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लॉकडाउन के बावजूद बसों के टैक्स और बीमा प्रीमियम का मीटर चालू, बस संचालक परेशान

कोरोना संकट की वजह से लागू देशव्यापी लॉकडाउन के चलते पिछले 50 दिनों से एमपी में यात्री बसों के पहिए थमे हुए हैं. इसके बावजूद बसों के टैक्स और बीमा प्रीमियम का मीटर चल रहा है. इतना ही नहीं खड़ी हुई बसों के ऋण की किश्त भी बस मालिकों को जमापूंजी से चुकाने की नौबत आ गई है.

Bus operators have to pay tax and insurance premiums even in lockdown
लॉकडाउन में भी बस संचालकों को भरना पड़ रहा टैक्स और बीमा प्रीमियम का पैसा
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Published : May 11, 2020, 1:35 PM IST

अलीराजपुर। कोरोना संकट की वजह से लागू देशव्यापी लॉकडाउन के चलते पिछले 50 दिनों से एमपी में प्रदेश में यात्री बसों के पहिए थमे हुए हैं. इसके बावजूद बसों के टैक्स और बीमा प्रीमियम का मीटर चल रहा है. इतना ही नहीं खड़ी हुई बसों के ऋण का किस्त भी बस मालिकों को जमापूंजी से चुकाने की नौबत आ गई है. इस चौतरफा आर्थिक मार से बस संचालक परेशान हैं. राहत की उम्मीद लिए जिला बस मालिक संघ के अध्यक्ष पर्वत सिंह राठौर ने मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री और परिवहन आयुक्त से मांग की है कि बसों के टैक्स और बीमा प्रीमियम मे रियायत दी जाए.

Bus operators have to pay tax and insurance premiums even in lockdown
लॉकडाउन में भी बस संचालकों को भरना पड़ रहा टैक्स और बीमा प्रीमियम का पैसा

दरअसल बस मालिक रितेश डावर ने बताया है कि लॉकडाउन की वजह से 20 मार्च से बसों का संचालन बंद है. लेकिन इस अवधि में बस संचालकों को निर्धारित टैक्सों से राहत देने की कोई घोषणा नहीं हो पाई है. इसके साथ ही खड़ी हुई बसों के बीमा के प्रीमियम की राशि और ऋण किश्तों का बोझ भी बस मालिकों को वहन करना पड़ रहा है. बस चालक,परिचालक सहित अन्य स्टाफ के वेतन का भुगतान भी मालिकों द्वारा किया जा रहा है. इस चौतरफा पड़ रहे आर्थिक दबाव से बस संचालकों की कमर टूटने लगी है. इसका सीधा असर लॉकडाउन खुलने के बाद यात्री बसों के संचालन में पड़ना तय है.

बस मालिक राजेश राठौड़ बताते हैं कि कई स्थानों पर लॉकडाउन से जो राहत देते हुए बस संचालन की अनुमति शासन द्वारा दी गई है. उससे भी वाहन संचालकों को अधिक राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. क्योंकि अंर्तराज्यीय सीमाएं अब भी पूरी तरह से सील हैं. लॉकडाउन की वजह से तमाम वैवाहिक और धार्मिक गतिविधियां ठप पड़ चुकी हैं. इससे बसों की होने वाली बुकिंग शून्य हो गई है. आने वाले कुछ दिनों में बारिश का मौसम शुरू हो जाएगा. यह बस संचालन की दृष्टि से ऑफ सीजन होता है. बसों में यात्रियों की संख्या एक तिहाई से भी कम रह जाती है. ऐसे में लॉकडाउन खुलने की स्थिति में बस संचालकों कोई राहत नहीं मिलेगी. शर्तो का पालन करना संभव नहीं है.

बस संचालन के यह हैं नियम

राजेश राठौर ने बताया कि केन्द्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश सरकार ने ग्रीन जोन में बस संचालन करने के लिए जो शर्ते रखी हैं, उसका पालन करते हुए बसों को संचालित करना, आर्थिक लिहाज से संभव नहीं है. शर्त के मुताबिक बसों को पचास प्रतिशत यात्री के साथ ही चलाया जाएगा. इसके साथ ही सभी यात्रियों और रनिंग स्टाफ के लिए मास्क और सेनिटाइजर की व्यवस्था करना बस संचालक की जिम्मेदारी होगी. बस की क्षमता से आधे क्षमता के यात्रियों के साथ संचालित करने से संचालकों को नुकसान होना तय है. इसके उपर से यात्रियों के मास्क और सेनिटाइजर का बोझ भी बस संचालकों पर डाल दिया गया है. बस संचालन के व्यवसायिक लिहाज से इस गाइड लाइन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है.

जिले से 150 बसों का होता है संचालन

गुजरात अंर्तराज्यीय सरहद में स्थित अलीराजपुर जिले में रोजाना तकरीबन 150 से 200 छोटे-बड़े यात्री वाहन संचालित होते हैं. इनमें वातानुकूलित लग्जरी बसों से लेकर लोकल बस शामिल हैं. अलीराजपुर से अहमदाबाद बड़ौदा, सूरत,दाहोद, इंदौर, भोपाल के लिए बसें रवाना होती है. अंर्तराज्यीय परमिट के लिए बस संचालकों को अधिक टैक्स चुकाना पड़ता है. जाहिर है लॉकडाउन से दी गई छूट के बावजूद फिलहाल अंर्तराज्यीय बसों का संचालन शुरू होने का असर नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में इन परमिटधारक, बस संचालकों की मुश्किल सिर्फ सरकार की रहमोकरम पर ही टिकी हुई हैं.

एसी बस संचालन को लेकर संशय

लॉकडाउन के बीच बस संचालन को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही कवायदों के बीच,बस मालिकों की बैचेनी भी बढ़ती जा रही है. सबसे अधिक चिंता वातानुकूलित बस संचालित करने वाले मालिकों को सता रही है. कोविड 19 से बचाव के लिए केन्द्र सरकार द्वारा जो गाइड लाइन जारी किया गया है, उसमें एसी का प्रयोग ना करने की सलाह दी गई है. ऐसे में संचालकों को इस बात की आशंका है कि बस को सड़क में दौड़ने की अनुमति मिलने के बावजूद एसी बस,सड़क में नहीं उतर पाएंगी. क्योंकि एसी बसों की खिड़कियां फिक्स रहती है. इसमें उतरने और चढ़ने के लिए एक ही दरवाजे रहतें है.

बिना एसी चलाए इसमें यात्रियों का सफर करना मुश्किल है. ऐसे में अगर सरकार एसी बसों के संचालन को बैन करती है तो सरकारी और निजी वित्तीय संस्थाओं से 12 प्रतिशत तक ब्याज दर में ऋण लेकर बस संचालन कर रहे मालिक भारी घाटे में चले जाएंगे. बस मालिक संघ संरक्षक भगवती प्रसाद जयसवा का कहना है संक्रमण के खतरे से निबटने के लिए सरकार के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है. लेकिन बस संचालन के लिए व्यवहारिक और तकनीकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार को संघ से चर्चा कर बेहतर समन्वय बनाने की आवश्यकता है. अन्यथा लॉकडाउन के बाद भी बस संचालन प्रभावित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.

अलीराजपुर। कोरोना संकट की वजह से लागू देशव्यापी लॉकडाउन के चलते पिछले 50 दिनों से एमपी में प्रदेश में यात्री बसों के पहिए थमे हुए हैं. इसके बावजूद बसों के टैक्स और बीमा प्रीमियम का मीटर चल रहा है. इतना ही नहीं खड़ी हुई बसों के ऋण का किस्त भी बस मालिकों को जमापूंजी से चुकाने की नौबत आ गई है. इस चौतरफा आर्थिक मार से बस संचालक परेशान हैं. राहत की उम्मीद लिए जिला बस मालिक संघ के अध्यक्ष पर्वत सिंह राठौर ने मुख्यमंत्री, परिवहन मंत्री और परिवहन आयुक्त से मांग की है कि बसों के टैक्स और बीमा प्रीमियम मे रियायत दी जाए.

Bus operators have to pay tax and insurance premiums even in lockdown
लॉकडाउन में भी बस संचालकों को भरना पड़ रहा टैक्स और बीमा प्रीमियम का पैसा

दरअसल बस मालिक रितेश डावर ने बताया है कि लॉकडाउन की वजह से 20 मार्च से बसों का संचालन बंद है. लेकिन इस अवधि में बस संचालकों को निर्धारित टैक्सों से राहत देने की कोई घोषणा नहीं हो पाई है. इसके साथ ही खड़ी हुई बसों के बीमा के प्रीमियम की राशि और ऋण किश्तों का बोझ भी बस मालिकों को वहन करना पड़ रहा है. बस चालक,परिचालक सहित अन्य स्टाफ के वेतन का भुगतान भी मालिकों द्वारा किया जा रहा है. इस चौतरफा पड़ रहे आर्थिक दबाव से बस संचालकों की कमर टूटने लगी है. इसका सीधा असर लॉकडाउन खुलने के बाद यात्री बसों के संचालन में पड़ना तय है.

बस मालिक राजेश राठौड़ बताते हैं कि कई स्थानों पर लॉकडाउन से जो राहत देते हुए बस संचालन की अनुमति शासन द्वारा दी गई है. उससे भी वाहन संचालकों को अधिक राहत मिलने की उम्मीद नहीं है. क्योंकि अंर्तराज्यीय सीमाएं अब भी पूरी तरह से सील हैं. लॉकडाउन की वजह से तमाम वैवाहिक और धार्मिक गतिविधियां ठप पड़ चुकी हैं. इससे बसों की होने वाली बुकिंग शून्य हो गई है. आने वाले कुछ दिनों में बारिश का मौसम शुरू हो जाएगा. यह बस संचालन की दृष्टि से ऑफ सीजन होता है. बसों में यात्रियों की संख्या एक तिहाई से भी कम रह जाती है. ऐसे में लॉकडाउन खुलने की स्थिति में बस संचालकों कोई राहत नहीं मिलेगी. शर्तो का पालन करना संभव नहीं है.

बस संचालन के यह हैं नियम

राजेश राठौर ने बताया कि केन्द्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश सरकार ने ग्रीन जोन में बस संचालन करने के लिए जो शर्ते रखी हैं, उसका पालन करते हुए बसों को संचालित करना, आर्थिक लिहाज से संभव नहीं है. शर्त के मुताबिक बसों को पचास प्रतिशत यात्री के साथ ही चलाया जाएगा. इसके साथ ही सभी यात्रियों और रनिंग स्टाफ के लिए मास्क और सेनिटाइजर की व्यवस्था करना बस संचालक की जिम्मेदारी होगी. बस की क्षमता से आधे क्षमता के यात्रियों के साथ संचालित करने से संचालकों को नुकसान होना तय है. इसके उपर से यात्रियों के मास्क और सेनिटाइजर का बोझ भी बस संचालकों पर डाल दिया गया है. बस संचालन के व्यवसायिक लिहाज से इस गाइड लाइन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है.

जिले से 150 बसों का होता है संचालन

गुजरात अंर्तराज्यीय सरहद में स्थित अलीराजपुर जिले में रोजाना तकरीबन 150 से 200 छोटे-बड़े यात्री वाहन संचालित होते हैं. इनमें वातानुकूलित लग्जरी बसों से लेकर लोकल बस शामिल हैं. अलीराजपुर से अहमदाबाद बड़ौदा, सूरत,दाहोद, इंदौर, भोपाल के लिए बसें रवाना होती है. अंर्तराज्यीय परमिट के लिए बस संचालकों को अधिक टैक्स चुकाना पड़ता है. जाहिर है लॉकडाउन से दी गई छूट के बावजूद फिलहाल अंर्तराज्यीय बसों का संचालन शुरू होने का असर नजर नहीं आ रहा है. ऐसे में इन परमिटधारक, बस संचालकों की मुश्किल सिर्फ सरकार की रहमोकरम पर ही टिकी हुई हैं.

एसी बस संचालन को लेकर संशय

लॉकडाउन के बीच बस संचालन को लेकर केंद्र और प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही कवायदों के बीच,बस मालिकों की बैचेनी भी बढ़ती जा रही है. सबसे अधिक चिंता वातानुकूलित बस संचालित करने वाले मालिकों को सता रही है. कोविड 19 से बचाव के लिए केन्द्र सरकार द्वारा जो गाइड लाइन जारी किया गया है, उसमें एसी का प्रयोग ना करने की सलाह दी गई है. ऐसे में संचालकों को इस बात की आशंका है कि बस को सड़क में दौड़ने की अनुमति मिलने के बावजूद एसी बस,सड़क में नहीं उतर पाएंगी. क्योंकि एसी बसों की खिड़कियां फिक्स रहती है. इसमें उतरने और चढ़ने के लिए एक ही दरवाजे रहतें है.

बिना एसी चलाए इसमें यात्रियों का सफर करना मुश्किल है. ऐसे में अगर सरकार एसी बसों के संचालन को बैन करती है तो सरकारी और निजी वित्तीय संस्थाओं से 12 प्रतिशत तक ब्याज दर में ऋण लेकर बस संचालन कर रहे मालिक भारी घाटे में चले जाएंगे. बस मालिक संघ संरक्षक भगवती प्रसाद जयसवा का कहना है संक्रमण के खतरे से निबटने के लिए सरकार के साथ सहयोग करने के लिए तैयार है. लेकिन बस संचालन के लिए व्यवहारिक और तकनीकी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सरकार को संघ से चर्चा कर बेहतर समन्वय बनाने की आवश्यकता है. अन्यथा लॉकडाउन के बाद भी बस संचालन प्रभावित होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.

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