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बालाघाट: घरों तक सिमटा कजलियां पर्व, सोशल डिस्टेंसिंग का हुआ पालन - Kajaliyan festival in balaghat

बालाघाट जिले में कोरोना वायरस के चलते इस बार कजलियां पर्व फीका नजर आया, जहां घरों में ही रहकर कजलियों को विसर्जित किया गया. हालांकि इस मौके पर सोशल डिस्टेंसिंग का विशेष रूप से ध्यान रखा गया.

Kajaliyan festival
कजलियां पर्व
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Published : Aug 4, 2020, 10:33 PM IST

बालाघाट। जिले भर में कजलियां का त्योहार लॉकडाउन के बीच हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस दौरान विशेष तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी किया गया. यह पर्व कोष्टी समाज द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते त्योहार फीका सा पड़ गया.

यह पर्व विशेष रूप से किसानों से जुड़ा हुआ होता है. इसमें महिलाएं हिस्सा लेती हैं. सावन के महीना की नवमी तिथि से इसका अनुष्ठान प्रारंभ होता है. नाग पंचमी के दूसरे दिन अलग-अलग खेतों या फिर कुम्हारों के घर से लाई गई मिट्टी के बर्तनों और बांस की टोकरी में गेंहू के बीज बोए जाए हैं. एक सप्ताह बाद एकादशी की शाम को बीजों से तैयार कजलियों की पूजा की जाती है. फिर दूसरे दिन द्वादशी को सुबह से लेकर शाम तक नदियों या कुओं में विसर्जन किया जाता है, जिसके बाद कजलियां एक-दूसरे को बांटकर भुजली पर्व की बधाई दी जाती है.

सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए की गई भगवान कबीर की आरती

कोष्टी समाज द्वारा इस वर्ष भुजली पर्व कोरोना महामारी के चलते नहीं मनाया गया, जिसके चलते चार अगस्त यानी मंगलवार को समाज के कुछ लोगों द्वारा सुबह कबीर कुटी भवन पहुंचकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए झंडा वंदन किया गया. साथ ही भगवान कबीर की आरती की गई, जिसमें समाज के अध्यक्ष राजू बोकडे, युवा कोस्टा समाज अध्यक्ष मनीष हेड़ाऊ सहित कई लोग उपस्थित रहे.

कोष्टी समाज के अध्यक्ष राजू बोकडे ने बताया कि हर वर्ष समाज द्वारा भुजली पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है, मगर इस साल विश्व भर में फैली कोरोना महामारी के चलते यह पर्व नहीं मनाया गया. हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कुछ लोगों ने घर में भुजली का विसर्जन किया. हर साल इस पर्व के दिन गोलीबारी चौक पर मेला आयोजित किया जाता था, लेकिन इस वर्ष कोरोना के चलते कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया.

बालाघाट। जिले भर में कजलियां का त्योहार लॉकडाउन के बीच हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. इस दौरान विशेष तौर पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी किया गया. यह पर्व कोष्टी समाज द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते त्योहार फीका सा पड़ गया.

यह पर्व विशेष रूप से किसानों से जुड़ा हुआ होता है. इसमें महिलाएं हिस्सा लेती हैं. सावन के महीना की नवमी तिथि से इसका अनुष्ठान प्रारंभ होता है. नाग पंचमी के दूसरे दिन अलग-अलग खेतों या फिर कुम्हारों के घर से लाई गई मिट्टी के बर्तनों और बांस की टोकरी में गेंहू के बीज बोए जाए हैं. एक सप्ताह बाद एकादशी की शाम को बीजों से तैयार कजलियों की पूजा की जाती है. फिर दूसरे दिन द्वादशी को सुबह से लेकर शाम तक नदियों या कुओं में विसर्जन किया जाता है, जिसके बाद कजलियां एक-दूसरे को बांटकर भुजली पर्व की बधाई दी जाती है.

सोशल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए की गई भगवान कबीर की आरती

कोष्टी समाज द्वारा इस वर्ष भुजली पर्व कोरोना महामारी के चलते नहीं मनाया गया, जिसके चलते चार अगस्त यानी मंगलवार को समाज के कुछ लोगों द्वारा सुबह कबीर कुटी भवन पहुंचकर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए झंडा वंदन किया गया. साथ ही भगवान कबीर की आरती की गई, जिसमें समाज के अध्यक्ष राजू बोकडे, युवा कोस्टा समाज अध्यक्ष मनीष हेड़ाऊ सहित कई लोग उपस्थित रहे.

कोष्टी समाज के अध्यक्ष राजू बोकडे ने बताया कि हर वर्ष समाज द्वारा भुजली पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है, मगर इस साल विश्व भर में फैली कोरोना महामारी के चलते यह पर्व नहीं मनाया गया. हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कुछ लोगों ने घर में भुजली का विसर्जन किया. हर साल इस पर्व के दिन गोलीबारी चौक पर मेला आयोजित किया जाता था, लेकिन इस वर्ष कोरोना के चलते कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया.

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