भिंड। जिले के मेहगांव में जनक के घर से जब सीता की विदाई हुई तो पूरा नगर राम की बारात में शामिल हुआ. ये अद्भुत नजारा राम बारात का था और मौका मेहगांव में बीते 100 वर्षों से हो रही रामलीला के आयोजन का. रामलीला मैदान से राम बारात का शुभारम्भ हुआ, पूरा नगर भ्रमण करते हुए भगवान राम की बारात राजा जनक के द्वार पहुंची, जहां विधिवत सीता मां के कन्यादान और विवाह की सभी रस्में संपन्न हुई और विदाई के साथ राम बारात आगे बढ़ चली. शायद ही ऐसा कोई मानुष होगा जिसने मेहगांव में रहते राम बारात में हिस्सा ना लिया हो. ये आयोजन मेहगांव की रामलीला मंचन के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर किया गया.
धर्मकार्य का हिस्सा बनने से नई पीढ़ियों को मिलते हैं संस्कार: मां सरस्वती सामाजिक एवं धार्मिक रामलीला मण्डल के सदस्य अशोक श्रीवास्तव कहते हैं कि ''त्रेता युग में जो परम्पराएँ थी उन्ही परंपराओं को आज हम विरासत के रूप में निभा हैं. वे खुद साल 27 वर्षों से रामलीला मंच से जुड़े हुए हैं''. वहीं समिति के अध्यक्ष दंदरौआ सरकार महंत महामण्डलेश्वर श्री श्री 1008 रामदास महाराज का कहना है कि ''राम के काज में सभी भेदभाव मिटाकर सार्थक प्रयास करना चाहिए. प्रत्येक मनुष्य को धार्मिक कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेना चाहिए, इससे धर्म का प्रचार प्रसार होता है और आने वाली पीढ़ी को संस्कार मिलते हैं. इसलिए जब रामलीला का मंचन हो तो उसके दर्शन लाभ लेना चाहिए''.
रामलीला का अनुकरण या देखने मात्र से मिलता है लाभ: रामलीला का मंचन जब भी होता है तो उसका मंचन देखने वालों की भीड़ भी बहुत होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माना जाता है कि भगवान की लीला का अनुकरण करने या मंचन देखने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है. यही वजह है कि रामलीला के दौरान ईश्वर और लीला के अवतारों का अनुकरण करने वाले कलाकारों को भी इसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए भक्ति भावना के साथ अभिनय करना पड़ता है.
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आराधना से कम नहीं होता कलाकार के लिए किरदार: रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकार मानते हैं कि लीला के दौरान किसी पात्र की भूमिका को निभाना भगवान की आराधना से कम नहीं होता है. राम लीला के समय श्रीराम ही नहीं बल्कि असुर राज, रावण का किरदार निभाने वाला कलाकार भी खुद को भाग्यशाली मानता है. यही वजह है कि इन आस्थावान किरदारों की वजह से दर्शकों में भी आस्था और निष्ठा का भाव आता है.
दीपावली के बाद मंचन की खास है वजह: दशहरा के दिन अखंड भारत के साथ ही कई अन्य देशों में भी रामलीला का मंचन विशेष रूप से किया जाता है, लेकिन भारत के ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली के बाद भी रामलीला मंचन करने की परंपरा है. क्या आप जानते हैं ऐसा किस वजह से होता है? दरअसल ज्यादातर जगह पर रामलीला के किरदार निभाने वाले कलाकारों में सामान्य नौकरी करने वाले लोग भी होते हैं जो दीपावली के त्योहार के समय अपने घर आते हैं. इसी दौरान वे रामलीला में अपनी अदाकारी का प्रदर्शन करते हैं, जिस वजह से रामलीला के मंचन के लिए यह सबसे अनुकूल समय माना जाता है.
(Bhind Ramleela 100 Years Completed) (Ramlila organized in Mehgaon of Bhind) (Spiritual and religious importance of Ramleela)