ग्वालियर। भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब अयोध्या वापस लौटे थे, तब पूरी अयोध्या को दीपों से सजाया गया था, इसलिए दीपावली का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन सिख धर्म के अनुयायी दिवाली के दिन को दाता बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं. इसके पीछे की बेहद कहानी रोचक है. तस्वीरों में दिखता ये सफेद गुरूद्वारा सिखों की दीपावली की पहचान है, क्योंकि सिखों की दीपावली की शुरूआत होने की कहानी ग्वालियर से ही शुरू हुई थी.
ये है पूरी कहानी
बात तब की है जब सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठवें गुरू हरगोविंद साहिब जी बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया, जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे. गुरू हरगोविंद साहिब जी को बंदी बनाने के बाद जहांगीर बीमार पड़ गया. तभी जहांगीर के काजी ने सलाह देते हुए बताया कि आपकी बीमारी की वजह एक सच्चे गुरू को कैद करना है.
जहांगीर के सामने रखी गई थी ये शर्त
काजी की सलाह पर जहांगीर ने उन्हें छोड़ने का आदेश जारी किया, लेकिन गुरु हरगोविंद सिंह जी ने अकेले रिहा होने से इनकार कर दिया. गुरू हरगोविंद साहिब जी ने अपने साथ कैद सभी 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा करने की शर्त रखी. शर्त को स्वीकरते हुए जहांगीर ने भी एक शर्त रख दी, उसकी शर्त थी कि कैद से गुरू जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे जो, सीधे गुरू जी का कोई अंग या कपड़ा पकड़े हुए होंगे.
इस तरह आजाद हुए थे गुरू हरगोविंद सिंह जी
जहांगीर की सोच थी कि, एक साथ सभी राजा गुरू जी को छू नहीं पाएंगे और इस तरह बहुत से राजा उसकी कैद में ही रह जाएंगे. जहांगीर की चालाकी देखते हुए गुरू जी ने एक विशेष कुरता सिलवाया, जिसमें 52 कलियां बनी हुई थीं. इस तरह एक- एक कली को पकड़े हुए सभी 52 राजा कैद से आजाद हो गये.
52 राजा एक साथ हुए थे रिहा
52 राजाओं को इस दाता बंदी छोड़ से एक साथ छुड़ाया गया था, इसलिए इस गुरूद्वारे को दाता बंदी छोड़ भी कहा जाता है. यहां लाखों की तादाद में सिख धर्म के अनुयायी अरदास करने आते हैं. दाता बंदी छोड़ सिखों के प्रमुख अरदास केंद्र में शुमार है. गुरु हरगोविंद साहिब ने कार्तिक की अमावस्या यानी दीपावली के दिन 52 हिंदू राजाओं को अपने साथ जेल से बाहर निकाला था, तभी से सिख धर्म के लोग दिवाली मनाते हैं और कार्तिक माह की अमावस्या को दाता बंदी छोड़ दिवस भी मनाया जाता है.