सतना। चरखे पर सूत तैयार कर कपड़े बनाते ये लोग सतना जिले के सुलखमा गांव के हैं. यहां का हर बाशिंदा आज भी बापू के सिंद्धातों पर चलता है. जिस चरखे का इस्तेमाल गांधीजी ने देश के शोषण को रोकने के लिए हथियार के रूप में किया था, वो चरखा आज भी सुलखमा के लोगों की सबसे बड़ी ताकत बना बना हुआ है. यहां पहुंचते ही बापू की यादें फिर ताजा हो जाती हैं.
गांव के बुजुर्ग जब चरखा चलाते हैं, तो एक पल के लिए ऐसा लगता है जैसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का दौर फिर से लोट आया हो, क्योंकि सुलखमा में आज भी बापू के स्वावलंबन का सपना साकार हो रहा है. चार हजार की आबादी वाले इस गांव के हर घर में चरखे की आवाज सुनाई देती हैं. गांव में रहने वाले पाल समाज के 100 परिवार वर्षों से चरखा चलाकर ही अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
कमजोर पड़ने लगी है विरासत
लेकिन अब ये विरासत कमजोर होने लगी है, क्योंकि चरखे से बनाए कपड़ों से उनका घर नहीं चल पाता. ग्रामीणों का कहना है कि वह बापू की विरासत को तो संभाले हुए हैं, लेकिन उनका गांव और उनकी यह कला आज भी पहचान की मोहताज है, क्योंकि उन्हें आज तक कोई मदद मिली ही नहीं.
मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं गांव
आजादी के बाद से आज तक इस गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. चरखे की कमाई ज्यादा ना होने की वजह से बच्चे अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं. कहने को तो गांव में चरखा चलाने के लिए एक प्रशिक्षण केंद्र भी बनाया था, जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है. यहां के लोग आज भी मशीन या प्रशासनिक सुविधाओं के इंतजार में बैठे हैं.
ऐसे में ईटीवी भारत ने सुलखमा गांव के लोगों की समस्या को प्रशासन तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया. जिसमें थोड़ी ही सही मेहनत रंग लाई. सतना जिले के कलेक्टर ने आश्वासन दिया है कि वह जल्दी ही सुलखमा के लोगों की इस कला को पटल पर लाने का प्रयास करेंगे.
कलेक्टर के आश्वासन के बाद ग्रामीणों में नई अलख जगी है. शायद अब उनके इस चरखे को फिर से एक नई पहचान मिलेगी. ईटीवी भारत का उद्देश्य भी यही है कि वर्षों से बापू के सिंद्धातों पर चल रहे इस गांव को अब एक नई पहचान मिल सके, ताकि लोगों को पता चल सके कि भारत आज भी बापू के सिंद्धातों का ही देश है.