बालाघाट। कभी चीन की सेना में रहे वांग छी पिछले 57 साल से भारत में रह रहे हैं. 1963 से तमाम कोशिशों के बाद पहली बार 2017 में चीन जा पाए थे. चीन पहुंचने के बाद वहां से वीजा लेकर 2018 में दूसरी बार भारत आए, फिर चीन लौट गए. 2018 में वो तीसरी बार चीन से भारत फिर आए, इस बार वीजा मार्च 2020 तक के लिए था, लेकिन लॉकडाउन के चलते सारी फ्लाइट्स बंद हो गईं और वांग छी चीन नहीं लौट सके. अब वीजा के एक्सटेंशन के लिए आवेदन किया है.
वांग के बेटे-बेटी समेत आधा परिवार मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में रहता है और बाकी का आधा परिवार चीन में रहता है. मौजूदा भारत-चीन तनाव पर वो कहते हैं कि, 'मुझे तो तिरोड़ी गांव में बहुत सपोर्ट मिला, इतना प्यार मिला कि, यहीं शादी हुई, घर बना, बच्चे हुए. लेकिन, चीन में बसने की तमन्ना तो अब भी है. भारत चीन सीमा विवाद पर उन्होंने कहा कि, यह जमीन की लड़ाई है, जो कि 1962 से चली आ रही है. विवाद में किसी भी देश का कोई फायदा नहीं है. दोनों ही देश को नुकसान होगा, इसलिये इस विवाद का दोनों देशों को बैठकर हल निकालना चाहिये.
फिल्मी कहानी के समान है वांग की जिंदगी
1969 से वांग छी तिरोड़ी गांव में ही रह रहे हैं, यहां उनका पूरा परिवार है. वांग की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी की तरह है. 1962 में भारत, चीन के बीच हुए युद्ध के वक्त इनकी उम्र 22 साल थी और चीनी सेना में सर्वेयर की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. युद्ध विराम के बाद 1963 में धोखे से भारत की सीमा में घुस आए. रेडक्रॉस की जीप दिखी तो लगा कि चीन की है, उसमें सवार हो गए. जीप हमारे देश की थी, तो सेना के जवान वांग छी को असम छावनी में ले आए. फिर ये 1963 से लेकर 1969 तक देश की अलग-अलग जेलों में रहे. आखिरी ठिकाना बालाघाट जिले में तिरोड़ी गांव बना.
करीब 7 साल अलग- अलग जेलों में बिताने के बाद सरकार ने वांग को जेल से छोड़ दिया और तिरोड़ी में ही रहने की इजाजत दी. भारत सरकार ने हर महीने वांग को 100 रुपए पेंशन भी दी. उनका छोटा बेटा विष्णु कहता है कि, 'तिरोड़ी में पहले सेठ इंदरचंद जैन की गेहूं पीसने की दुकान हुआ करती थी, पापा वहीं काम करते थे. पापा के काम से खुश होकर उन्होंने ही पापा की शादी गांव की लड़की (सुशीला) से 1974 में करवा दी थी'.
बालाघाट में रहते हैं वांग के पत्नी और बच्चे
भारतीय लड़की से शादी होने के बाद सरकार ने पेंशन देना बंद कर दिया. फिर वांग ने थोड़े पैसे जोड़कर गांव में ही किराना दुकान खोल ली. दुकान अच्छी चलने लगी, तो घर भी बन गया और परिवार भी पल गया. इस दौरान वे लगातार चीन जाने की कोशिशों में भी लगे रहे, लेकिन सरकार की तरफ से इजाजत नहीं मिल रही थी. बड़ी कोशिशों के बाद 2017 में पहली बार परिवार के साथ तीन महीने के लिए चीन जाने की अनुमति मिली, जबकि पासपोर्ट 2013 में ही बन गया था.
वांग छी चीन के ही नागरिक हैं. उनका पासपोर्ट 25 मार्च 2013 को बना था. वांग छी की नागरिकता आज भी चीन की ही है. इसलिए अब वहां से वीजा लेकर भारत आते हैं, क्योंकि परिवार यहां है. वांग छी ने कहा कि, हम बस यहीं चाहते हैं कि, सीमा पर चल रहा तनाव खत्म हो जाए और दोनों देशों के लोग आपस में प्यार से रहें.