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बड़वानी में है देवताओं का बनाया अनोखा मंदिर, गन्ने के रस से अभिषेक करने पर मिलता है खास लाभ

मंदिर से जुड़ा एक रोचक तथ्य ये भी है कि मंदिर में स्थित अष्टकोण शिवलिंग 12 फीट ऊंचा है, जिसका 10 फीट हिस्सा भूमिगत है, जबकि दो फीट दिखायी देता है. कहते हैं कि महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां जो भी भक्त गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

मंदिर की डिजाइन फोटो
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Published : Mar 4, 2019, 5:18 AM IST

बड़वानी। तस्वीरों में दिखता ये मंदिर अपने आप में खास है, क्योंकि इसे इंसान नहीं स्वंय देवताओं ने बनाया था. मान्यता है कि देवताओं ने जब मां नर्मदा की परिक्रम शुरू की थी, उसी दौरान इस मंदिर का निर्माण भी किया था. यही वजह है कि इस मंदिर का नाम देवपथ महादोव रखा गया. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने अन्य देवताओं के साथ यहां शिवलिंग की पूजा-अर्चना भी की थी.

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बोधवाड़ा गांव में स्थित इस मंदिर का पौराणिक और धार्मिक महत्व भी है. स्कंदपुराण, शिवपुराण और नर्मदा पुराण में इस मंदिर का महत्व बताया गया है. मंदिर का वास्तु भी अनोखा है, जिसे अद्वितीय बताया जाता है. मंदिर श्री महायंत्र के रूप में निर्मित है, जबकि शिवलिंग के ऊपर गुम्बद के आकार वाला रुद्र यंत्र बना हुआ है.

मंदिर से जुड़ा एक रोचक तथ्य ये भी है कि मंदिर में स्थित अष्टकोण शिवलिंग 12 फीट ऊंचा है, जिसका 10 फीट हिस्सा भूमिगत है, जबकि दो फीट दिखायी देता है. कहते हैं कि महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां जो भी भक्त गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

जानकार बताते हैं कि यहां महाशिवरात्रि पर विधि-विधान से एक गड्ढे में आटे को सूत में लपेटकर कपड़े से ढंककर कंडे की आग में रोट बनाया जाता है, जिसे सुबह लोगों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर को 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था, जिसे मुगलों ने नष्ट करने का प्रयास भी किया. इसी वजह से मंदिर का बाहरी हिस्सा खंडित दिखायी देता है. भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर में स्थानीय लोगों का तो तांता रहता है, लेकिन बाहरी लोगों को जानकारी नहीं होने से वह यहां तक नहीं पहुंच पाते.

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बड़वानी। तस्वीरों में दिखता ये मंदिर अपने आप में खास है, क्योंकि इसे इंसान नहीं स्वंय देवताओं ने बनाया था. मान्यता है कि देवताओं ने जब मां नर्मदा की परिक्रम शुरू की थी, उसी दौरान इस मंदिर का निर्माण भी किया था. यही वजह है कि इस मंदिर का नाम देवपथ महादोव रखा गया. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने अन्य देवताओं के साथ यहां शिवलिंग की पूजा-अर्चना भी की थी.

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बोधवाड़ा गांव में स्थित इस मंदिर का पौराणिक और धार्मिक महत्व भी है. स्कंदपुराण, शिवपुराण और नर्मदा पुराण में इस मंदिर का महत्व बताया गया है. मंदिर का वास्तु भी अनोखा है, जिसे अद्वितीय बताया जाता है. मंदिर श्री महायंत्र के रूप में निर्मित है, जबकि शिवलिंग के ऊपर गुम्बद के आकार वाला रुद्र यंत्र बना हुआ है.

मंदिर से जुड़ा एक रोचक तथ्य ये भी है कि मंदिर में स्थित अष्टकोण शिवलिंग 12 फीट ऊंचा है, जिसका 10 फीट हिस्सा भूमिगत है, जबकि दो फीट दिखायी देता है. कहते हैं कि महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां जो भी भक्त गन्ने के रस से शिवलिंग का अभिषेक करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

जानकार बताते हैं कि यहां महाशिवरात्रि पर विधि-विधान से एक गड्ढे में आटे को सूत में लपेटकर कपड़े से ढंककर कंडे की आग में रोट बनाया जाता है, जिसे सुबह लोगों को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है.पुरातत्व विभाग के अनुसार इस मंदिर को 12 वीं शताब्दी में बनाया गया था, जिसे मुगलों ने नष्ट करने का प्रयास भी किया. इसी वजह से मंदिर का बाहरी हिस्सा खंडित दिखायी देता है. भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर में स्थानीय लोगों का तो तांता रहता है, लेकिन बाहरी लोगों को जानकारी नहीं होने से वह यहां तक नहीं पहुंच पाते.

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Intro:शिवरात्रि स्पेशल स्टोरी
बडवांनी। पूण्य सलिला मां नर्मदा की परिक्रमा का यूँही महत्व नही है, स्वयं देवताओ ने मां नर्मदा की परिक्रमा की थी।तब से नर्मदा परिक्रमा का पावन पूण्य समूचे विश्व मे विख्यात है। नर्मदा तट पर अतिप्राचीन देवपथ महादेव मंदिर इसलिए महिलाओं है कि इसी मंदिर से भगवान विष्णु ने देवताओं के साथ शिवलिंग की पूजा अर्चना कर नर्मदा परिक्रमा प्रारंभ की और समापन भी यही किया था साथ ही पुराणों के अनुसार इस देवपथ मंदिर के शिवलिंग की स्थापना भी देवताओं ने ही कि थी।


Body:बड़वानी शहर से सटे कसरावद तट के उत्तरी किनारे पर ग्राम बोधवाड़ा में स्थित इस पौराणिक व धार्मिक महत्व के देवपथ महादेव मंदिर का वास्तु भी समूचे भारत मे सम्भवतः अद्वितीय है । यह मंदिर श्री महायंत्र के रूप में निर्मित है जबकि शिवलिंग के ऊपर गुम्बद का आकार रुद्र यन्त्र पर बना है। इस मंदिर के विषय मे रोचक तथ्य यह भी किवदंती के रूप में यह कहा जाता है कि वर्तमान में मौजूद जलाधारी से ऊपर की और शिवलिंग का लगभग 10 फिट लम्बा हिस्सा भूमिगत है इस तरह यह द्वादश फिट शिवलिंग की ऊंचाई है। इस मंदिर में यूं तो क्षेत्रीय शृद्धालुओ का आना जाना लगा रहता है किंतु क्षेत्र के बाहर लोग इस देवपथ शिवमन्दिर की पौराणिकता से अंजान है।
महाशिवरात्रि पर्व पर इस अद्भुत चमत्कारीक महादेव मंदिर पूजन व अभिषेक का सर्वाधिक महत्व है, कालसर्प रोग का निवारण भी यहाँ होता है। गन्ने के रस से इस शिवलिंग पर अभिषेक करने पर शिवजी जल्द प्रसन्न होते है और आर्थिक समस्या से जल्द छुटकारा मिलता है। शिवपुराण और नर्मदा पुराण में इस देवपथ महादेव मंदिर के महत्व को स्पष्ट समझाया गया है। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह मंदिर 900 साल प्राचीन होकर जिसका निर्माण 12 शताब्दी में होना दर्शाया गया है। जबकि कालांतर में धार के राजा के द्वारा 18 वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। मुगल शासनकाल में इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास भी किया गया था जिसके चलते मन्दिर का बाहरी हिस्सा खण्डित दिखाई देता है जिसका प्रभाव मन्दिर के बाहर श्री यंत्र पर दिखाई देता है। महाशिवरात्रि पर यहाँ विधि विधान से सूत में आटा लपेट कर कपड़े से ढककर कंडे की आग में रोट बनाया जाता है जो सुबह साबुत कपड़े और सूत में लपेटा वापस मिलता है।
बाइट01-
बाइट02-दिनेश शर्मा


Conclusion:देवताओं ने सर्वप्रथम बोधवाड़ा में नर्मदा की परिक्रमा शुरू करने से किनारे भगवान शिव की पुजन अर्चन कर 12 फिट के शिवलिंग की स्थापना की थी पश्चात परिक्रमा का समापन भी इसी देवपथ मंदिर पर किया था, इसलिए इस मंदिर को देवताओं द्वारा निर्मित किया और आगे बढ़े जिसके चलते इस प्राचीन मंदिर को देवपथ मन्दिर कहा जाता है। इस द्वादश फिट शिवलिंग की प्रदक्षिणा देवताओं के अलावा मार्कण्डेय ऋषि , सिद्ध साधुसंतों ने परिक्रमा की थी।
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