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Betul Bhagoriya Mela: यहां आज भी होती है रावण के बेटे मेघनाथ की पूजा, ऐसे होती है हर मन्नत पूरी

बैतूल में आज भी मेघनाथ की पूजा की जाती है. यहां लगने वाले भगोरिया मेले में आज भी वर्षों पुरानी परंपरा निभाई जा रही है. जानें क्या है भगोरिया मेले की खासियत.

betul bhagoriya mela
बैतूल भगोरिया मेला
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Published : Mar 10, 2023, 7:38 PM IST

बैतूल भगोरिया मेला

बैतूल। आज भी देश के कोने-कोने में वर्षों से चली आ रही परंपराओं को निभाने का चलन चला आ रहा है. एक ऐसी ही परंपरा बैतूल जिला मुख्यलय पर आज भी होली के दूसरे दिन लगने वाले भगोरिया मेले में देखने को मिल जाएगी. जहां पर 50 फिट से ऊंचे लकड़ी के खंबो पर चढ़कर जेरी घुमाने की परंपरा निभाई जा रही है. मान्यता है कि यहां पर आयोजित मेले में आकर मन्नत मांग कर मेघनाथ की पूजा की जाय तो जल्द उनकी मन्नत पूरी हो जाती है. जिन लोगो की मन्नत पूरी हो जाती है वो अगले वर्ष इसी समय यहां आकर मेघनाथ के समक्ष अपनी मन्नत अनुसार पूजा पाठ या भेट चढ़ावा देते हैं.

मेघनाथ की पूजा: बैतूल जिला मुख्यालय के आस-पास रहने वाले आदिवासी समाज के लोग रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा करते हैं. वर्षो से चली आ रही इस परंपरा को निभाने के लिए आज भी इस समुदाय के लोग धुरेड़ी पर्व के दूसरे दिन जिला मुख्यालय के टिकारी में आयोजित होने वाले इस भगोरिया मेला स्थल पर विराजमान खंबेनुमा मेघनाथ के शीर्ष पर बंधी लकड़ी नुमा जेरी को घुमाने की परंपरा को निभाते हुए अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हैं. इनका मानना है की मेले में आकर को मेघनाथ के समक्ष संतान पाने या अच्छे वर, वधु के साथ साथ बीमारियों से निजात पाने की मन्नत मागते है वो यहां जरूर पूरी होती है.

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ऐसे पूरी होती है मन्नत: ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में पूरा दक्षिण भारत दंड कारण क्षेत्र था जहां पर रावन के पुत्र मेघनाथ का साम्राज्य चलता था. इस क्षेत्र के रहने वाले आदिवासी मेघनाथ को अपना कुलदेवता मानकर प्रति वर्ष होलिका दहन के बाद बड़ी आस्था के साथ उसकी पूजा करते हैं. लोगो का मानना है कि मेघनाथ की पूजा करने वाले जो भी मन्नत लेकर पूजा करते है उनकी मन्नत अगले वर्ष की पूजा के पहले पूरी हो जाती है. बच्चों से लेकर बीमारी और अच्छे वर वधु की मन्नत मागने वाले से लेकर बीमारियों से निजात पाने वाले हर साल इस भगोरिया मेले में आकर मन्नत मागते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने के बाद विधि पूर्वक मांगी गई मन्नत के अनुसार पूजापाठ भी किया करते हैं.

बैतूल भगोरिया मेला

बैतूल। आज भी देश के कोने-कोने में वर्षों से चली आ रही परंपराओं को निभाने का चलन चला आ रहा है. एक ऐसी ही परंपरा बैतूल जिला मुख्यलय पर आज भी होली के दूसरे दिन लगने वाले भगोरिया मेले में देखने को मिल जाएगी. जहां पर 50 फिट से ऊंचे लकड़ी के खंबो पर चढ़कर जेरी घुमाने की परंपरा निभाई जा रही है. मान्यता है कि यहां पर आयोजित मेले में आकर मन्नत मांग कर मेघनाथ की पूजा की जाय तो जल्द उनकी मन्नत पूरी हो जाती है. जिन लोगो की मन्नत पूरी हो जाती है वो अगले वर्ष इसी समय यहां आकर मेघनाथ के समक्ष अपनी मन्नत अनुसार पूजा पाठ या भेट चढ़ावा देते हैं.

मेघनाथ की पूजा: बैतूल जिला मुख्यालय के आस-पास रहने वाले आदिवासी समाज के लोग रावण के पुत्र मेघनाथ की पूजा करते हैं. वर्षो से चली आ रही इस परंपरा को निभाने के लिए आज भी इस समुदाय के लोग धुरेड़ी पर्व के दूसरे दिन जिला मुख्यालय के टिकारी में आयोजित होने वाले इस भगोरिया मेला स्थल पर विराजमान खंबेनुमा मेघनाथ के शीर्ष पर बंधी लकड़ी नुमा जेरी को घुमाने की परंपरा को निभाते हुए अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते हैं. इनका मानना है की मेले में आकर को मेघनाथ के समक्ष संतान पाने या अच्छे वर, वधु के साथ साथ बीमारियों से निजात पाने की मन्नत मागते है वो यहां जरूर पूरी होती है.

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ऐसे पूरी होती है मन्नत: ऐसा माना जाता है कि पुराने समय में पूरा दक्षिण भारत दंड कारण क्षेत्र था जहां पर रावन के पुत्र मेघनाथ का साम्राज्य चलता था. इस क्षेत्र के रहने वाले आदिवासी मेघनाथ को अपना कुलदेवता मानकर प्रति वर्ष होलिका दहन के बाद बड़ी आस्था के साथ उसकी पूजा करते हैं. लोगो का मानना है कि मेघनाथ की पूजा करने वाले जो भी मन्नत लेकर पूजा करते है उनकी मन्नत अगले वर्ष की पूजा के पहले पूरी हो जाती है. बच्चों से लेकर बीमारी और अच्छे वर वधु की मन्नत मागने वाले से लेकर बीमारियों से निजात पाने वाले हर साल इस भगोरिया मेले में आकर मन्नत मागते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने के बाद विधि पूर्वक मांगी गई मन्नत के अनुसार पूजापाठ भी किया करते हैं.

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