बड़वानी। आदिवासी बाहुल्य जिले बड़वानी से 50 किमी दूर पहाड़ी अंचल गंधावल की एक अनपढ़ आदिवासी ग्रामीण महिला ने अपने हौसले से सतपुड़ा की दुर्गम पहाड़ियों के बीच एक ऐसी मिसाल कायम की है, जिसकी चमक धीरे-धीरे जिले के 715 गांवों तक पहुंच गई है. करीब आठ साल पहले आर्थिक तंगी और साहूकारी प्रथा से त्रस्त दस-बारह महिलाओं ने 5-5 रुपए जोड़कर समृद्धि बैंक की स्थापना की.
इस बैंक में 3 हजार महिला सदस्य हैं और 40 हजार रुपए नगद हैं. वहीं इस बैंक ने डेढ़ करोड़ का ऋण वितरित किया है. इतना ही नहीं जिले में इसी तरह की 500 बैंक संचालित हो रही हैं, जिनका करीब 100 करोड़ का टर्नओवर है.
समृद्धि बैंक की अध्यक्ष और महिला सदस्य सभी निरक्षर हैं, लेकिन बैंक में पदाधिकारी और सदस्य हैं. आठ साल पहले खेती के लिए बड़वानी में एक बैंक ने रेवाबाई और उसकी साथी महिलाओं को ऋण देने से मना कर दिया था, इसके बाद महिलाओं ने बैंक खोल दिया और खुद ही संचालन की बागडोर सम्हाल ली. अब रेवाबाई खुद लोगों को लोन देती हैं. वर्तमान में गंधावल से लगे 37 गांवों की तीन हजार महिलाओं को बैंक से जोड़कर बचत के आधार पर ऋण देकर आर्थिक रूप से सम्पन्न बनाया जा रहा है. बैंक की कुल बचत 40 लाख रुपए होकर डेढ़ करोड़ का टर्नओवर है.
अनपढ़ रेवाबाई के हौसले कि कहानी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को पता चली तो उन्होंने मंच पर बुलाकर उन्हें सम्मानित किया. गंधावल कि महिलाओं द्वारा संचालित समृद्धि साख संस्था को आजीविका मिशन का साथ मिला, जिसके चलते अब समृद्धि स्वायत साख संस्था मर्यादित के नाम से पंजीयन होकर, करीब 715 गांवों में अब समृद्धि बैंक की शाखाएं हैं, जिससे हजारों अनपढ़ आदिवासी महिलाएं जुड़कर खुद का बैंक संचालित कर रही हैं. जिनका कुल सालाना टर्नओवर करीब एक अरब रुपए है. रेवाबाई बताती हैं कि सबसे पहले उन्होंने अपने बैंक से एक हजार का ऋण लेकर मुर्गा- मुर्गी खरीदी और उनको पाल कर संख्या बढ़ने पर बेचकर ऋण चुका दिया, फिर लोन लेकर भैस खरीदी उसके बाद ऋण चुकता कर खेती बंधक रख ली.
वहीं उन्होंने वर्तमान में पांच लाख का ऋण लिया है, जिससे चार पहिया वाहन खरीद कर, उसे पाटी से गंधावल तक स्कूली छात्रों और सवारी लाने ले जाने में लगा रखा है. आदिवासी अंचल की अनपढ़ महिला के भागीरथी प्रयास ने उसे मान सम्मान ही नहीं दिलवाया, बल्कि स्वयं के साथ-साथ अन्य हजारों महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार की मिसाल बन गईं.