आगर। कहने को आज अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस है लेकिन कोरोना महामारी ने मजदूरों की मजदूरी पर ही ग्रहण लगा दिया है. शहरों में काम न मिलने के कारण मजदूरों के सामने रोटी तक खाने के लाले पड़ गए हैं, पेट की भूख मिटाने तक के लिए मजदूरी नहीं मिल रही है. कुछ मजदूर हैं जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल कर मंडी में हम्माली का काम कर रहें है. इन मजदूरों से जब बात की गई और बताया गया कि आप जैसे मजदूरों के लिए सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस घोषित किया है तो उनका कहना था कि उन्हें इस बारे में कुछ नहीं पता वह अपनी और अपने परिवार की भूख मिटाने के लिए मजदूरी कर रहे हैं.
मजदूरों को नहीं है सरकार की योजनाओं का पता
सरकार ने मजदूरों के लिए कई योजनाएं चलाई हैं लेकिन जमीनी हकीकत इससे परे है. कई ऐसे मजदूर हैं जिन्हें इसका पता तक नहीं है और वो किसी भी योजना का लाभ लेने में असर्मथ हैं. अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर शहर में मजदूरी कर अपना परिवार चलाने वाले कुछ मजदूरों से चर्चा कि तो सामने आया कि वो इस तपती धूप में सिर्फ अपने परिवार का पेट पालने के लिए काम का जुगाड़ कर रहे हैं. देश के मजदूरों की स्थिति पुराने दशक जैसी ही है, दिन भर काम करने के बाद शाम को अपने परिवार को दो वक्त की रोटी देना फिर अगले दिन के काम की चिंता करना और पैसों के लिए मालिक का मुंह ताकना. मजदूरों के लिए न तो कोई छुट्टी है और न ही कोई आराम हर दिन इन्हें अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करना पड़ती है तब जबकि एक वक्त की रोटी नसीब होती है.
1 मई का दिन मजदूर दिवस के रूप में घोषित है, लेकिन इन मजदूरों को इसके बारे में पता ही नहीं है. इसलिए ये दिन भी इनके लिए सामान्य दिनों की तरह ही गुजरा, संबधित विभाग की और से इनके हाल जानने का प्रयास तक नहीं किया गया है. समर्थन मूल्य के खरीदी केंद्रों पर काम करने आए कन्नोज के मजदूर सरकार के द्वारा समर्थन मुल्य पर गेहूं की खरीदी की जा रही है. स्थानीय कृषि उपज मंडी में प्राथमिक सहकारी संस्था के दो खरीदी केंद्र बनाए गए हैं, यहां मजदूरों का टोटा पड़ा तो फिर संस्था को बाहर से मजदूर बुलाना पड़े. देवास जिले के कन्नौज के मजदूर भी लॉकडाउन में यहां मजदूरी करने के लिए इसलिए आए हैं ताकि वो अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें.
ईंट भट्टे, भवन निर्माण में कारीगरों के साथ व कृषि उपज मंडी तथा नगरीय क्षेत्र में पेयजल योजना के लिए पाइप लाइन डाली जा रही है. दो वक्त की रोटी के लिए कड़ी मेहनत करते हुए मजदूर नजर आए, लॉकडाउन के समय भी देश में गरीबी और बेरोजगारी खत्म होती नजर नहीं आ रही है.