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लोन देने से मना किया तो बड़वानी की रेवा बाई ने खोल दिया बैंक, आदिवासी अंचलों में 1 अरब का है टर्नओवर

करीब आठ साल पहले आर्थिक तंगी और साहूकारी प्रथा से त्रस्त दस-बारह महिलाओं ने 5-5 रुपए जोड़कर समृद्धि बैंक की स्थापना की. इस बैंक में 3 हजार महिला सदस्य हैं और 40 हजार रुपए नगद हैं.

समृद्धि बैंक
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Published : Oct 16, 2019, 11:10 AM IST

Updated : Oct 17, 2019, 7:11 AM IST

बड़वानी। आदिवासी बाहुल्य जिले बड़वानी से 50 किमी दूर पहाड़ी अंचल गंधावल की एक अनपढ़ आदिवासी ग्रामीण महिला ने अपने हौसले से सतपुड़ा की दुर्गम पहाड़ियों के बीच एक ऐसी मिसाल कायम की है, जिसकी चमक धीरे-धीरे जिले के 715 गांवों तक पहुंच गई है. करीब आठ साल पहले आर्थिक तंगी और साहूकारी प्रथा से त्रस्त दस-बारह महिलाओं ने 5-5 रुपए जोड़कर समृद्धि बैंक की स्थापना की.

समृद्धि बैंक

इस बैंक में 3 हजार महिला सदस्य हैं और 40 हजार रुपए नगद हैं. वहीं इस बैंक ने डेढ़ करोड़ का ऋण वितरित किया है. इतना ही नहीं जिले में इसी तरह की 500 बैंक संचालित हो रही हैं, जिनका करीब 100 करोड़ का टर्नओवर है.

समृद्धि बैंक की अध्यक्ष और महिला सदस्य सभी निरक्षर हैं, लेकिन बैंक में पदाधिकारी और सदस्य हैं. आठ साल पहले खेती के लिए बड़वानी में एक बैंक ने रेवाबाई और उसकी साथी महिलाओं को ऋण देने से मना कर दिया था, इसके बाद महिलाओं ने बैंक खोल दिया और खुद ही संचालन की बागडोर सम्हाल ली. अब रेवाबाई खुद लोगों को लोन देती हैं. वर्तमान में गंधावल से लगे 37 गांवों की तीन हजार महिलाओं को बैंक से जोड़कर बचत के आधार पर ऋण देकर आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया जा रहा है. बैंक की कुल बचत 40 लाख रुपए होकर डेढ़ करोड़ का टर्नओवर है.

अनपढ़ रेवाबाई के हौसले कि कहानी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पता चली तो उन्होंने मंच पर बुलाकर उन्हें सम्मानित किया. गंधावल कि महिलाओं द्वारा संचालित समृद्धि साख संस्था को आजीविका मिशन का साथ मिला, जिसके चलते अब समृद्धि स्वायत साख संस्था मर्यादित के नाम से पंजीयन होकर, करीब 715 गांवों में अब समृद्धि बैंक की शाखाएं हैं, जिससे हजारों अनपढ़ आदिवासी महिलाएं जुड़कर खुद का बैंक संचालित कर रही हैं. जिनका कुल सालाना टर्नओवर करीब एक अरब रुपए है. रेवाबाई बताती हैं कि सबसे पहले उन्होंने अपने बैंक से एक हजार का ऋण लेकर मुर्गा- मुर्गी खरीदी और उनको पाल कर संख्या बढ़ने पर बेचकर ऋण चुका दिया, फिर लोन लेकर भैस खरीदी उसके बाद ऋण चुकता कर खेती बंधक रख ली.

वहीं उन्होंने वर्तमान में पांच लाख का ऋण लिया है, जिससे चार पहिया वाहन खरीद कर, उसे पाटी से गंधावल तक स्कूली छात्रों और सवारी लाने ले जाने में लगा रखा है. आदिवासी अंचल की अनपढ़ महिला के भागीरथी प्रयास ने उसे मान सम्मान ही नहीं दिलवाया, बल्कि स्वयं के साथ-साथ अन्य हजारों महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार की मिसाल बन गईं.

बड़वानी। आदिवासी बाहुल्य जिले बड़वानी से 50 किमी दूर पहाड़ी अंचल गंधावल की एक अनपढ़ आदिवासी ग्रामीण महिला ने अपने हौसले से सतपुड़ा की दुर्गम पहाड़ियों के बीच एक ऐसी मिसाल कायम की है, जिसकी चमक धीरे-धीरे जिले के 715 गांवों तक पहुंच गई है. करीब आठ साल पहले आर्थिक तंगी और साहूकारी प्रथा से त्रस्त दस-बारह महिलाओं ने 5-5 रुपए जोड़कर समृद्धि बैंक की स्थापना की.

समृद्धि बैंक

इस बैंक में 3 हजार महिला सदस्य हैं और 40 हजार रुपए नगद हैं. वहीं इस बैंक ने डेढ़ करोड़ का ऋण वितरित किया है. इतना ही नहीं जिले में इसी तरह की 500 बैंक संचालित हो रही हैं, जिनका करीब 100 करोड़ का टर्नओवर है.

समृद्धि बैंक की अध्यक्ष और महिला सदस्य सभी निरक्षर हैं, लेकिन बैंक में पदाधिकारी और सदस्य हैं. आठ साल पहले खेती के लिए बड़वानी में एक बैंक ने रेवाबाई और उसकी साथी महिलाओं को ऋण देने से मना कर दिया था, इसके बाद महिलाओं ने बैंक खोल दिया और खुद ही संचालन की बागडोर सम्हाल ली. अब रेवाबाई खुद लोगों को लोन देती हैं. वर्तमान में गंधावल से लगे 37 गांवों की तीन हजार महिलाओं को बैंक से जोड़कर बचत के आधार पर ऋण देकर आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया जा रहा है. बैंक की कुल बचत 40 लाख रुपए होकर डेढ़ करोड़ का टर्नओवर है.

अनपढ़ रेवाबाई के हौसले कि कहानी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पता चली तो उन्होंने मंच पर बुलाकर उन्हें सम्मानित किया. गंधावल कि महिलाओं द्वारा संचालित समृद्धि साख संस्था को आजीविका मिशन का साथ मिला, जिसके चलते अब समृद्धि स्वायत साख संस्था मर्यादित के नाम से पंजीयन होकर, करीब 715 गांवों में अब समृद्धि बैंक की शाखाएं हैं, जिससे हजारों अनपढ़ आदिवासी महिलाएं जुड़कर खुद का बैंक संचालित कर रही हैं. जिनका कुल सालाना टर्नओवर करीब एक अरब रुपए है. रेवाबाई बताती हैं कि सबसे पहले उन्होंने अपने बैंक से एक हजार का ऋण लेकर मुर्गा- मुर्गी खरीदी और उनको पाल कर संख्या बढ़ने पर बेचकर ऋण चुका दिया, फिर लोन लेकर भैस खरीदी उसके बाद ऋण चुकता कर खेती बंधक रख ली.

वहीं उन्होंने वर्तमान में पांच लाख का ऋण लिया है, जिससे चार पहिया वाहन खरीद कर, उसे पाटी से गंधावल तक स्कूली छात्रों और सवारी लाने ले जाने में लगा रखा है. आदिवासी अंचल की अनपढ़ महिला के भागीरथी प्रयास ने उसे मान सम्मान ही नहीं दिलवाया, बल्कि स्वयं के साथ-साथ अन्य हजारों महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार की मिसाल बन गईं.

Intro:बड़वानी । मध्यप्रदेश के पिछड़े जिलो में शुमार आदिवासी बाहूल्य वाले बड़वानी जिले से 50 किमी दूर पहाड़ी अंचल गंधावल की एक अनपढ़ आदिवासी ग्रामीण महिला ने अपने हौसले से सतपुड़ा की दुर्गम पहाड़ियों के बीच एक ऐसी मिसाल कायम की है जिसकी चमक धीरे धीरे जिले के 715 गांवों तक पहुँच गई। करीब आठ साल पहले आर्थिक तंगी व साहूकारी प्रथा से त्रस्त दस-बारह महिलाओं ने 5-5 रुपए जोड़कर बैंक की स्थापना की जिसके 3 हजार महिला सदस्य है और 40 हजार रुपए नगद है वही डेढ़ करोड़ का ऋण वितरित किया है इतना ही नही जिले में इसी तरह की 500 बैंक संचालित होकर इसका करीब 100 करोड़ का टर्नओवर है।


Body:कुर्सी पर बैठी निरक्षर रेवाबाई है जो समृद्धि बैंक की अध्यक्ष है और जो महिलाएं आसपास है भी निरक्षर होकर बैंक की पदाधिकारी/सदस्य है जिनकी संख्या 13 है। ठीक आठ साल पहले खेती के लिए बड़वानी में एक बैंक ने रेवाबाई व उसकी साथी महिलाओं को को ऋण देने से मना कर दिया था लेकिन हिम्मत नही हारी और जिद ऐसी की खुद का ही बैंक खोल दिया और खुद ही संचालन की बागडोर सम्हाल ली। अब रेवाबाई खुद लोगो को लोन देती है । वर्तमान में गंधावल से लगे 37 गांवो की 3000 महिलाओं को बैंक से जोड़कर बचत के आधार पर ऋण देकर आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया जा रहा है। बैंक की कुल बचत 40 लाख रुपए होकर डेढ़ करोड़ का टर्नओवर है। अनपढ़ रेवाबाई के हौसले कि कहानी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पता चली तो उन्होंने मंच पर बुलाकर सम्मानित किया। गंधावल कि महिलाओं द्वारा संचालित समृद्धि साख संस्था को आजीविका मिशन का साथ मिला जिसके चलते अब समृद्धि स्वायत साख संस्था मर्यादित के नाम से पंजीयन होकर करीब 715 गांवों में अब समृद्धि बैंक की शाखाएं है जिससे हजारों अनपढ़ आदिवासी महिलाएं जुड़कर खुद का बैंक संचालित कर रही है जिनका कुल सालाना टर्नओवर करीब एक अरब रुपया है। रेवाबई बताती है कि सबसे पहले उसने अपने बैंक से 1 हजार का ऋण लेकर मुर्गा मुर्गी खरीदी और उनको पाल कर संख्या बढ़ने पर बेचकर ऋण चुका दिया फिर पुनः ऋण लेकर भैस खरीदी उसके बाद ऋण चुकता कर खेती बंधक रख ली वही वर्तमान में 5 लाख का ऋण लिया है जिससे चार पहिया वाहन खरीद कर पाटी से गंधावल तक स्कूली छात्रों व सवारी लाने ले जाने के में लगा रखी है इसी तरह बैंक की सभी महिलाएं किसी न किसी वजह से बचत के रुपयो से ऋण लेकर अपना आर्थिक सुधार कर रही है साथ ही समय पर लोन की किश्त भी जमा कर रही है।
बाइट01-रेवाबाई- संचालक, समृद्धि बैंक
बाइट02- सुमी बाई-सचिव,समृद्धि बैंक
बाइट03-योगेश तिवारी,जिला प्रबन्धक,मप्र ग्रामीण आजीविका मिशन


Conclusion:आदिवासी अंचल की अनपढ़ महिला के भागीरथी प्रयास ने उसे मान सम्मान ही नही दिलवाया बल्कि स्वयं के साथ साथ अन्य हजारो महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार की जिंदा मिसाल बन गई। जी हाँ रेवा बाई जिसे 50 किमी दूर जिला मुख्यालय पर एक बैंक ने खेती के लिए लोन मांगने पर मना कर दिया बस यही शुरू होती है अनपढ़ महिलाओं के एक अरब रुपए के टर्नओवर वाली समृद्धि बैंक की शुरुआत।
Last Updated : Oct 17, 2019, 7:11 AM IST
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