बैतूल। एक तरफ दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से बचने के उपाय तलाश रही है. वहीं मप्र के बैतूल जिले के आदिवासी गांव के लोगों ने अपनी सूझबूझ से ऐसी तरकीब निकाली है जो पर्यावरण संरक्षण के मामले में एक नजीर बनते जा रही है. इसी तरकीब को देखने शुक्रवार के दिन सात देशों के आईआईटी के छात्र बांचा गांव पहुंचे. जहां उन्होंने ग्रामीणों के किए जा रहे इस कार्यो से खासे प्रभावित होकर उनकी समझ की जमकर सराहना की. एशिया का पहला धुंआ रहित गांव बन चुके बांचा गांव की चमक देखने अब देश-विदेश से भी लोग आने लगे हैं.
14 विदेशी महमान हुए शामिल
दरअसल आदर्श ग्राम बांचा में हर साल की तरह इस साल भी जल महोत्सव मनाया गया. इस महोत्सव में इस साल सात देशों के 14 विदेशी मेहमान भी शामिल हुए. इसमें जापान, मलेशिया, कजाकिस्तान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, हबई और भारत की आईआईटी मुम्बई के छात्र शामिल हुए.
ऊर्जा चलित चूल्हों पर पकता है दोनों वक्त का खाना
बता दें कि बांचा गांव के लोगों ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई काम किए गए हैं. ये एक ऐसा गांव है जहां हर घर में सौर ऊर्जा चलित चूल्हों पर दोनों टाइम का खाना पकता है. यह भारत भारती शिक्षा समिति के सौजन्य से आईआईटी मुम्बई ने खास तरह का चूल्हा बनाया है.
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बांचा एक बेहतरीन उदाहरण है
वहीं आईआईटी मुम्बई से आए छात्रों ने बताया कि उनके इस प्रोग्राम की थीम सन, सोसाइटी और सस्टेनबिलिटी पर आधारित है. सन का मतलब सौर ऊर्जा का उपयोग करना जैसा इस गांव में हो रहा है. यहां हर घर मे सोलर पैनल लगे हुए है ये बहुत अच्छा उदाहरण है. सोसाइटी यानी समाज की भूमिका. बांचा गांव में जितना भी काम हुआ है वो लोगों ने मिल जुलकर किया है. सस्टेनबिलिटी यानी ऐसे स्त्रोत जो स्थिर रहे और भविष्य के लिए काम आए. जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दुनिया के सामने एक बेहतरीन उदाहरण है.
सोलर चूल्हा पर हो रहा बढ़िया काम
वहीं मलेशिया से आई लूर ली ने बताया कि मैंने यहां सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना देखा. किस प्रकार हम नई और पुरानी तकनीक को अच्छे से उपयोग कर सकते है. दक्षिण कोरिया की उ किम ने बताया कि बांचा गांव में सोलर लैंप, सोलर चूल्हा और जल संरक्षण पर बहुत बढ़िया काम हो रहा है.