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अजब एमपी का गजब स्कूल, नौ साल से लापता टीचर्स की पोर्टल में उपस्थिति बरकरार

अजीबोगरीब मामला धनिया जाम के सरकारी स्कूल का है, जहां दो टीचर कभी स्कूल तो नहीं आती लेकिन विभाग के कागजातों में बच्चों को बाकायदा पढ़ा रही हैं और उनका नाम विभाग के पोर्टल पर भी दर्ज है.

नौ साल से लापता टीचर्स की पोर्टल में उपस्थिति बरकरार
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Published : Jul 27, 2019, 8:50 PM IST

बैतूल। जिले के एक स्कूल की दो टीचर बीते नौ साल से लापता हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि दोनों टीचर बच्चों को अब भी कागजों पर पढ़ा रहीं हैं और उनकी तनख्वाह भी निकल रही है. ये अजीबोगरीब मामला धनिया जाम के सरकारी स्कूल का है, जहां दो टीचर कभी स्कूल तो नहीं आती लेकिन विभाग के कागजातों में बच्चों को बाकायदा पढ़ा रही हैं और उनका नाम विभाग के पोर्टल पर भी दर्ज है. इस बड़ी अंधेरगर्दी का खामियाजा यहां बच्चे उठा रहे हैं और एक शिक्षक पांच कक्षाओं को पढ़ा रहा है.

नौ साल से लापता टीचर्स की पोर्टल में उपस्थिति बरकरार

धनिया जाम के इस माध्यमिक स्कूल में तीन टीचरों की पोस्टिंग है. जिनमें से महिला टीचर लीना गणेशे पिछले नौ सालों से स्कूल ही नहीं आई हैं. लीना गणेशे 16 नवम्बर 2010 से बिना सूचना के अनुपस्थित हैं, लेकिन आदिवासी विभाग की लापरवाही ये है कि एजुकेशन पोर्टल में इनकी उपस्तिथि दर्ज की जा रही है. दूसरी टीचर रजनी कटारे की पोस्टिंग स्कूल में है लेकिन मैडम अपने रुतबे के चलते 7 नवम्बर 2014 से अपनी सुविधा वाले पाढर स्कूल में अटैच हैं. ये मैडम पांच साल से अटैचमेंट में हैं. यहां पदस्थ एक टीचर बड़करे की मौत हो चुकी है, जिससे उनकी जगह भी खाली हो गई है. इस सरकारी स्कूल में 70 बच्चे हैं, जिनको प्राथमिक शाला के एक शिक्षक ए के पानकर पढ़ा रहे हैं. वरिष्ठ अध्यापक होने के नाते उन्हें ये प्रभार दिया गया है कि वो छठवीं से आठवीं तक के सभी बच्चों को पढ़ाएं.

इन सब में रोचक तथ्य ये है कि जिन शिक्षिकाओं का नौ सालों से पता तक नहीं है उनका नाम पोर्टल से अब तक नहीं हटाया गया है. यदि पोर्टल से उनका नाम हट चुका होता तो दूसरे शिक्षक की वहां पोस्टिंग हो सकती थी. कागजों पर इस स्कूल में सभी पद भरे होने के चलते न तो यहां दूसरे शिक्षकों की पोस्टिंग हो रही है और न अथिति शिक्षकों की भर्ती हो रही है. आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहे आदिवासी विकास विभाग की लापरवाही से आदिवासी बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है.

लापता स्कूल टीचर की तनख्वाह रोकी हुई है लेकिन दूसरी टीचर जो यहां से 50 किलोमीटर दूर स्कूल में अटैच कर दी गयी है, उसकी पेमेंट इस स्कूल से ही निकल रही है. अब इसे अजब एमपी का गजब स्कूल न कहे तो और क्या कहे.

बैतूल। जिले के एक स्कूल की दो टीचर बीते नौ साल से लापता हैं. लेकिन हैरानी की बात ये है कि दोनों टीचर बच्चों को अब भी कागजों पर पढ़ा रहीं हैं और उनकी तनख्वाह भी निकल रही है. ये अजीबोगरीब मामला धनिया जाम के सरकारी स्कूल का है, जहां दो टीचर कभी स्कूल तो नहीं आती लेकिन विभाग के कागजातों में बच्चों को बाकायदा पढ़ा रही हैं और उनका नाम विभाग के पोर्टल पर भी दर्ज है. इस बड़ी अंधेरगर्दी का खामियाजा यहां बच्चे उठा रहे हैं और एक शिक्षक पांच कक्षाओं को पढ़ा रहा है.

नौ साल से लापता टीचर्स की पोर्टल में उपस्थिति बरकरार

धनिया जाम के इस माध्यमिक स्कूल में तीन टीचरों की पोस्टिंग है. जिनमें से महिला टीचर लीना गणेशे पिछले नौ सालों से स्कूल ही नहीं आई हैं. लीना गणेशे 16 नवम्बर 2010 से बिना सूचना के अनुपस्थित हैं, लेकिन आदिवासी विभाग की लापरवाही ये है कि एजुकेशन पोर्टल में इनकी उपस्तिथि दर्ज की जा रही है. दूसरी टीचर रजनी कटारे की पोस्टिंग स्कूल में है लेकिन मैडम अपने रुतबे के चलते 7 नवम्बर 2014 से अपनी सुविधा वाले पाढर स्कूल में अटैच हैं. ये मैडम पांच साल से अटैचमेंट में हैं. यहां पदस्थ एक टीचर बड़करे की मौत हो चुकी है, जिससे उनकी जगह भी खाली हो गई है. इस सरकारी स्कूल में 70 बच्चे हैं, जिनको प्राथमिक शाला के एक शिक्षक ए के पानकर पढ़ा रहे हैं. वरिष्ठ अध्यापक होने के नाते उन्हें ये प्रभार दिया गया है कि वो छठवीं से आठवीं तक के सभी बच्चों को पढ़ाएं.

इन सब में रोचक तथ्य ये है कि जिन शिक्षिकाओं का नौ सालों से पता तक नहीं है उनका नाम पोर्टल से अब तक नहीं हटाया गया है. यदि पोर्टल से उनका नाम हट चुका होता तो दूसरे शिक्षक की वहां पोस्टिंग हो सकती थी. कागजों पर इस स्कूल में सभी पद भरे होने के चलते न तो यहां दूसरे शिक्षकों की पोस्टिंग हो रही है और न अथिति शिक्षकों की भर्ती हो रही है. आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहे आदिवासी विकास विभाग की लापरवाही से आदिवासी बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है.

लापता स्कूल टीचर की तनख्वाह रोकी हुई है लेकिन दूसरी टीचर जो यहां से 50 किलोमीटर दूर स्कूल में अटैच कर दी गयी है, उसकी पेमेंट इस स्कूल से ही निकल रही है. अब इसे अजब एमपी का गजब स्कूल न कहे तो और क्या कहे.

Intro:बैतूल ।। मध्य प्रदेश के बैतूल में एक स्कूल की दो टीचर बीते नौ साल से लापता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि दोनो टीचर बच्चों को अब भी कागजो पर पढ़ा रही है और उनकी तनख्वाह भी निकल रही है। यह अजीबोगरीब मामला धनिया जाम के सरकारी स्कूल का है । जहां दो टीचर कभी स्कूल तो नही आती लेकिन विभाग के कागजातों में बच्चों को बाकायदा पढ़ा रही है और उनका नाम विभाग के पोर्टल पर भी दर्ज है । ईस बड़ी अंधेरगर्दी का खामियाजा यहां बच्चे उठा रहे है और एक शिक्षक पांच कक्षाओं को पढ़ा रहा है। Body:ये है चिचोली विकासखंड के धनियजाम का मिडिल स्कूल । यहां विभाग के पोर्टल पर स्कूल में टीचरों की उपस्थिति तो दिख रही है लेकिन हकीकत में इस स्कूल में एक भी टीचर नहीं है । यही वजह है कि यह मिडिल स्कूल प्राइमरी स्कूल के एक अदद टीचर के भरोसे चल रहा है ।

दरअसल धनियांजाम के इस माध्यमिक स्कूल में 3 टीचरों की पोस्टिंग है जिनमे से महिला टीचर लीना गणेशे जो कि पिछले 9 सालों से स्कूल ही नही आई है ,वे 16 नवम्बर 2010 से बिना सूचना के अनुपस्थित है । लेकिन आदिवासी विभाग की लापरवाही ही कहे इनका नाम एजुकेशन पोर्टल में इनकी उपस्तिथि दर्ज करा रहा है । दूसरी टीचर रजनी कटारे की पोस्टिंग स्कूल में है लेकिन मेडम अपने रुतबे के चलते 7 नवम्बर 2014 से अपनी सुविधा वाले पाढर स्कूल में अटैच है । ये मेडम 5 साल से अटैचमेंट में है । यहां पदस्थ एक टीचर बड़करे की मौत हो चुकी है। जिससे उनकी जगह भी खाली हो गई है की ।

इस सरकारी मिडिल स्कूल में 70 बच्चे हैं जिनको प्राथमिक शाला के एक शिक्षक ए के पानकर पढ़ा रहे हैं । वरिष्ठ अध्यापक होने के नाते उन्हें यह प्रभार दिया गया है कि वह छठवीं से आठवीं तक के सभी बच्चों को पढ़ाएं ।

इन सब में रोचक तथ्य यह है कि जिस शिक्षिका का 9 सालों से पता तक नहीं है उनका नाम पोर्टल से अब तक नहीं हटाया गया है । यदि पोर्टल से उनका नाम हट चुका होता तो दूसरे शिक्षक की वहां पोस्टिंग हो सकती थी । कागजो पर इस स्कूल में सभी पद भरे होने के चलते न तो यहां दूसरे शिक्षकों की पोस्टिंग हो रही है और न ग्रामीण अथिति शिक्षक रख पाए रहे है। आदिवासियों के उत्थान के लिए काम कर रहा आदिवासी विकास विभाग की लापरवाही से आदिवासी बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है । Conclusion:हालांकि लापता स्कूल टीचर की तनख्वाह रोकी हुई है पर दूसरी टीचर जो यहां से 50 किलोमीटर दूर स्कूल में अटैच कर दी गयी है उसकी पेमेंट इस स्कूल से ही निकल रही है । अब इसे अजब एमपी का गजब स्कूल न कहे तो और क्या कहे।

बाईट- ऐ के पानकर (प्रभारी टीचर)

बाईट- संजय उइके ( छात्र, आठवी कक्षा)

बाईट- बंटी ठाकुर (स्थानीय ग्रामीण धनियाजाम)

बाईट-शिल्पा जैन (सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग)
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