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विश्व में पहचान बना चुका बांचा गांव में विदेशी छात्रों ने सीखा जल प्रबंधन

प्रदेश के बैतूल का बांचा गांव अपने सौर्य उर्जा के इस्तेमाल के लिए पूरे देश में सुर्खियां बटोर रहा है. बांचा गांव में जल महोत्सव मनाया गया.

14 students from 7 countries reached Bancha's Jal Mahotsav
बांचा के जल महोत्सव में पहुंचे 7 देश के 14 छात्र
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Published : Dec 13, 2019, 9:17 PM IST

बैतूल। एक तरफ दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से बचने के उपाय तलाश रही है. वहीं मप्र के बैतूल जिले के आदिवासी गांव के लोगों ने अपनी सूझबूझ से ऐसी तरकीब निकाली है जो पर्यावरण संरक्षण के मामले में एक नजीर बनते जा रही है. इसी तरकीब को देखने शुक्रवार के दिन सात देशों के आईआईटी के छात्र बांचा गांव पहुंचे. जहां उन्होंने ग्रामीणों के किए जा रहे इस कार्यो से खासे प्रभावित होकर उनकी समझ की जमकर सराहना की. एशिया का पहला धुंआ रहित गांव बन चुके बांचा गांव की चमक देखने अब देश-विदेश से भी लोग आने लगे हैं.

बांचा के जल महोत्सव में पहुंचे 7 देश के 14 छात्र


14 विदेशी महमान हुए शामिल
दरअसल आदर्श ग्राम बांचा में हर साल की तरह इस साल भी जल महोत्सव मनाया गया. इस महोत्सव में इस साल सात देशों के 14 विदेशी मेहमान भी शामिल हुए. इसमें जापान, मलेशिया, कजाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हबई और भारत की आईआईटी मुम्बई के छात्र शामिल हुए.

ऊर्जा चलित चूल्हों पर पकता है दोनों वक्त का खाना
बता दें कि बांचा गांव के लोगों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई काम किए गए हैं. ये एक ऐसा गांव है जहां हर घर में सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर दोनों टाइम का खाना पकता है. यह भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से आईआईटी मुम्बई ने खास तरह का चूल्हा बनाया है.


पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बांचा एक बेहतरीन उदाहरण है
वहीं आईआईटी मुम्बई से आए छात्रों ने बताया कि उनके इस प्रोग्राम की थीम सन, सोसाइटी और सस्टेनबिलिटी पर आधारित है. सन का मतलब सौर ऊर्जा का उपयोग करना जैसा इस गांव में हो रहा है. यहां हर घर मे सोलर पैनल लगे हुए है ये बहुत अच्छा उदाहरण है. सोसाइटी यानी समाज की भूमिका. बांचा गांव में जितना भी काम हुआ है वो लोगों ने मिल जुलकर किया है. सस्टेनबिलिटी यानी ऐसे स्त्रोत जो स्थिर रहे और भविष्य के लिए काम आए. जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दुनिया के सामने एक बेहतरीन उदाहरण है.


सोलर चूल्हा पर हो रहा बढ़िया काम
वहीं मलेशिया से आई लूर ली ने बताया कि मैंने यहां सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना देखा. किस प्रकार हम नई और पुरानी तकनीक को अच्छे से उपयोग कर सकते है. दक्षिण कोरिया की उ किम ने बताया कि बांचा गांव में सोलर लैंप, सोलर चूल्हा और जल संरक्षण पर बहुत बढ़िया काम हो रहा है.

बैतूल। एक तरफ दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से बचने के उपाय तलाश रही है. वहीं मप्र के बैतूल जिले के आदिवासी गांव के लोगों ने अपनी सूझबूझ से ऐसी तरकीब निकाली है जो पर्यावरण संरक्षण के मामले में एक नजीर बनते जा रही है. इसी तरकीब को देखने शुक्रवार के दिन सात देशों के आईआईटी के छात्र बांचा गांव पहुंचे. जहां उन्होंने ग्रामीणों के किए जा रहे इस कार्यो से खासे प्रभावित होकर उनकी समझ की जमकर सराहना की. एशिया का पहला धुंआ रहित गांव बन चुके बांचा गांव की चमक देखने अब देश-विदेश से भी लोग आने लगे हैं.

बांचा के जल महोत्सव में पहुंचे 7 देश के 14 छात्र


14 विदेशी महमान हुए शामिल
दरअसल आदर्श ग्राम बांचा में हर साल की तरह इस साल भी जल महोत्सव मनाया गया. इस महोत्सव में इस साल सात देशों के 14 विदेशी मेहमान भी शामिल हुए. इसमें जापान, मलेशिया, कजाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हबई और भारत की आईआईटी मुम्बई के छात्र शामिल हुए.

ऊर्जा चलित चूल्हों पर पकता है दोनों वक्त का खाना
बता दें कि बांचा गांव के लोगों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई काम किए गए हैं. ये एक ऐसा गांव है जहां हर घर में सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर दोनों टाइम का खाना पकता है. यह भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से आईआईटी मुम्बई ने खास तरह का चूल्हा बनाया है.


पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बांचा एक बेहतरीन उदाहरण है
वहीं आईआईटी मुम्बई से आए छात्रों ने बताया कि उनके इस प्रोग्राम की थीम सन, सोसाइटी और सस्टेनबिलिटी पर आधारित है. सन का मतलब सौर ऊर्जा का उपयोग करना जैसा इस गांव में हो रहा है. यहां हर घर मे सोलर पैनल लगे हुए है ये बहुत अच्छा उदाहरण है. सोसाइटी यानी समाज की भूमिका. बांचा गांव में जितना भी काम हुआ है वो लोगों ने मिल जुलकर किया है. सस्टेनबिलिटी यानी ऐसे स्त्रोत जो स्थिर रहे और भविष्य के लिए काम आए. जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दुनिया के सामने एक बेहतरीन उदाहरण है.


सोलर चूल्हा पर हो रहा बढ़िया काम
वहीं मलेशिया से आई लूर ली ने बताया कि मैंने यहां सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना देखा. किस प्रकार हम नई और पुरानी तकनीक को अच्छे से उपयोग कर सकते है. दक्षिण कोरिया की उ किम ने बताया कि बांचा गांव में सोलर लैंप, सोलर चूल्हा और जल संरक्षण पर बहुत बढ़िया काम हो रहा है.

Intro:बैतूल ।। एक तरफ दुनिया गोलबल वार्मिंग के खतरों से बचने के उपाय तलाश रही है वही मप्र के बैतूल जिले के आदिवासी गांव के लोगो ने अपनी सूझबूझ से ऐसी तरकीब निकाली है जो पर्यावरण संरक्षण के मामले में एक नजीर बनते जा रही है। इसी तरकीब को देखने शुक्रवार के दिन सात देशों के आईआईटी के छात्र बाँचा गांव पहुंचे जहां उन्होंने ग्रामीणों द्वारा किये जा रहे कार्यो से खासे प्रभावित होकर उनकी समझ की जमकर सराहना की। एशिया का पहला धुंआ रहित गांव बन चुके बाचा गांव की चमक देखने अब देश-विदेश से लोग आने लगे है।


Body:दरअसल आदर्श ग्राम बाचा में हर साल की तरह इस साल भी जल महोत्सव मनाया गया इस महोत्सव में इस साल सात देशों के 14 विदेशी मेहमान भी शामिल हुए। इसमें जापान, मलेशिया, कजाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर,हबई और भारत की आईआईटी मुम्बई के छात्र शामिल हुए।इस गांव में पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई काम किए गए है। बैतूल जिले का बाचा गांव ऐसा गांव है जहां हर घर मे सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर दोनों टाइम का खाना पकता है। यह भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से आईआईटी मुम्बई ने खास तरह का चूल्हा बनाया है। इस चूल्हे को भी इन छात्रों ने देखा।

आईआईटी मुम्बई के छात्र शुभम ने बताया की उनके इस प्रोग्राम की थीम सन, सोसाइटी और सस्टेनबिलिटी पर आधारित है। सन ( सूरज ) का मतलब जिसमे सौर ऊर्जा का उपयोग करना जैसा इस गांव में हो रहा है यहां हर घर मे सोलर पैनल लगे हुए है ये बहुत अच्छा उदाहरण है। सोसाइटी यानी समाज की भूमिका बाचा गांव में जितना भी काम हुआ है वह लोगो ने मिल जुलकर किया है और सभी गांव वाले मिल जुलकर रहते है। सस्टेनबिलिटी यानी ऐसे स्त्रोत जो स्थिर रहे और भविष्य के लिए काम आए उस पर किस प्रकार काम किया जा सकता है। इन तीनो थीम पर यहां बहुत बढ़िया काम हो रहा है। जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दुनिया के सामने एक बेहतरीन उदाहरण है।

मलेशिया से आईआईटी छात्रा लूर ली ने बताया कि मैंने यहां सौर ऊर्जा का स्तेमाल करना देखा किस प्रकार हम नई और पुरानी तकनीक का किस तरह अच्छे से उपयोग कर सकते है। यहां जिस तरह का काम हो रहा है उससे समय और पैसों की बचत हो रही है। में अपने देश जाकर अपने अनुभव सभी से साझा करूंगी।

दक्षिण कोरिया की उ किम ने बतलाया कि बाचा गांव में सोलर लैंप, सोलर चूल्हा और जल संरक्षण पर बहुत बढ़िया काम हो रहा है। खास बात यह है कि इस गांव के ग्रामीण मिलकर गांव के विकास में सहभागी होते है सबसे बढ़िया बात मुझे यहां ये देखनो को मिली कि सभी कामो में महिलाएं बढ़चढ़कर हिस्सा लेती है।






Conclusion:आपको बता दे कि 74 घरो वाला आदिवासी बाहुल्य बाचा गांव बैतूल-भोपाल एनएच 69 पर है। गांव उस समय देश-दुनिया की नज़रों में आया जब यहां पर शत प्रतिशत गांव में सौर ऊर्जा लगाया गया।

बाइट -- शुभम ( छात्र आईआईटी मुम्बई )
बाइट -- लूर ली ( छात्रा, मलेशिया )
बाइट -- उ किम ( छात्रा, दक्षिण कोरिया )
बाइट -- मोहन नागर ( सचिव, भारत भारती शिक्षा समिति )
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