बालाघाट। मंगल पर तिरंगा फहराने के बाद चंद्रयान-2 जल्द ही चांद की सतह पर उतरने वाला है. भारत की इस तरक्की की दुनिया कायल है, लेकिन अंतरिक्ष में झंडा फहराकर भी हिंदुस्तान आवाम की प्यास बुझाने में नाकाम है, पानी की किलल्त से लोग बेहाल हैं, जबकि मानसून की दस्तक भी आवाम की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हो रही है, आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में तो लोग आज भी झिरियों के सहारे अपनी प्यास बुझा रहे हैं. जो भारत की तरक्की को आईना दिखा रहा है.
बालाघाट में कई जनजातियां निवास करती हैं, जबकि एमपी की मूल जनजाति बैगा को बचाने के लिए राष्ट्रपति ने उन्हें गोद ले रखा है, बावजूद इसके उनकी स्थिति जस की तस है और आज भी सुविधाओं के आभाव में जीवनयापन कर रहे हैं. आजादी को सात दशक बाद भी राष्ट्रीय मानव का दर्जा प्राप्त बैगा जनजातियों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. उनकी बदहाली का आलम ये है कि बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं, अब कलेक्टर साहब आश्वासन दे रहे हैं कि जल्द ही पानी का इंतजाम करायेंगे और सरकारी सुविधाएं भी उन्हें मुहैया करायेंगे.
बैहर विधानसभा क्षेत्र के बिरसा जनपद के अडोरी ग्राम पंचायत के कुंडेकसा गांव में राष्ट्रीय मानव निवास करते हैं. जहां पानी उगलने वाले नल आजकल हवा उगल रहे हैं, जो सरकारी योजनाओं की हवा भी निकाल रहे हैं क्योंकि आज भी इन्हें पानी-सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं