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जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है बच्चे, अधिकारी नहीं ले रहे सुध - mp news

आगर कांकर गांव में बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं. हर तरफ से टपकती छत में बचते- बचाते बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन जिम्मेदारों ने आज तक इस स्कूल की सुध नहीं ली है.

जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है बच्चे
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Published : Sep 17, 2019, 11:29 PM IST

आगर। जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कांकर गांव में बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं, 40 साल पुरानी इमारत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है. बारिश के दिनों में तो इस जर्जर भवन के हाल बद से बदतर हो जाती है. हर तरफ से टपकती छत में बचते- बचाते बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन जिम्मेदारों ने आज तक इस स्कूल की सुध नहीं ली है.

जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है बच्चे


कांकर गांव में प्राथमिक कक्षा तक सरकारी विद्यालय है. यहां बच्चे 40 साल पुराने भवन में बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं. यह भवन अब काफी जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है. बारिश में कक्षाएं पास में ही स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में लगा दी जाती है. परिजन भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं.


शिक्षक बाबूलाल ने बताया कि भवन काफी जर्जर हो गया है. भवन की स्थिति से उच्च अधिकारियों को अवगत भी करा दिया गया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है. भवन में बच्चों को बैठाकर पढ़ाई करवाना मजबूरी बन गई है.

आगर। जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कांकर गांव में बच्चे जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं, 40 साल पुरानी इमारत पूरी तरह जर्जर हो चुकी है. बारिश के दिनों में तो इस जर्जर भवन के हाल बद से बदतर हो जाती है. हर तरफ से टपकती छत में बचते- बचाते बच्चे पढ़ाई करते हैं, लेकिन जिम्मेदारों ने आज तक इस स्कूल की सुध नहीं ली है.

जान जोखिम में डालकर पढ़ने को मजबूर है बच्चे


कांकर गांव में प्राथमिक कक्षा तक सरकारी विद्यालय है. यहां बच्चे 40 साल पुराने भवन में बैठकर शिक्षा ग्रहण करते हैं. यह भवन अब काफी जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है. बारिश में कक्षाएं पास में ही स्थित आंगनबाड़ी केंद्र में लगा दी जाती है. परिजन भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं.


शिक्षक बाबूलाल ने बताया कि भवन काफी जर्जर हो गया है. भवन की स्थिति से उच्च अधिकारियों को अवगत भी करा दिया गया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही है. भवन में बच्चों को बैठाकर पढ़ाई करवाना मजबूरी बन गई है.

Intro:आगर मालवा
-- 40 साल पुराने कच्ची दीवारों पर टीके ग्राम कांकर के प्राथमिक विद्यालय में बच्चे मौत के साये में अपना भविष्य गढ़ रहे है। स्कूल भवन के प्रत्येक कमरे की दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारे हो गई है वही छत का भी कोई भरोसा नही की कब गिर पड़े। बारिश के दिनों में तो इस जर्जर भवन के हाल बद से बदतर हो जाते है। हर तरफ से टपकती छत में बचते-बचाते बच्चे सुखी जगह देखकर बैठ जाते है और पढ़ाई करते है। इस भवन को डिस्मेंटल कर नया भवन बनाने के लिए स्कूल के शिक्षकों ने जिम्मेदार अधिकारियों को कभी सूचना पत्र तो कभी मौखिक रूप से बोलकर अनेको बार अवगत कराया लेकिन जिम्मेदारों ने आज तक इस स्कूल की सुध नही ली है। शिक्षक भी कोई अन्य व्यवस्था न होने के कारण बच्चों को इसी भवन में बैठाकर पढ़ाई कराने पर मजबूर है।


Body:जिला मुख्यालय से केवल 8 किमी की दूरी पर स्थित कांकर गांव में प्राथमिक कक्षा तक सरकारी विद्यालय है। यहाँ बच्चे 40 साल पुराने भवन में बैठकर शिक्षा ग्रहण करते है यह भवन अब काफी जर्जर स्थिति में पहुंच चुका है इसके बावजूद बच्चे यहाँ बैठकर पढ़ाई करते है। भवन गिर न जाये इसका डर भी बच्चो सहित शिक्षकों को हर पल रहता है। कभी कभार बारिश में जरूर कक्षाएं पास में ही स्थित आंगनवाड़ी केंद्र में लगा दी जाती है लेकिन यह भवन भी कुछ खास ठीक स्थिति में नही है। पालक भी अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहते है। इस भवन की दरारों से सटी दीवारे हमेशा हादसों को आमंत्रित करती हुई दिखाई देती है।


Conclusion:छात्र रोहित ने बताया कि यहाँ बैठकर पढ़ने में डर लगता है कोई भवन न होने के कारण यही बैठकर पढ़ना पड़ता है।
शिक्षक बाबूलाल ने बताया कि भवन काफी जर्जर हो गया है। भवन की स्थिति से उच्च अधिकारियों को अवगत भी करा दिया गया है लेकिन कोई कार्रवाई नही हो पा रही है इस भवन में बच्चों को बैठाकर पढ़ाई करवाना हमारी मजबूरी बन गई है।
सहायक यंत्री जिला शिक्षा केन्द्र बीएल कमाली ने बताया कि भवन वाकई जर्जर है वही भवन वर्षो पुराना है। वहा का मौका मुआयना कर पूरा स्टीमेट बनाया गया है। कलेक्टर से अनुमति मिलने के बाद नया भवन बनाया जाएगा।
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