बड़वानी। जिले के किसान अब लाखों रुपए खर्च कर तैयार फसल पर कल्टीवेटर चलाकर उसे जमींदोज कर रहे हैं, क्योंकि इंदौर भोपाल सहित बड़े शहरों में रात का कर्फ्यू लागू होने व मंडियों में मंदी के साथ प्रदेश में एक बार फिर से लॉक डाउन की अफवाह के चलते सब्जियों की सप्लाई बंद हो गई है. जिला मुख्यालय से महज पांच किलोमीटर दूर ग्राम सजवानी के किसानों ने मजदूर लगाकर भिंडी व गिलकी तुड़वाई कराई लेकिन फसलों की बिक्री नहीं होने के चलते, किसान सब्जियों को पशुओं को खिला रहे है, साथ ही खड़ी फसल पर ट्रैक्टर से कल्टीवेटर चला कर फसल खत्म कर रहे हैं.
सजवानी के किसान ने अपने 5 एकड़ खेत में भिंडी लगाई थी, जिसे वह अब खुद अपने हाथों से भिंडी के पौधों पर कल्टीवेटर चलाकर फसल को जमींदोज कर रहा है, क्योंकि मजदूर लगाकर भिंडी तुड़वाने पर जो खर्च आता है, उसके मुकाबले एक रुपए किलो के भाव में भी उसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में किसान को मजबूरी में पशुओं को भिंडी खिलानी पड़ रही है.
बैंक का कर्ज बनी समस्या
किसान विकास ने बताया कि पहले लॉकडाउन में 3 एकड़ में टमाटर और 4 एकड़ में भिंडी लगाई थी, जिसे उखाड़ कर फेंकना पड़ा था. वही बैंक से लाखों रुपए कर्ज भुगतान करने के लिए फिर से 5 एकड़ में 16 किलो भिंडी का बीज लगाया था, जिस पर करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च किए. इस बार भिंडी का उत्पादन भी बेहतर हुआ, लेकिन कोरोना के चलते लॉकडाउन लगने की अफवाहों से भाव गिरने और सप्लाई नहीं होने से भिंडी के पौधों को जमींदोज करना पड़ा, जिसके चलते बैंक का कर्जा जमा करने में परेशानी आएगी.
फिर से लॉक डाउन की अफवाह ने बिगाड़ा किसान का गणित
प्रदेश में लगातार बढ़ रहे कोरोना वायरस संक्रमित मरीज मिलने से एक बार फिर अफवाहों का दौर चल पड़ा है. ग्रामीण क्षेत्रों से सब्जियां बड़े शहरों में बड़ी मात्रा में जाती है, लेकिन अफवाहों के चलते किसान के माल का उठाव नहीं हो रहा है. वहीं बाजार में सप्ताह भर पहले जो सब्जियां 30 से 40 रुपए किलो बिक रही थी, उसे आज एक रुपए किलो में भी खरीदार नहीं मिल रहे हैं. हालांकि सरकार ने बड़े शहरों में रात्रिकालीन कर्फ्यू लगाया है किंतु छोटे जिलों में भी लॉक डाउन लगने की अफवाह के चलते नगदी फसल बोने वाले किसानों पर आर्थिक संकट मंडराने लगा है.
सप्ताह भर पहले हरी सब्जियों के दाम किसानों की रोजी-रोटी का जरिया थे, लेकिन जैसे ही एक बार फिर प्रदेश में लॉकडाउन लगने की अफवाहों ने जोर पकड़ा, वैसे ही किसानों की कमर टूटती नजर आ रही है. स्थिति यह है कि किसानों को लाखों रुपए खर्च कर तैयार की गई फसल को अपने हाथों से ही नष्ट कर रहे हैं. सब्जी उत्पादकों को अपनी सब्जियां पशुओं को खिलाने के साथ-साथ फेंकनी पड़ रही है क्योंकि बाजार में इनकी सब्जियां कोई एक रुपए किलो में भी खरीदने को तैयार नहीं है.