बैतूल। जिले के एक स्कूल की दो टीचर बीते नौ साल से लापता हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि दोनों टीचर बच्चों को अब भी कागजों पर पढ़ा रहीं हैं और उनकी तनख्वाह भी निकल रही है. ये अजीबोगरीब मामला धनिया जाम के सरकारी स्कूल का है, जहां दो टीचर कभी स्कूल तो नहीं आती लेकिन विभाग के कागजातों में बच्चों को बाकायदा पढ़ा रही हैं और उनका नाम विभाग के पोर्टल पर भी दर्ज है. इस बड़ी अंधेरगर्दी का खामियाजा यहां बच्चे उठा रहे हैं और एक शिक्षक पांच कक्षाओं को पढ़ा रहा है.
धनिया जाम के इस माध्यमिक स्कूल में तीन टीचरों की पोस्टिंग है. जिनमें से महिला टीचर लीना गणेशे पिछले नौ सालों से स्कूल ही नहीं आई हैं. लीना गणेशे 16 नवम्बर 2010 से बिना सूचना के अनुपस्थित हैं, लेकिन आदिवासी विभाग की लापरवाही ये है कि एजुकेशन पोर्टल में इनकी उपस्तिथि दर्ज की जा रही है. दूसरी टीचर रजनी कटारे की पोस्टिंग स्कूल में है लेकिन मैडम अपने रुतबे के चलते 7 नवम्बर 2014 से अपनी सुविधा वाले पाढर स्कूल में अटैच हैं. ये मैडम पांच साल से अटैचमेंट में हैं. यहां पदस्थ एक टीचर बड़करे की मौत हो चुकी है, जिससे उनकी जगह भी खाली हो गई है. इस सरकारी स्कूल में 70 बच्चे हैं, जिनको प्राथमिक शाला के एक शिक्षक ए के पानकर पढ़ा रहे हैं. वरिष्ठ अध्यापक होने के नाते उन्हें ये प्रभार दिया गया है कि वो छठवीं से आठवीं तक के सभी बच्चों को पढ़ाएं.
इन सब में रोचक तथ्य ये है कि जिन शिक्षिकाओं का नौ सालों से पता तक नहीं है उनका नाम पोर्टल से अब तक नहीं हटाया गया है. यदि पोर्टल से उनका नाम हट चुका होता तो दूसरे शिक्षक की वहां पोस्टिंग हो सकती थी. कागजों पर इस स्कूल में सभी पद भरे होने के चलते न तो यहां दूसरे शिक्षकों की पोस्टिंग हो रही है और न अथिति शिक्षकों की भर्ती हो रही है. आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहे आदिवासी विकास विभाग की लापरवाही से आदिवासी बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है.
लापता स्कूल टीचर की तनख्वाह रोकी हुई है लेकिन दूसरी टीचर जो यहां से 50 किलोमीटर दूर स्कूल में अटैच कर दी गयी है, उसकी पेमेंट इस स्कूल से ही निकल रही है. अब इसे अजब एमपी का गजब स्कूल न कहे तो और क्या कहे.