बालाघाट। कोरोना काल के बीच बालाघाट को एक नई पहचान मिली है. इंडियन क्रेन और क्रौंच पक्षी के नाम से प्रसिद्ध सारस पक्षी ने बालाघाट को अपनी ठिकाना बना लिया है. जिसके बाद जिले को सारस लैंड के नाम से जाना जाएगा. जिले में 21 टीम और महाराष्ट्र के गोंदिया जिले में 23 टीमों ने कुल 60 से 70 स्थानों पर गणना का कार्य किया था, जो की पूरा हो गया है. सारस गणना के परिणामों को कलेक्टर दीपक आर्य ने घोषित किया है कि गोंदिया जिले में 45 से 47 और बालाघाट में सर्वाधिक 56 से 58 सारस गणना में पाए गए हैं.
कलेक्टर दीपक आर्य ने बताया कि जो परिणाम आए हैं उसमें सेवा संस्था वन्य जीव संरक्षण से जुड़े लोग और जिले के जागरूक कृषकों के कारण इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. जो सारस के लिए एक अच्छे संकेत हैं. इस अवसर पर सारस संरक्षण के लिए तैयार किए गए पोस्टर का भी विमोचन किया गया.
वैनगंगा नदी महाराष्ट्र के गोंदिया और मध्य प्रदेश के बालाघाट जिलों को विभाजित करती है. भौगोलिक दृष्टिकोण से नदी के दोनों ओर के प्रदेश की जैव विविधता में काफी समानता पाई जाती है. जिसके कारण कुछ सारस के जोड़े अधिवास और भोजन के लिए दोनों ओर के प्रदेशों में समान रूप से विचरण करते पाए जाते हैं.
टीमों के द्वारा 13 जून से 18 जून तक प्रतिदिन सुबह 5 बजे से 10 बजे तक विभिन्न स्थानों में प्रत्यक्ष रूप से जाकर सारस के विश्राम स्थलों पर गणना की गई थी. बालाघाट जिले में बालाघाट टूरिज्म प्रमोशन काउंसिल, वन विभाग एवं वन्य प्राणी संरक्षण, संवर्धन से जुड़े कृषक एवं स्वयंसेवी लोग इस कार्य में लगे रहे. सेवा संस्था के सदस्य पूरे सालभर सारस के विश्राम स्थल प्रजनन अधिवास और भोजन के लिए प्रयुक्त भ्रमण पद का अभ्यास करते हैं. साथ ही सारस के अधिवास एवं उनके आसपास रहने वाले किसानों को सारस का महत्व बताकर उसके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रेरित करते हैं.