उज्जैन। महाकाल की नगरी में शनिवार सुबह मां क्षिप्रा को चुनरी ओढ़ाकर, शंख बजाकर हिंदू रीति रिवाज के अनुसार चैत्र नवरात्र विक्रम संवत नववर्ष 2079 की शुरुआत हुई. गुड़ी पड़वा नाम से जाना जाने वाला यह पर्व महाकाल की नगरी के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि यहां विराजित 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माता हरसिद्धि के रूप में व एक शक्तिपीठ अवंतिका के रूप में विराजमान है. आज के दिन की शुरुआत नववर्ष से होती है और यह शक्ति की उपासना का पर्व है, जिसमें लोग देवियों के अलग-अलग रूपों को पूजते हैं. (Chaitra Navratri celebration in Ujjain)
मां सती की कोहनी गिरी: उज्जैन में शिव के साथ शक्ति भी विराजमान है, ऐसी मान्यता है कि यहां माता सती की कोहनी गिरी थी तभी से इस स्थान को हरिसिद्धि के नाम से जाना जाता है. तब से शिव ने यहां शक्तिपीठ के रूप में माता का स्थान स्थापित किया. मंदिर के पुजारी महेश गुरु ने बताया कि जिस स्थान पर शिव शक्ति दोनों विराजमान हो वहां हर त्योहार का महत्व अत्यधिक हो जाता है क्योंकि शक्ति के बिना शिव और शिव के बिना शक्ति अधूरी हैं.
राजा विक्रमादित्य ने किए थे शीश अर्पण: कुछ लोग कुलदेवी को पूजते हैं, कुछ लोग उनका एक समय का उपवास रखते हैं तो कुछ दोनों समय का. इस मौके पर दुर्गा चालीसा का पाठ, कन्या भोज कर विधि विधान से देवी की पूजा करते हैं. मान्यता है कि हरसिद्धि माता को राजा विक्रमादित्य ने खुश करने के लिए उनके चरणों में अपना शीश अर्पित किया था. साथ ही उन्होंने 2000 साल पहले चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से विक्रम संवत शुरू किया था. सभी सनातन धर्म के मानने वाले इसे नव वर्ष के रूप में मनाते हैं, इसे गुड़ी पड़वा के नाम से भी जाना जाता है.
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पहले दिन की जाती है घट स्थापना : उज्जैन के हरसिद्धि माता मंदिर में पहले दिन पुजारी व घरों में परिवार के सदस्य घट स्थापना करते हैं, यहां 9 दिन तक विशेष हवन पूजन किया जाता है. राजा विक्रमादित्य ने माता को अपना आराध्य बनाया था. ऐसी मान्यता है उज्जैन में हर 12 वर्षो में अकाल पड़ता था जिसको दूर करने के लिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने सभी देवियों को प्रसन्न किया था. शहर में शांति बनी रहने का यही एक कारण है. तब से ही सभी भक्तों पर माता का आशीर्वाद बना रहता है.
51 फीट ऊंचे 1100 दीप के दो दीप स्तम्भ: मंदिर में 51 फीट ऊंचे 1100 दीप के दो दीप स्तम्भ हैं. जिन्हें जलाने के लिए एक बार में 60 लीटर तेल और बाती के लिए 4 किलो रुई की आवश्यकता होती है. समय-समय पर इन दीप स्तंभों की साफ-सफाई भी की जाती है जो काफी मुश्किल है लेकिन आज भी शहर का एक परिवार इस परंपरा को बखूबी निभा रहा है. पुजारी महेश गुरु बताते हैं कि साल भर में तीन नवरात्रि होती हैं. एक गुप्त नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि व कार्तिक माह की नवरात्रि. सभी का अपना अलग-अलग महत्व है, इन दिनों भक्तों का मंदिर में तांता लगा रहता है. इस मौके पर गरबा आयोजन भी किया जाता है. और जो व्यक्ति 9 दिन उपवास रखता है वह शुद्ध हो जाता है.
(Chaitra navratri 2022) (Chaitra Navratri celebration in Ujjain) (Mata Harsiddhi is one of 51 Shaktipeeths)