बैतूल। जिला अस्पताल पहुंचे समाजसेवियों ने नए साल पर पैदा हुई बेटियों का स्वागत सोने के लॉकेट से किया. एक प्रसूता ने जुड़वां बेटियों को जन्म दिया, जिसमें एक को सोने का और एक को चांदी का लॉकेट दिया गया. दूसरी प्रसूता की बेटी को सोने का लॉकेट भेंट किया गया. बेटी के जन्म पर माताओं का शॉल- श्रीफल से सम्मान किया गया. जबकि 21 अन्य बालिकाओं को चांदी के लॉकेट बांटे गए, जो दिसंबर के आखरी दिन पैदा हुईं.
बेटी बचाओ अभियान को बढ़ावा : बेटी के जन्म पर परिवार सोचता है कि काश बेटा होता और इसी सोच को बदलने के लिए यह आयोजन किया गया. साल 2011 की जनगणना में 1,000 लड़कों पर 943 लड़कियां हैं. बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ योजना 2015 में जनवरी से शुरू हुई थी. जिसका उद्देश्य लड़कों ओर लड़कियों में लिंगानुपात के अंतर को कम करना है. समाजसेवी शैलेन्द्र बिहारिया का कहना है कि माताओं को नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया गया. देश में लगातार घटती कन्या शिशु दर को संतुलित करने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई.
महिला व पुरुष एक समान : किसी भी देश के लिए मानव संसाधन के रूप में स्त्री और पुरुष दोनों एक समान रूप से महत्वपूर्ण होते हैं. केवल बेटा पाने की इच्छा ने देश में ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी है कि इस तरह की योजना को चलाने की जरूरत आ पड़ी. समाजसेवी शैलेन्द्र बिहारिया का कहना है कि जिला अस्पताल में नए साल में एक प्रसूता को जुड़वा बेटियां पैदा हुईं और एक प्रसूता को एक बेटी पैदा हुई. दो बेटियों को सोने के लॉकेट और जो जुड़वां दूसरी बेटी पैदा हुई, उसे चांदी का लॉकेट भेंट किया गया है.
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माताओं का भी सम्मान : इसके अलावा बेटियों को जन्म देने वाली माताओं का भी शाल-श्रीफल से सम्मान किया गया. प्रसूता काजल चौरसिया ने खुशी जताते हुए कहा कि नए साल पर बेटी पैदा हुई है. मुझे बहुत खुशी है. बेटी को सोने का लॉकेट मिला है. आयोजक अंजिली हीरानी का कहना है कि बेटा और बेटी में फर्क मिटाने के लिए गोल्ड और सिल्वर के लॉकेट बेटियों को वितरित किए गए हैं. इससे उनकी माताओं को भी गर्व महसूस हो कि बेटी पैदा हुई है.