बालाघाट। वन्यप्राणियों के नाखून, खाल और बाल से रूपयों की बारिश होने के अंधविश्वास के कई मामले पूर्व में भी जिले में सामने आते रहे हैं. जिसके चलते वन्यप्राणियों के शिकार की प्रवृत्ति भी बढ़ी है(Balaghat tiger skin smuggling). ताजा मामला लालबर्रा क्षेत्र से सामने आया है, जहां बाघ की खाल से रुपयों की बारिश कराने का झांसा देने वाले बदमाशों को वनविभाग की टीम ने गिरफ्तार कर लिया है.
बाघ की खाल के साथ आरोपी गिरफ्तार: लालबर्रा थाना अंतर्गत सिहोरा में टीम ने 3 आरोपियों को ढाबे से पकड़ा. इसके बाद अन्य 5 आरोपियों को अन्य स्थान से गिरफ्तार किया है. 3 आरोपी लालबर्रा से सिवनी राज्य मार्ग 26 पर पड़ने वाले ग्राम सिहोरा में बाघ नर उम्र करीब 4 वर्ष की खाल लेकर घूम रहे थे(Balaghat accused rain money with tiger skin). मुख्य वन संरक्षक उड़नदस्ता प्रभारी परिक्षेत्र अधिकारी धर्मेंद्र बिसेन को मुखबिर से इसकी सूचना मिली, जिसके बाद उन्होंने टीम के साथ मौके पर पहुंचकर घेराबंदी कर आरोपियों को हिरासत लिया.
जानकारी मिलने पर अन्य आरोपी गिरफ्तार: गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी मंडला जिले के विभिन्न गांवों के रहने वाले हैं. इस मामले में 1 और आरोपी फरार है. पुलिस ने आरोपियों के पास से बाघ की खाल सहित 2 बाइक बरामद की है. वन विभाग की टीम बाघ के शिकार से जुड़ी जानकारी जुटाने में लगी है. टीम ने लालबर्रा और कंजई के बीच ढाबे के पास संजीत पुसाम, बुधराम पुसाम और दलपत उईके को पकड़ा. जिनसे पूछताछ में उन्होंने बाघ की खाल को लेकर जानकारी दी. इनकी जानकारी के आधार पर वन विभाग की टीम ने 5 और आरोपियों को पकड़ा है.
रिमांड में आरोपी: गिरफ्तार आरोपियों को वन अमले द्वारा वारासिवनी न्यायालय में पेश किया गया, जहां न्यायालय द्वारा आरोपी बुधराम पुसाम धनेश पन्द्रे और चमर सिंह कुशवाह को गहन पूछताछ के लिए वन विभाग को रिमांड में सौंप दिया है. वहीं 5 आरोपियों को न्यायायिक अभिरक्षा में उपजेल भेज दिया गया है. इस मामले में और भी आरोपियों के शामिल होने की आशंका है, जिनकी वन विभाग की टीम सरगर्मी से तलाश कर रही है.
धन की वर्षा का झांसा: अंधविश्वास के चलते बाघ तेंदुए भालू जैसे वन्य प्राणियों के शिकार की घटनाएं नई नहीं है. समय समय पर इस तरह की घटनाएं सामने आती रहती है(Balaghat tiger skin smuggling accused arrested). पूर्व में भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं. वन विभाग द्वारा वन्य प्राणियों का शिकार रोकने के लिए तमाम प्रयास किए जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्य है कि ज्यादातर मामलों में शिकार के बाद ही वन विभाग को घटना का पता चल पाता है.