था. इस पुल के 15 स्पान उठाये जा चुके हैं लेकिन कांट्रैक्टर ने भुगतान के लिए काम बंद कर दिया है. बाकी दो स्पान लिफ्ट होना बाकी हैं, लेकिन शासन से जब उसका रिवाइस सेंग्शन होगा तभी उसका भुगतान हो पाएगा.'' वहीं जब उनसे पुल के शुरू होने में कियना समय लगेगा सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि ''जैसे ही कांट्रैक्टर का भुगतान होगा वह आगे काम पूरा करेगा तभी जाकर पुल शुरू हो पाएगा अब समय जितना रिवाइस स्वीकृति में लगे लेकिन उम्मीद है जल्द सेंग्शन हो जाएगा.''
पुल बनकर तैयार, रास्ते का अता-पता नहीं: इस पूरे मसले में एक और बात सामने आयी है कि पुल का निर्माण तो हुआ जा रहा लेकिन इसकी अप्रोच रोड और मुख्यमार्ग से इसे जोड़ने वाला रास्ता आईटीआई के पास से निकालना था. ठेकेदार कंपनी के कर्मचारी भी अचरज में है कि आखिर पुल तो पूरा होने को है लेकिन रोड का काम कौन सी एजेंसी कर रही है. ये एमपीआरडीसी होगी या पीडब्ल्यूडी. हालांकि ईई जीवी मिश्रा ने कहना है कि ''यह उनके कार्यक्षेत्र में नहीं है इसके बारे वे कुछ नहीं कह पायेंगे. लेकिन बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि पुल से उतरने के बाद शुरू होने वाला रास्ता झाड़ियों में ख़त्म हो जाता है.'' अब तक यहां रोड निर्माण का नामों निशान नहीं है तो क्या पुल बनने के बाद लोगों को उस तक पहुँचने के लिए फिर वर्षों का इंतजार करना होगा.
अटेर की आम जनता हो रही परेशान: ये कहना गलत नहीं होगा कि आम जनता के लिए बनाई जाने वाली बड़ी योजनाओं में कहीं ना कहीं जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदार के बीच भुगतान और स्वीकृति की खींचतान का खामियाजा अटेर का आम आदमी भुगत रहा है. जिसे 12 किलोमीटर की दूरी के लिए 70 किलोमीटर का सफर करना पड़ रहा है. जन प्रतिनिधि तो चुनावी भाषणों में इस पुल को सौगात बताने में पीछे नहीं है लेकिन जनता की परेशानी को दूर करने के लिए कोई कदम भी नहीं उठा रहे हैं. यही वजह है कि यह क्षेत्र भले ही चंबल प्रोग्रेस वे जैसे प्रोजेक्ट से जोड़ दिया गया लेकिन यहां की समस्याओं की अनदेखी से इलाका आज भी अतिपिछड़ेपन का शिकार है.