बैतूल। दस साल की उम्र में अथाह अंधेरे में गुम होने के बावजूद वह हिम्मत नहीं हारा, परिस्थितियों से लड़ता रहा और अपने हौसलों को हमेशा नई उड़ान देने की तरकीब खोजता रहता. उसके इसी हौसले ने उसे अलग पहचान दी और आज वह खुद अंधेरे में रहकर भी सैकड़ों की दुनिया रोशन कर रहा है. इस शिक्षक दिवस पर ऐसे ही एक शिक्षक का जिक्र कर रहे हैं, जिनकी खुद की दुनिया अंधेरे में डूबी है, फिर भी वह चिराग बनकर लोगों की दुनिया रोशन कर रहे हैं.
गुरूजी ने खींची कामयाबी की नई लकीर, अंधेरे में रहकर भी दूसरों की दुनिया कर रहे रोशन - आंखों में रोशनी नहीं है
गुरू का पद भगवान से भी ऊंचा है क्योंकि गुरू ही भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाता है, हर इंसान के जीवन में गुरू का बड़ा महत्व होता है, गुरू के बताये मार्ग पर चलकर ही कामयाबी की मंजिल तक पहुंचा जा सकता है. इस शिक्षक दिवस पर ऐसे शिक्षकों का जिक्र कर रहे हैं, जिन्होंने अपने हौसलों से कामयाबी की नई लकीर खींची है.
गुरूजी ने खींची कामयाबी की नई लकीर
बैतूल। दस साल की उम्र में अथाह अंधेरे में गुम होने के बावजूद वह हिम्मत नहीं हारा, परिस्थितियों से लड़ता रहा और अपने हौसलों को हमेशा नई उड़ान देने की तरकीब खोजता रहता. उसके इसी हौसले ने उसे अलग पहचान दी और आज वह खुद अंधेरे में रहकर भी सैकड़ों की दुनिया रोशन कर रहा है. इस शिक्षक दिवस पर ऐसे ही एक शिक्षक का जिक्र कर रहे हैं, जिनकी खुद की दुनिया अंधेरे में डूबी है, फिर भी वह चिराग बनकर लोगों की दुनिया रोशन कर रहे हैं.
Intro:बैतूल ।। कहते है अगर मन मे कुछ कर गुजरने की चाह हो तो कोई भी मंजिल आसानी से पार की जा सकती है, लेकिन उसके लिए उसे आपको लक्ष्य बनाना होता है । कुछ ऐसा ही लक्ष्य बनाकर एक नेत्रहीन शिक्षक शिक्षा की अलख जला रहे है । नेत्रहीन होने के बाद भी यह शिक्षक बच्चो को किताबी ज्ञान के साथ साथ चलते फिरते वो ज्ञान दे देते है जो शायद ही किसी किताब में मौजूद हो । इनकी इसी खूबी के चलते इन दिनों यह नेत्रहीन शिक्षक स्कूली बच्चों में काफी चर्चित हो चुके है ।
Body:हम बात कर रहे है बैतूल के कोठी बाजार स्थित शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर विद्यालय की जहां नेत्रहीन शिक्षक रूपेश मानकर इतिहास के टीचर है । रूपेश की दोनो आंखों की रोशनी 10 साल की उम्र में किसी बीमारी के चलते चली गई । घरवालो ने आँखों का आपरेशन भी करवाया लेकिन उससे भी कोई फायदा रूपेश जी को नही हुआ । लेकिन उन्होंने हार नही मानी और जीवन मे कुछ कर गुजरने के लिए इंदौर के ब्लाइंड स्कूल से पढ़ाई की । 12वी तक पढ़ाई के बाद बैतूल से कॉलेज किया ।
रूपेश मानकर बताते है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए वे लेक्चर मेथड का उपयोग करते है जिसमे किताब का एक पैरा बच्चो से पढ़वा लेते है और उसके बाद उस पैरा पर वह बच्चों को लेक्चर देते है । उनका मानना है कि किताबी ज्ञान के साथ साथ प्रैक्टिकल होना बहुत जरूरी है जिसके चलते ही उनके द्वारा पढ़ाई गई बाते बच्चो को आसानी से समझ आ जाती है । रूपेश बतलाते है कि किताबे उनके दिमाग मे छप गई है आधी रात को भी कोई उनसे संबंधित विषय का कोई भी सवाल कर ले वे दे सकते है ।
नौकरी पेशे को लेकर उन्होंने बताया कि वे काल सेन्टर में काम करना चाहते थे लेकिन बात नही बनी तो वे शिक्षा के क्षेत्र में आ गए । इस क्षेत्र में आने का उनका उद्देश्य यह था कि लोगो को एक संदेश दिया जा सके कि एक ब्लाइंड व्यक्ति बच्चो को पढ़ा लिखा सकता है तो कोई भी व्यक्ति कोई काम क्यों नही कर सकता ।
रूपेश मानकर 9वी से लेकर 12वी तक के बच्चों को इतिहास पढ़ते है उनके द्वारा पढ़ाये जा रहे स्कूली छात्राओं का कहना है कि सर् बहुत अच्छा पढ़ते है उनके द्वारा बतलाई गई हर बाते उन्हें आसानी से समझ आ जाती है । छात्राओ के मुताबिक रूपेश सर् दूसरे टीचरो से अच्छा पढ़ाते है और वो भी बिना किसी किताब के जरिये ।
Conclusion:महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि मानेकर सर् उनकी स्कूल में 15 दिन पहले ही ट्रांसफर होकर आए है उन्हें बच्चो ने बताया कि वे बहुत बढ़िया पढ़ाते है । इतिहास की तारीख ब तारीख उन्हें घटनाये याद है । वे प्रतिभा के धनी है हमारा पूरा स्टाफ उन्हें हर संभव मदद भी करता है ।
बाइट -- अर्चना नागले ( छात्रा )
बाइट -- जयप्रिया वामनकर ( छात्रा )
बाइट -- रूपेश मानेकर ( नेत्रहीन शिक्षक )
बाइट -- जी बी पाटणकर ( प्रिंसिपल )
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Body:हम बात कर रहे है बैतूल के कोठी बाजार स्थित शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उच्चतर विद्यालय की जहां नेत्रहीन शिक्षक रूपेश मानकर इतिहास के टीचर है । रूपेश की दोनो आंखों की रोशनी 10 साल की उम्र में किसी बीमारी के चलते चली गई । घरवालो ने आँखों का आपरेशन भी करवाया लेकिन उससे भी कोई फायदा रूपेश जी को नही हुआ । लेकिन उन्होंने हार नही मानी और जीवन मे कुछ कर गुजरने के लिए इंदौर के ब्लाइंड स्कूल से पढ़ाई की । 12वी तक पढ़ाई के बाद बैतूल से कॉलेज किया ।
रूपेश मानकर बताते है कि बच्चों को पढ़ाने के लिए वे लेक्चर मेथड का उपयोग करते है जिसमे किताब का एक पैरा बच्चो से पढ़वा लेते है और उसके बाद उस पैरा पर वह बच्चों को लेक्चर देते है । उनका मानना है कि किताबी ज्ञान के साथ साथ प्रैक्टिकल होना बहुत जरूरी है जिसके चलते ही उनके द्वारा पढ़ाई गई बाते बच्चो को आसानी से समझ आ जाती है । रूपेश बतलाते है कि किताबे उनके दिमाग मे छप गई है आधी रात को भी कोई उनसे संबंधित विषय का कोई भी सवाल कर ले वे दे सकते है ।
नौकरी पेशे को लेकर उन्होंने बताया कि वे काल सेन्टर में काम करना चाहते थे लेकिन बात नही बनी तो वे शिक्षा के क्षेत्र में आ गए । इस क्षेत्र में आने का उनका उद्देश्य यह था कि लोगो को एक संदेश दिया जा सके कि एक ब्लाइंड व्यक्ति बच्चो को पढ़ा लिखा सकता है तो कोई भी व्यक्ति कोई काम क्यों नही कर सकता ।
रूपेश मानकर 9वी से लेकर 12वी तक के बच्चों को इतिहास पढ़ते है उनके द्वारा पढ़ाये जा रहे स्कूली छात्राओं का कहना है कि सर् बहुत अच्छा पढ़ते है उनके द्वारा बतलाई गई हर बाते उन्हें आसानी से समझ आ जाती है । छात्राओ के मुताबिक रूपेश सर् दूसरे टीचरो से अच्छा पढ़ाते है और वो भी बिना किसी किताब के जरिये ।
Conclusion:महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल के प्रिंसिपल ने बताया कि मानेकर सर् उनकी स्कूल में 15 दिन पहले ही ट्रांसफर होकर आए है उन्हें बच्चो ने बताया कि वे बहुत बढ़िया पढ़ाते है । इतिहास की तारीख ब तारीख उन्हें घटनाये याद है । वे प्रतिभा के धनी है हमारा पूरा स्टाफ उन्हें हर संभव मदद भी करता है ।
बाइट -- अर्चना नागले ( छात्रा )
बाइट -- जयप्रिया वामनकर ( छात्रा )
बाइट -- रूपेश मानेकर ( नेत्रहीन शिक्षक )
बाइट -- जी बी पाटणकर ( प्रिंसिपल )
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