बड़वानी। नर्मदा नदी शहर से मात्र 5 किलोमीटर दूर से बहती है, लेकिन आसपास की पंचायतों में हैंडपंप और पाइप लाइन सूखे पड़े हैं. लोग सालों से पत्थरों से बूंद-बूंद गिरने वाले पानी को सहेज कर अपनी प्यास बुझाते हैं, इतना ही नहीं, लोग रोजमर्रा के काम छोड़ सबसे पहले पानी के लिए जद्दोजहद करते हैं. महिला, पुरुष व बच्चे तपती धूप में पैदल चलकर, बैलगाड़ी तथा मोटर साइकिल से पानी भरकर लाते हैं.
बड़वानी की पंचायतें पानी को मोहताज
शासन द्वारा ग्राम पंचायतों को पानी उपलब्ध कराने के लिए कई प्रकार की योजनाओं के अंतर्गत राशि जारी होती है, लेकिन जिम्मेदार प्रतिनिधियों द्वारा लोगों की समस्याओं से इतर मनमर्जी से राशि का आहरण कर खर्च कर दिया जाता है. जिसके चलते बड़वानी जिले की कई पंचायतें पीने के पानी को मोहताज हैं. शहर के समीप कालाखेत, अंबापानी तथा अन्य पंचायतें सालों से पानी के लिए तरस रही हैं.
चुनाव संपन्न होते ही नेता भूल गए वादें
ग्रामीणों का कहना है कि, पानी की समस्या सुलझाने के वादे चुनाव के समय खूब किए जाते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई क्षेत्र में पलटकर देखता भी नहीं. वहीं जिला प्रशासन को भी कई बार समस्याओं से अवगत कराया गया है, लेकिन कोई निराकरण नहीं निकला. जबकि प्रदेश सरकार द्वारा नल-जल योजना के अंतर्गत पाइप लाइन बिछाकर पानी की आपूर्ति पंचायतों को हो सकती है, लेकिन जनप्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति के अभाव में लोग 5 किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर हैं.
सालों से पानी को तरस रहे ग्रामीण
जिला मुख्यालय के समीप पहाड़ी अंचल कालाखेत व अंबापानी के आसपास के गांवों में पीने के पानी का महज एक ही जरिया है, और वो है पहाड़ से बूंद-बूंद टपकता पानी, जिसे पीकर ग्रामीण व पालतू जानवर अपनी प्यास बुझाते हैं. सालों से पानी को तरसते लोगों की जहां शादियां टूट गईं, वहीं इस इलाके के तमाम लड़के कुंवारे बैठे हैं, गांव की इस समस्या की वजह से लड़कों की शादी नहीं हो रही है. महिलाओं को 4 से 5 किलोमीटर दूर पैदल चलकर पानी लाना मंजूर नहीं है. इसके अलावा दिहाड़ी मजदूरी करने वाले ग्रामीण सबसे पहले पानी के लिए जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं, जनप्रतिनिधि व जिला प्रशासन इन ग्रामीणों की समस्या से अनजान बना हुआ है.