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अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है पूरा परिवार,18 साल की उम्र में ही दिखने लगे है 60 के - 18 साल की उम्र में दिखने लगे है बूढ़े

बैतूल के गांव पलासपानी में परिवार के सभी बच्चे एक अजीबों-गरीबों बीमारी की चपेट में है. इस बीमारी के कारण बच्चें 18 की उम्र में ही 60 साल की बूढ़े नजर आने लगे है.

अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है परिवार
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Published : May 15, 2019, 11:53 PM IST

बैतूल। जिले में एक परिवार अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है. परिवार के बच्चें 18 की उम्र में ही 60 साल की बूढ़े नजर आने लगे है. जिस कारण परिवार की बेटी के पति ने उसे छोड़ दिया है. विडम्बना यह है कि बीते आठ साल से बिस्तर पर पड़े इन लोगों को आज तक न तो कोई इलाज मिला है और न आर्थिक सहायता. जिससे यह परिवार भुखमरी का शिकार भी हो रहा है. हैरानी की बात यह है कि विशेषज्ञ डॉक्टर से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख तक यह नहीं बता पा रहे है कि परिवार को आखिर बीमारी क्या है.

अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है परिवार

यह मामला घोड़ाडोंगरी विकासखंड के गांव पलासपानी का है. जुगल विश्वकर्मा के परिवार में चार बेटियां और एक बेटा है. बेटियां 18 साल की उम्र तक तो ठीक रही लेकिन धीरे धीरे सभी इस अनजानी बीमारी की चपेट में आने लगी. तीन लडकियां अब पूरी तरह बिस्तर पर है तो एक बेटा भी इस बीमारी का शिकार होने लगे है. शुरुआत में आंखों में नशा, चक्कर, हाथ पैर में खिंचाव से यह बीमारी शुरू होती है और फिर पूरी तरह विकलांग बना देती है. डॉक्टर भी यह नहीं बता पा रहे है कि यह बीमारी आखिर है क्या. शुरुआत में इसे मस्कुलर डिस्ट्राफी माना जा रहा था लेकिन विशेषज्ञ इससे भी इंकार कर रहे है.

मामला सामने आने के बाद डॉक्टर एनआर पाड़ी का कहना है कि उन्होंने देश विदेश के विशषज्ञों से बात की है. लेकिन कोई स्पष्ट राय नहीं मिल सकी है. क्योंकि मस्कुलर डिस्ट्राफी भी पचास प्रकार की होती है. बहरहाल परिवार को आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिल सकी है, न तो इनके आधार कार्ड बने है और न ही विकलांग सर्टिफिकेट. यही वजह है कि कोई इलाज कोई आर्थिक मदद नही मिल सकी है. ईटीवी भारत के गांव पहुंचने की खबर के बाद अब स्वास्थ्य प्रशासन पीड़ितों को भोपाल ले जाने की तैयारी में जुटा है.

बैतूल। जिले में एक परिवार अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है. परिवार के बच्चें 18 की उम्र में ही 60 साल की बूढ़े नजर आने लगे है. जिस कारण परिवार की बेटी के पति ने उसे छोड़ दिया है. विडम्बना यह है कि बीते आठ साल से बिस्तर पर पड़े इन लोगों को आज तक न तो कोई इलाज मिला है और न आर्थिक सहायता. जिससे यह परिवार भुखमरी का शिकार भी हो रहा है. हैरानी की बात यह है कि विशेषज्ञ डॉक्टर से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख तक यह नहीं बता पा रहे है कि परिवार को आखिर बीमारी क्या है.

अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है परिवार

यह मामला घोड़ाडोंगरी विकासखंड के गांव पलासपानी का है. जुगल विश्वकर्मा के परिवार में चार बेटियां और एक बेटा है. बेटियां 18 साल की उम्र तक तो ठीक रही लेकिन धीरे धीरे सभी इस अनजानी बीमारी की चपेट में आने लगी. तीन लडकियां अब पूरी तरह बिस्तर पर है तो एक बेटा भी इस बीमारी का शिकार होने लगे है. शुरुआत में आंखों में नशा, चक्कर, हाथ पैर में खिंचाव से यह बीमारी शुरू होती है और फिर पूरी तरह विकलांग बना देती है. डॉक्टर भी यह नहीं बता पा रहे है कि यह बीमारी आखिर है क्या. शुरुआत में इसे मस्कुलर डिस्ट्राफी माना जा रहा था लेकिन विशेषज्ञ इससे भी इंकार कर रहे है.

मामला सामने आने के बाद डॉक्टर एनआर पाड़ी का कहना है कि उन्होंने देश विदेश के विशषज्ञों से बात की है. लेकिन कोई स्पष्ट राय नहीं मिल सकी है. क्योंकि मस्कुलर डिस्ट्राफी भी पचास प्रकार की होती है. बहरहाल परिवार को आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिल सकी है, न तो इनके आधार कार्ड बने है और न ही विकलांग सर्टिफिकेट. यही वजह है कि कोई इलाज कोई आर्थिक मदद नही मिल सकी है. ईटीवी भारत के गांव पहुंचने की खबर के बाद अब स्वास्थ्य प्रशासन पीड़ितों को भोपाल ले जाने की तैयारी में जुटा है.

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बैतूल। जिले में एक परिवार अजीबों-गरीबों बीमारी से पीड़ित है.  परिवार के बच्चें 18 की उम्र में ही 60 साल की बूढ़े नजर आने लगे है. जिस कारण परिवार की बेटी के पति ने उसे छोड़ दिया है. विडम्बना यह है कि बीते आठ साल से बिस्तर पर पड़े इन लोगों को आज तक न तो कोई इलाज मिला है और न आर्थिक सहायता. जिससे यह परिवार भुखमरी का शिकार भी हो रहा है. हैरानी की बात यह है कि विशेषज्ञ डॉक्टर से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख तक यह नहीं बता पा रहे है कि परिवार को आखिर बीमारी क्या है.



यह मामला घोड़ाडोंगरी विकासखंड के गांव पलासपानी का है. जुगल विश्वकर्मा के परिवार में चार बेटियां और एक बेटा है. बेटियां 18 साल की उम्र तक तो ठीक रही लेकिन धीरे धीरे सभी इस अनजानी बीमारी की चपेट में आने लगी. तीन लडकियां अब पूरी तरह बिस्तर पर है तो एक बेटा भी इस बीमारी का शिकार होने लगे है. शुरुआत में आंखों में नशा, चक्कर, हाथ पैर में खिंचाव से यह बीमारी शुरू होती है और फिर पूरी तरह विकलांग बना देती है. डॉक्टर भी यह नहीं बता पा रहे है कि यह बीमारी आखिर है क्या. शुरुआत में इसे मस्कुलर डिस्ट्राफी माना जा रहा था लेकिन विशेषज्ञ इससे भी इंकार कर रहे है.



मामला सामने आने के बाद डॉक्टर एनआर पाड़ी का कहना है कि उन्होंने देश विदेश के विशषज्ञों से बात की है. लेकिन कोई स्पष्ट राय नहीं मिल सकी है. क्योंकि मस्कुलर डिस्ट्राफी भी पचास प्रकार की होती है. बहरहाल परिवार को आज तक कोई सरकारी मदद नहीं मिल सकी है, न तो इनके आधार कार्ड बने है और न ही विकलांग सर्टिफिकेट. यही वजह है कि कोई इलाज कोई आर्थिक मदद नही मिल सकी है. ईटीवी भारत के गांव पहुंचने की खबर के बाद  अब स्वास्थ्य प्रशासन पीड़ितों को भोपाल ले जाने की तैयारी में जुटा है.



बाइट -- शिवकान्ति विश्वकर्मा ( परिजन )

बाइट -- मल्लों बाई ( परिजन )

बाइट -- डॉ एन आर पारडी

बाइट -- डी सी चौरसिया ( सीएमएचओ 


Conclusion:
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