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इस गांव में नहीं है श्मशान घाट, किराए की जमीन पर होता है अंतिम संस्कार

अशोकनगर की राष्ट्रीय राजमार्ग 346 ए पर बसे बंगला चौराहा कस्बे सहित बरखेड़ा जमाल गांव में दाह संस्कार के लिए टीन शेड की व्यवस्था नहीं होने के कारण खुले मैदान में ही दाह संस्कार करना पड़ता है.

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Published : Sep 11, 2019, 11:50 AM IST

मरने के बाद भी नहीं मिलती दो गज जमीन

अशोकनगर। जिले की राष्ट्रीय राजमार्ग 346 ए पर बसे बंगला चौराहा कस्बे सहित बरखेड़ा जमाल गांव में श्मशान की व्यवस्था नहीं है. कस्बे में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे कोंचा नदी किनारे स्थित एक निजी भूमि में दाह संस्कार के लिए जाना पड़ता है . यहां भी दाह संस्कार के लिए टीन शेड की व्यवस्था नहीं होने के कारण खुले मैदान में ही दाह संस्कार करना पड़ता है.

मरने के बाद भी नहीं मिलती दो गज जमीन


करीला मार्ग पर बने इस अस्थाई मुक्तिधाम तक पहुंचने के लिए शवयात्रा को दो किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. रास्ते की भी हालत खराब है. रास्ते में जगह-जगह बने गड्ढों में कीचड़ भर जाता है. इतना ही नहीं शवयात्रा के दौरान कंधा बदलने की क्रिया बीच सड़क पर अर्थी रखकर करनी पड़ती है. जैन समाज के एक युवक की अंतिम यात्रा के दौरान इस मुक्तिधाम के हालात बहुत शर्मनाक दिखाई दिए.


इस अस्थाई मुक्तिधाम के चारों ओर गाजर घास और गंदगी पसरी हुई है, जिससे यहां आने वाले ग्रामीणों को अंतिम संस्कार करने के पहले सफाई की व्यवस्था करनी पड़ती है. इस संबंध में दोनों गांवों के रहवासी कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी की भी मानवीय संवेदनायें नहीं जागी हैं. पंचायत के सचिव अशोक यादव के मुताबिक मुक्तिधाम के लिए मनरेगा से राशि भी आवंटित हो चुकी है, लेकिन भूमि के विवाद के चलते मुक्तिधाम का निर्माण नहीं कराया जा सका है.

अशोकनगर। जिले की राष्ट्रीय राजमार्ग 346 ए पर बसे बंगला चौराहा कस्बे सहित बरखेड़ा जमाल गांव में श्मशान की व्यवस्था नहीं है. कस्बे में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे कोंचा नदी किनारे स्थित एक निजी भूमि में दाह संस्कार के लिए जाना पड़ता है . यहां भी दाह संस्कार के लिए टीन शेड की व्यवस्था नहीं होने के कारण खुले मैदान में ही दाह संस्कार करना पड़ता है.

मरने के बाद भी नहीं मिलती दो गज जमीन


करीला मार्ग पर बने इस अस्थाई मुक्तिधाम तक पहुंचने के लिए शवयात्रा को दो किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. रास्ते की भी हालत खराब है. रास्ते में जगह-जगह बने गड्ढों में कीचड़ भर जाता है. इतना ही नहीं शवयात्रा के दौरान कंधा बदलने की क्रिया बीच सड़क पर अर्थी रखकर करनी पड़ती है. जैन समाज के एक युवक की अंतिम यात्रा के दौरान इस मुक्तिधाम के हालात बहुत शर्मनाक दिखाई दिए.


इस अस्थाई मुक्तिधाम के चारों ओर गाजर घास और गंदगी पसरी हुई है, जिससे यहां आने वाले ग्रामीणों को अंतिम संस्कार करने के पहले सफाई की व्यवस्था करनी पड़ती है. इस संबंध में दोनों गांवों के रहवासी कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अभी तक किसी की भी मानवीय संवेदनायें नहीं जागी हैं. पंचायत के सचिव अशोक यादव के मुताबिक मुक्तिधाम के लिए मनरेगा से राशि भी आवंटित हो चुकी है, लेकिन भूमि के विवाद के चलते मुक्तिधाम का निर्माण नहीं कराया जा सका है.

Intro:अशोकनगर।आजादी के बाद प्रदेश में सत्तासीन हुई तमाम सरकारों ने लोगों के रहन सहन को सुविधाजनक बनाने के लिए तमाम योजनाएं लागू की,लेकिन बेहतर क्रियान्वयन नहीं होने से यह योजनाएं महज कोरा कागज साबित होती नजर आ रही है.सूबे के मुख्यमंत्री कमलनाथ की तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. यहां तक कि लोगों को मरने के बाद अंतिम संस्कार के लिए छत तक नसीब नहीं हो पाती.

Body:अशोकनगर जिले की नवगठित बहादुरपुर तहसील के अंतर्गत एक गांव ऐसा भी है जहाँ मृत्यु के बाद इंसान के शव को छत तक नसीब नहीं होती. दरअसल इस गांव में शमशान घाट नहीं होने के कारण खुले आसमान के नीचे ही अंतिम संस्कार की सारी क्रियाएं सम्पन्न होती हैं.राष्टीय राजमार्ग 346 ए पर बसे बंगलाचौराहा कस्बे सहित बरखेड़ा जमाल गांव में शमशान की व्यवस्था नहीं है. कस्बे में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसे कोंचा नदी किनारे स्थित एक निजी भूमि में दाह संस्कार हेतु ले जाया जाता है. यहाँ भी दाह संस्कार के लिए टीन शेड की व्यवस्था नहीं होने के कारण खुले मैदान में ही दाह संस्कार करना पड़ता है. बारिश के मौसम में मजबूरन प्लास्टिक की तिरपाल तानकर ही शव का अंतिम संस्कार किया जाता है
करीला मार्ग पर बने इस अस्थाई मुक्तिधाम तक पहुंचने के लिए शवयात्रा को दो किलोमीटर लंबा रास्ता तय करना पड़ता है. रास्ता भी इतना खस्ताहाल कि मुक्तिधाम तक पहुंचते पहुंचते लोगों की चप्पलें तक टूट जाती है. रास्ते मे जगह जगह बने गड्डों में कीचड़ भर जाता है. इतना ही नहीं शवयात्रा के दौरान कंधा बदलने की क्रिया बीच सड़क पर अर्थी रखकर करनी पड़ती है. जैन समाज के एक युवक की अंतिम यात्रा के दौरान इस मुक्तिधाम के हालात बहुत शर्मनाक दिखाई दिये.
इस अस्थाई मुक्तिधाम के चारों ओर गाजर घास और गंदगी पसरी हुई है. जिससे यहाँ आने वाले ग्रामीणों को अंतिम संस्कार करने के पहले सफाई की व्यवस्था करनी पड़ती है. इस संबंध में दोनों गांवो के रहवासी कई बार शासन प्रशासन से गुहार लगा चुके हैं लेकिन अभी तक किसी की भी मानवीय संवेदनायें नहीं जागी हैं. पंचायत के सचिव अशोक यादव के मुताबिक मुक्तिधाम के लिए मनरेगा से राशि भी आवंटित हो चुकी है. लेकिन भूमि के विवाद के चलते मुक्तिधाम का निर्माण नहीं कराया जा सका है.Conclusion:बहरहाल अब देखना यह है कि इस खबर के बाद शासन प्रशासन इन कस्बों में मुक्तिधाम जैसी मूलभूत सुविधा उपलब्ध करा पता है या नहीं.
बाइट-अनिरुद्ध दांगी,सरपंच प्रतिनिधि
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