अलिराजपुर। जोबट क्षेत्र के किसानों का रुझान अब धीरे-धीरे नकदी फसलों की ओर बढ़ रहा है, क्षेत्र में पहले देसी बीजों का बोलबाला था वहीं अब हाइब्रिड बीजों की वजह से फसलों में रोगों की अधिकता भी काफी बढ़ गई है. नतीजा यह है कि इस क्षेत्र में पैदा होने वाली देशभर में मशहूर देसी उड़द भी येलो मोजेक बीमारी की चपेट में आकर प्रभावित हुई है. जिसके कारण देश में पहचान रखने वाली देसी उड़द ना के बराबर मिल पाएगी.
बता दें जोबट क्षेत्र के 25700 हेक्टेयर में से लगभग 55 सौ हेक्टेयर कृषि भूमि में केवल उड़द की फसल बोई जाती है. इस फसल का रकबा वैसे तो आमतौर पर ज्यादा घटता बढ़ता नहीं है लेकिन, पारिवारिक बंटवारे की वजह से कम होती कृषि भूमि से यह फसल अब 20 से 25 फीसद क्षेत्र में ही बोई जाती है. देशी उड़द अपनी अच्छी क्वालिटी की वजह से देशभर में मंडियों में अपनी पहचान रखती थी, स्वाद में मिठास लिए उड़द दक्षिण भारत के इडली बनाने वालों के लिए प्राथमिक थी. वहीं पापड़ बनाने वालों को भी यहां के देसी उड़द की मांग काफी रहती थी.
जोबट क्षेत्र से उड़द इंदौर मंडी के अलावा गुजरात के कुछ बड़े क्षेत्रों में जाती थी, जहां दाल व मोगर के माध्यम से यह दक्षिण भारत के अनेक हिस्सों में पहुंचती थी. देसी उड़द के साथ हाइब्रिड उड़द व टी नाईन उड़द के बीज के साथ अब उड़द की क्वालिटी भी प्रभावित होने लगी है. जोबट क्षेत्र के ग्राम वांजा बेड़ा, आलीराजपुर क्षेत्र के खंडाला, आंबुआ क्षेत्र के छोटी हिरापुर, अडवाड़ा, मालदेव आदि गांवों की पैदा होने वाली देसी उड़द बेहतर क्वालिटी की वजह से विशेष पसंद की जाती थी.
ग्राम खेरवा (जोबट), आलीराजपुर क्षेत्र के पलासदा आदि की भी उड़द की फसल बेहतर मानी जाती थी, लेकिन इस साल येलो मोजेक बिमारी के कारण यह काफी प्रभावित हुई है. इस साल उड़द की फसल किसानों के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुई है.
जोबट क्षेत्र में फसलों की स्थिति कुछ इस प्रकार है-
- सोयाबीन 8734 हेक्टेयर
- कपास 6074 हेक्टेयर
- उड़द 5402 हेक्टेयर
- मक्का 3683 हेक्टेयर
- तुअर 469 हेक्टेयर
- मूंग 144 हेक्टेयर