अनूपपुर। मैकल पर्वत में स्थित अमरकंटक समुद्र तल से 1 हजार 65 मीटर ऊंचे स्थान पर है, जिसे पवित्र नदी नर्मदा उद्गम कुंड कोटि तीर्थ के नाम से जाना जाता है. यहां मंदिरों के झुंड, सोन और जोहिला नदी के उद्गम स्थल, ऋषि-मुनियों की तपोस्थली होने के कारण अमरकंटक को तीर्थराज भी कहा जाता है. वहीं भगवान शंकर, ऋषि दुर्वासा, कपिल व्यास और भृगु ऋषि समेत कई महान ऋषियों ने वर्षों तक अमरकंटक में तपस्या की थी. इस कारण इसे पवित्र तपोस्थली भी कहा जाता है.
नदियों का उद्गम स्थल अमरकंटक
अमरकंटक में नर्मदा, सोन और जोहिला जैसे पावन नदियों का उद्गम स्थल है. अमरकंटक में नर्मदा अपने उद्गम स्थल से पश्चिम दिशा की तरफ बहती है. माना जाता है कि देश की एकमात्र नर्मदा नदी ही ऐसी नदी है, जो उल्टी दिशा में बहती है. किंवदंतियों में कहां जाता है कि नर्मदा अपनी शादी से नाखुश होकर क्रोध में नर्मदा अपनी दिशा परिवर्तित कर ली और चिरकाल तक अकेले ही बहने का निर्णय ले लिया. नर्मदा को भगवान शिव की पुत्री कहा जाता है. यही कारण है कि उद्गम स्थल के चारों ओर भगवान शिव से जुड़े हुए शिव परिवार के मंदिर पाए जाते हैं.
सोनभद्र उद्गम स्थल
अमरकंटक की दूसरी बड़ी नदी सोनभद्र है, जिसे सोन नदी के नाम से जाना जाता है. मैकल पहाड़ियों की चोटी से एक छोटे से कुंड से निकलते हुए सोन नदी झरने के रूप में यहां से बहती हुई चली जाती है. सोनभद्र को नर्मदा का प्रेमी कहां जाता है और जोहिला नदी को नर्मदा नदी की सहेली का दर्जा प्राप्त है. नर्मदा उद्गम स्थल से लगभग 1 किलोमीटर दूर है सोनभद्र का उद्गम स्थल, यह मध्य प्रदेश का अंतिम छोर भी है, जिसके बाद यहां से छत्तीसगढ़ की सीमा प्रारंभ हो जाती है.
माई की बगिया
सोनमुड़ा से कुछ ही दूर पर माई की बगिया स्थित है. माई की बगिया में वनस्पतियों का अंबार लगा रहता है, लेकिन गुलबकावली एकमात्र ऐसा पौधा है जो अमरकंटक में माई की बगिया में ही पाया जाता है. गुलबकावली आंख संबंधित विकार नाशक के रूप में भी जानी जाती हैं.
जोहिला उद्गम स्थल
अमरकंटक में तीसरी प्रमुख नदी जोहिला है, जो छोटे से कुएं से उत्पन्न होती है. जोहिला अमरकंटक नर्मदा उद्गम स्थल से 11 किलोमीटर दूर बहती है. जोहिला को नर्मदा की प्रिय सहेलियों में गिना जाता है. जोहिला नदी के उद्गम से कुछ ही दूर पर अमरेश्वर महादेव का मंदिर है, जहां 15 फीट से भी ज्यादा की ऊंचाई का शिवलिंग स्थापित किया गया है. अमरेश्वर मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य में आता है.
कपिलधारा का सुंदर दृश्य
कपिलधारा का नजारा बेहद आकर्षक और मनमोहिनी है, यह अमरकंटक में सबसे आकर्षक जलप्रपात है. ऐसा कहा जाता है कि कपिलधारा में वर्षों तक कपिल मुनि ने तपस्या की थी. नर्मदा नदी के प्रारंभिक स्थल से करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर जो जलप्रपात स्थित है, उसे कपिलधारा के नाम से जाना जाता है. कपिलधारा में नर्मदा का पानी 15 मीटर की ऊंचाई से गिरता है.
दूध धारा जलप्रपात
नर्मदा नदी का पानी ऋषि दुर्वासा की गुफा के पास एक जलप्रपात के रूप में गिरता है. जलधारा इतनी साफ और स्वच्छ रहती है कि जब वह ऊपर से नीचे गिरती हैं, तो उसकी धाराएं दूध की तरह बह रही होती हैं. यही कारण है कि इस जलप्रपात को दूध धारा के नाम से जाना जाता है.
निर्माणाधीन श्री यंत्र मंदिर
अमरकंटक में बन रहे अष्टधातु की श्री यंत्र मंदिर सिर्फ गुरु पुष्य नक्षत्र में ही निर्माण कार्य होता है. 1991 में मंदिर बनना प्रारंभ हुआ था पर एक निश्चित तिथि में श्री यंत्र मंदिर के निर्माण का कार्य किया जा सकता है, इसलिए अभी तक यह मंदिर अधूरा पड़ा हुआ है. मंदिर की विशेषता है कि इसके केंद्र में मां त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा स्थापित की जा रही है.
कलचुरी कालीन प्राचीन मंदिर
नर्मदा कुंड के दक्षिण में कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर देखने को मिलते हैं इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा करण देव ने 1041 से 1073 ई. के बीच बनवाया था. पातालेश्वर मंदिर इस काल के मंदिर निर्माण कला का उदाहरण है.
निर्माणाधीन जैन मंदिर
श्री सर्वोदय दिगंबर जैन मंदिर में भगवान आदिनाथ की विश्व में सर्वाधिक वजनी 24 टन अष्टधातु की प्रतिमा को 28 तनु के कमल के ऊपर विराजित किया गया है, जिसका कुल वजन 52 टन है. प्रतिमा आचार्य 108 विद्यासागर जी महामुनी राज तथा ससंघ 44 निग्रंथ शिष्य मुनि के सानिध्य में 6 नवंबर 2006 को विराजित की गई थी.
माना जाता है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से ही गंगा में स्नान के बराबर का पुण्य प्राप्त होता है. अमरकंटक छोटा पर सुंदर और शांतिप्रिय धार्मिक स्थल है. अमरकंटक तीर्थ स्थल ही नहीं पर्यटक स्थल के नाम से भी जाना जाता है. अमरकंटक में विभिन्न औषधियां और वनस्पति पाई जाती हैं, यहां के बायोरिजर्व को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल किया है.